उद्योग संगठन एसोचैम ने रविवार को कहा कि हीरा कारोबारी नीरव मोदी द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के तहत संचालित पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) को कथित 11,300 करोड़ रुपये की चपत लगाने से कॉरपोरेट ऋण की पूरी प्रणाली पर विराम नहीं लगना चाहिए। एसोचैम के अनुसार इससे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (पीएसबी) के कर्मचारियों के उत्साह में कमी आएगी।
एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एसोचैम) ने एक विज्ञप्ति में कहा कि धोखाधड़ी के कारण साख में जो गिरावट आई है, उसपर नियंत्रण किया जाना चाहिए, क्योंकि यह ऐसा दौर है जब साख में सुधार के संकेत मिल रहे थे और देश की अर्थव्यवस्था उच्च विकास दर की तरफ बढ़ रही है।
एसोचैम ने इस बात का जिक्र किया है कि पीएनबी घोटाले के बाद बैंकों की ओर से कुछ अव्यावहारिक नियम थोपकर व्यापार व पूंजी व्यवस्था की प्रक्रियाओं को सख्त बनाने की रपटें मिल रही हैं, जिनसे आयातक और निर्यातक दोनों प्रभावित होंगे।
उद्योग संगठन ने कहा कि हीरा कारोबारियों की ओर से कथित तौर पर गलत इस्तेमाल किए गए साख-पत्र यानी लेटर्स ऑफ क्रेडिट (एलओसी) या वचन-पत्र यानी लेटर्स ऑफ अंडरटेकिंग (एलओयू) वैश्विक व्यापार में वैध दस्तावेज हैं।
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एसोचैम के महासचिव डी. एस. रावत ने एक बयान में कहा, 'जब हम बैंकों के निजीकरण जैसे दीर्घकालिक समाधान की मांग करते हैं तो इस समय ईमानदार बैंककर्मियों और ईमानदार व्यवसायिक संस्थाओं को शक्ति प्रदान करने की जरूरत है। इन्होंने एक-दूसरे पर भरोसा कायम रखा है।'
उन्होंने कहा, 'एक या कुछ बुरे लोगों को हमारी वित्तीय प्रणाली को बिगाड़ने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। हमारी वित्तीय प्रणाली इस तरह के आघात को झेलने को लेकर काफी लचीली है। हालांकि आदर्श तरीका यह है कि ऐसे धक्कों से बचा जाएगा और सुधार के माध्यम से इनको रोका जाए।'
दूसरी तरफ, वित्तमंत्री अरुण जेटली ने बैंक धोखाधड़ी का पता लगाने में विफल रहने पर विनियामकों और बैंक के प्रबंधकों व अंकेक्षकों की आलोचना की है।
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Source : IANS