सुप्रीम कोर्ट ने दहेज हत्या मामले में कहा कि इसमें संदेह नहीं है कि दिन-प्रतिदिन दहेज हत्या जैसा खतरा बढ़ रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दहेज मौत के मामलों में (IPC 304B) ये साबित करना जरूरी नहीं है कि महिला की अप्राकृतिक मृत्यु से बिल्कुल पहले ही दहेज की मांग की गई हो. यानि अगर मौत से कुछ समय पहले भी दहेज के लिए ससुराल पक्ष जे दबाव बनाने और परेशान करने की बात साबित होती है, तो ये ऐसे मामलों में सजा देने के लिए पर्याप्त होगा. कोर्ट ने कहा कि 304 B के तहत हत्या, आत्महत्या या दुर्घटना से मृत्यु को अलग-अलग नहीं किया गया है. सिर्फ अप्राकृतिक मृत्यु की बात कही गई है. वो इनमें से कुछ भी हो सकती है.
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सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट में CrPC 313 के तहत आरोपी के बयान को लेकर 'केजुअल अप्रोच' पर भी नाराज़गी जाहिर की. कहा-" ये सिर्फ औपचारिकता नहीं होनी चाहिए. बयान दर्ज करते वक़्त गम्भीरता बरतने की ज़रुरत है. कोर्ट आरोपी को उसके खिलाफ मौजूद सबूत बताए और मौका दे कि वह उस बारे में अपनी सफाई रख सके.
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में ये भी कहा- इसमे दो राय नहीं कि दहेज के चलते मौत की घटनाएं बढ़ती जा रही है. पर ये भी देखने में आया है कि कई बार पीड़ित का परिवार ससुराल पक्ष के उन रिश्तेदारों का भी नाम मुकदमे में जोड़ देता है, जिनका इस मामले से कोई सम्बंध नहीं होता, जो कहीं दूर रहते हों. जज मुकदमे के दौरान इस पहलू पर भी सतर्कता बरते .
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सुप्रीम कोर्ट ने दहेज हत्या मामले में दिए फैसले में कहा है कि जब भी दहेज हत्या से संबंधित मामले को देखा जाए तो इस बात को ध्यान में रखना जरूरी है कि इस कानून को इसलिए बनाया गया था कि दहेज के लिए लड़कियों को जलाए जाने से रोका जा सके. दहेज जैसी सामाजिक बुराई पर लगाम लगान के लिए ये कानून बनाया गया है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि दहेज हत्या मामले में आरोपी के बयान के समय ट्रायल कोर्ट गंभीर नहीं रहते जो चिंता का विषय है और कहा कि कई बार दहेज हत्या मामले में भी पति के परिजनों को बिना कारण फंसा दिया जाता है.