"मेरे गीत उदास न हो
हर तार बजेगा
कंठ खुलेगा...
मेरे देश उदास न हो
फिर दीप जलेगा
तिमिर ढलेगा"
हिंदी जगत की महानतम शख्सियत पद्म भूषण गोपालदास 'नीरज' अब हमारे बीच नहीं रहे। ऊपर लिखी उनकी कविता की चंद लाइनें यह बताने के लिए काफी हैं कि शब्दों के कितने धनी थे। वह आम जनता ही नहीं, डाकू मान सिंह को भी अपना मुरीद बना चुके हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक दिन कवि और गीतकार गोपालदास मध्य प्रदेश के मुरैना में एक कवि सम्मेलन से कविता पाठ कर लौट रहे थे। घुप्प अंधेरा था कि तभी डाकू मान सिंह के गिरोह ने उन्हें पकड़ लिया। मानसिंह ने 'नीरज' से पूछा 'क्या काम करते हो?' तो उन्होंने सपाट लहजे में कहा 'कवि' हूं। इस पर मानसिंह ने बोला कि तो कविता सुनाओ।
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घने जंगल में, घुप्प अंधेरे में जब गोपालदास ने कविता पाठ करना शुरू किया तो डाकू मान सिंह और उनका गिरोह चुपचाप बैठकर रातभर उन्हें सुनता रहा। मान सिंह, गोपालदास की कविताओं से इस कदर प्रभावित हुए कि जिस शख्स को उन्होंने फिरौती के उद्देश्य से पकड़ा था, उसे खुद दक्षिणा दी और सही सलामत घर तक भी पहुंचाया।
रिपोर्ट्स की मानें तो जब यह वाक्या हुआ, उस वक्त गोपालदास की उम्र 30 साल थी। इस घटना के बाद बहुत दिनों तक 'नीरज' के दोस्त चुटकी लेते हुए कहते थे कि जो कवि अपनी कविता से मानसिंह जैसे डकैत को लूट सकते हैं, उन्हें कौन लूट सकता है?
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Source : News Nation Bureau