अनुच्छेद 377 (Article 370) और 35A से कश्मीर को मिली आजादी से भले ही पाकिस्तान (Pakistan) और उसके हुक्मरान इमरान खान (Imran Khan) तिलमिलाए हुए हों, लेकिन इतिहास गवाह कि उसी पाकिस्तान (Pakistan) के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना (Muhammad Ali Jinnah) का स्वागत कश्मीरी आवाम ने टमाटर और अंडों से किया था. वहीं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) जब कश्मीर पहली और आखिरी बार पहुंचे तो झेलम नदी के पुल पर तिल धरने की जगह नहीं थी. गांधी (Mahatma Gandhi) की गाड़ी पुल से हो कर श्रीनगर में प्रवेश कर ही नहीं सकती थी. उन्हें गाड़ी से निकाल कर नाव में बिठाया गया और नदी के रास्ते शहर में लाया गया.
आज़ादी से मात्र 14 दिन पहले, रावलपिंडी के दुर्गम रास्ते से महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) पहली और आख़िरी बार कश्मीर पहुंचे. जाने से पहले 29 जुलाई 1947 की प्रार्थनासभा में उन्होंने ख़ुद ही बताया कि वे कश्मीर जा रहे हैं. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) कश्मीर कभी नहीं जा सके थे. जब-जब योजना बनी, किसी-न-किसी कारण अटक गई. जिन्ना (Muhammad Ali Jinnah) साहब भी एक बार ही कश्मीर गये थे, तब टमाटर और अंडों से उनका स्वागत हुआ था. ग़ुस्सा यूं था कि यह ज़मींदारों व रियासत के पिट्ठू हैं.
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माउंटबेटन ने कश्मीर दौरे का प्रस्ताव रखा था. 77 साल की उम्र में उनका सफ़र मुश्किल था. किसी ने कहा, इतनी मुश्किल यात्रा क्या ज़रूरी है? आप महाराजा को पत्र लिख सकते हैं. गांधी (Mahatma Gandhi) जी ने जवाब में कहा, "हां, फिर तो मुझे नोआखली जाने की भी क्या ज़रूरत थी? वहां भी पत्र भेज सकता था, लेकिन भाई उससे काम नहीं बनता है." 29 जुलाई 1947 की प्रार्थनासभा में उन्होंने ख़ुद ही बताया कि वे कश्मीर जा रहे हैं.
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उन्होंने कहा, "मैं यह समझाने नहीं जा रहा हूं कि कश्मीर को भारत में रहना चाहिए. वह फ़ैसला तो मैं या महाराजा नहीं, कश्मीर के लोग करेंगे. कश्मीर में महाराजा भी हैं, रैयत भी है. लेकिन राजा कल मर जाएगा तो भी प्रजा तो रहेगी. वो अपने कश्मीर का फ़ैसला करेगी."
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महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) 1 अगस्त, 1947 को कश्मीर पहुंचे. झेलम नदी के पुल पर तिल धरने की जगह नहीं थी. गांधी (Mahatma Gandhi) की गाड़ी पुल से हो कर श्रीनगर में प्रवेश कर ही नहीं सकती थी. उन्हें गाड़ी से निकाल कर नाव में बिठाया गया और नदी के रास्ते शहर में लाया गया. दूर-दूर से आए कश्मीरी लोग यहां-वहां से उनकी झलक देख कर तृप्त हो रहे थे और कह रहे थे, "बस, पीर के दर्शन हो गए!"
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शेख़ अब्दुल्लाह तब जेल में थे. बापू का एक स्वागत महाराजा ने अपने महल में आयोजित किया था तो नागरिक स्वागत का दूसरा आयोजन बेगम अकबरजहां अब्दुल्लाह ने किया था. महाराजा हरि सिंह, महारानी तारा देवी तथा राजकुमार कर्ण सिंह ने महल से बाहर आकर उनकी अगवानी की थी.
HIGHLIGHTS
- 77 साल की उम्र में महात्मा गांधी पहली और आखिरी कश्मीर गए
- बापू का एक स्वागत महाराजा ने अपने महल में आयोजित किया था
- कश्मीर में बापू के दर्शन को झेलम नदी के पुल पर उमड़ी भीड़
Source : न्यूज स्टेट ब्यूरो