भगोड़े शराब कारोबारी विजय माल्या का बैंकों के कंसोर्टियम से लिए गए 5,500 करोड़ रुपये के कर्ज को लौटाने का कोई इरादा नहीं था, यहां तक कि कर्जदाताओं ने उसकी अब बंद हो चुकी एयरलाइन किंगफिशर एयरलाइंस लि. (KAL) को चलाए रखने के लिए कर्ज के पुनर्गठन पर भी सहमति जताई थी. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा KAL की वित्तीय गड़बड़ियों की जांच से खुलासा हुआ है कि माल्या का इरादा बैंकों का कर्ज लौटाने का था ही नहीं, क्योंकि बैंकों द्वारा कर्ज के पुनर्गठन के बाद भी उसने मुनाफे में चल रही यूनाइटेड ब्यूरीज होल्डिंग्स लि. (UBHL) और समूह की अन्य कंपनियों की पूंजी को केएएल में नहीं लगाया.
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इसकी बजाए, UBHL द्वारा KAL को कई डमी कंपनियों के माध्यम से घुमा-फिरा कर 3,516 करोड़ रुपये का असुरक्षित ऋण दिया गया. इससे KAL का जो थोड़ा बहुत सकल मूल्य था, वह भी नष्ट हो गया, क्योंकि कंपनी पर कर्ज की पुनर्गठित रकम 5,575.72 करोड़ रुपये थी.
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दिलचस्प है कि, UBHL ने इस असुरक्षित कर्ज व्यवस्था वेव समूह (188 करोड़ रुपये), सहारा समूह की कंपनी SICCL (200 करोड़ रुपये) से की थी. इस प्रकार से असुरक्षित कर्ज को घुमाफिरा कर दूसरी कंपनियों के माध्यम से दिया गया ताकि मूल कंपनी का पता न चले और इसका नतीजा यह हुआ कि केएएल पर कर्ज बढ़ता गया और इसे चलाए रखने की व्यवहार्यता कम होती गई.
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अपनी जांच में ईडी ने पाया कि माल्या का इरादा कर्ज को लौटाने का नहीं था, क्योंकि घाटे में चल रही KAL पर कर्ज और बढ़ता जा रहा था. यहां तक कि उसने UBHL के साथ बंबई उच्च न्यायालय में KAL के कर्ज पर दोनों द्वारा दिए गए व्यक्तिगत गारंटी के आह्वान को चुनौती दी. एजेंसी के अधिकारियों का कहना है कि KAL के लिए कर्ज को पाने और कर्ज का पुनर्गठन कराने के लिए आपराधिक साजिश रची गई, क्योंकि उनका शुरू से ही कर्ज को चुकाने का कोई इरादा नहीं था.
जांच से KAL के दिए गए कर्ज की रकम के हेराफेरी का भी पता चला है. एयरलाइन को दिए गए कर्ज का एक बड़ा हिस्सा देश से बाहर फर्जी परिचालन खर्च या पट्टे के किराए के झूठे कर्ज के रूप में दिखा कर देश से बाहर भेज दिया गया.
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KAL को भारतीय स्टेट बैंक (SBI), पंजाब नेशनल बैंक (PNB) और AXIS BANK ने 3,200 करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज दिया था, जिसे देश से बाहर विमानों के पट्टे का किराया और रखरखाव, कलपुर्जे के खर्च के नाम पर भेज दिया गया. जांच में असलियत में किए गए भुगतान और केएएल द्वारा दिखाए गए भुगतान में भारी अंतर पाया गया, खासतौर से विमानों के पट्टे का किराया काफी अधिक बढ़ाचढ़ाकर दिखाया गया.
केएएल से बार-बार यह याद दिलाया गया कि पट्टे से संबंधित दस्तावेज मुहैया कराए, लेकिन कंपनी की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं की गई. ईडी का निष्कर्ष है कि 'पहले से सोच-समझ कर और योजना बना कर' बैंकों से बड़ी रकम कर्ज के रूप में लिया गया और उसे जालसाजी से देश से बाहर ठिकाने लगा दिया गया.
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साल 2010 में कर्ज के पुनर्गठन के बाद केएएल का बकाया मूलधन 6,000 करोड़ रुपये से घटकर 5,575.72 करोड़ रुपये रह गया. इस रकम को बैंकों ने दिसंबर 2010 में और घटाकर 4,930.34 करोड़ रुपये कर दिया, क्योंकि एसबीआई जैसे बैंकों ने कंसोर्टियम को दिए गए शेयरों के एक हिस्से को बेच कर कुछ रकम जुटा लिया.
Source : News Nation Bureau