चुनाव आयोग ने अगले सप्ताह 21 मई को आयोग की पूर्ण बैठक बुलाई है. माना जा रहा है कि चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायतों के निस्तारण में चुनाव आयुक्त अशोक लवासा को मनाने के लिए बुलाई गई है. चुनाव आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक बताया गया कि मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि लवासा की असहमति को कुछ मीडिया रिपोर्ट्स ने गैरजरूरी रूप से इसे तूल दिया है.
यह आयोग का अंदरूनी मामला है. जो भी असहमति है उसे दूर करने के लिए 21 मई को बैठक बुलाई गई है. अरोड़ा के स्पष्टीकरण के हवाले से उन्होंने बताया कि किसी विषय पर चुनाव आयुक्तों में असहमति होना सहज, स्वाभाविक और समान्य स्थिति है. इसमें विवाद जैसी कोई बात नहीं है.
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अल्लेखनीय है कि मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने स्पष्टीकरण जारी करते हुए चुनाव आचार संहिता से जुड़ी शिकायतों के निपटारे से जुड़ी बैठकों से लवासा द्वारा खुद को अलग करने संबंधी मीडिया रिपोर्टों को नाखुशगवार बताया था. अरोड़ा ने कहा था कि इस तरह की रिपोर्ट से बचना चाहिए.
अरोड़ा ने कुछ मामलों में लवासा की असहमति से संबंधित मीडिया रिपोर्ट्स को गैर जरूरी बताया था. आगे उन्होंने बताया कि आयोग की 14 मई की बैठक में भी लोकसभा चुनाव संपन्न कराने की प्रक्रिया से संबंधित मुद्दों के निपटारे के लिए अलग समूह गठित करने का सर्वसम्मति से फैसला लिया गया है.
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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 4 मई को लवासा ने अरोड़ा को पत्र लिख कर कहा था कि चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायतों के निस्तारण से जुड़ी बैठकों से वह खुद को तब तक अलग रखेंगे जब तक उनके 'विसम्मत' फैसले को आयोग के फैसले में दर्ज करने की अनुमति नहीं दी जाएगी.
अरोड़ा ने स्पष्ट किया है कि निर्वाचन कानून भी विषय विशेष पर वैचारिक समरूपता को वरीयता देते हैं, लेकिन मतभेद या असहमति की स्थिति में बहुमत से फैसला करने का प्रावधान है. सूत्रों के मुताबिक लवासा ने अरोड़ा को लिखे पत्र में कहा था कि अल्पमत के फैसले को दर्ज नहीं किया जा रहा है.
HIGHLIGHTS
- अशोक लवासा ने चिट्ठी लिख कर जताई थी नाराजगी
- कहा था कि उनके विसम्मत फैसले को रिकॉर्ड नहीं किया जा रहा
- मुख्य चुनाव आयुक्त के मुताबिक मीडिया ने बेवजह इस बात को तूल दिया