चुनाव आयुक्त अशोक लवासा को बुधवार को एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने उपाध्यक्ष बनाने की घोषणा की. बैंक का मुख्यालय मनीला में है. चुनाव आयोग में लवासा का कार्यकाल अक्टूबर 2022 तक है. तब तक वह मुख्य चुनाव आयुक्त के पद तक पहुंच सकते थे. वह एडीबी में जाने पर कार्यकाल के बीच में आयोग छोड़ने वाले दूसरे चुनाव आयुक्त होंगे.
फिलीपींस स्थित एडीबी ने एक वक्तव्य जारी कर कहा है, एडीबी ने अशोक लवासा को निजी क्षेत्र और सार्वजनिक- निजी भागीदारी के कारोबार के लिए उपाध्यक्ष नियुक्त किया है. वह दिवाकर गुप्ता का स्थान लेंगे जो कि 31 अगस्त को सेवानिवृत हो रहे हैं. सूत्रों ने कहा कि उनकी एडीबी के उपाध्यक्ष के तौर पर नियुक्त भारत सरकार की सिफारिश पर हुई है. एडीबी और अन्य बहुपक्षीय एजेंसियों के कामकाज की जानकारी रखने वाले लोगों का कहना है कि कोई भी अंतरराष्ट्रीय संस्था तब तक किसी की नियुक्ति की घोषणा नहीं करती हैं जब तक कि वह व्यक्ति जिसे नियुक्त किया जा रहा है अपनी स्वीकृति नहीं दे देता है.
इसके साथ ही बहुपक्षीय एजेंसियों में उच्चस्तर पर कोई भी नियुक्ति सरकार की सहमति के बिना भी नहीं होती हैं. चुनाव आयोग के सूत्रों का कहना है कि लवासा ने अभी इस्तीफा नहीं दिया है. उन्हें एडीबी में सितंबर में कार्यभार संभालना है. इससे पहले वर्ष 1973 में मुख्य चुनाव आयुक्त नगेन्द्र सिंह को इस्तीफा देना पड़ा था. उन्हें हेग में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में न्यायधीश नियुक्त किया गया था.
लवासा ने 23 जनवरी 2018 को चुनाव आयुक्त का कार्यभार संभाला था. वह मौजूदा मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा के बाद अगले साल अप्रैल में मुख्य चुनाव आयुक्त बन सकते थे. ऐसे में आयोग उनके नेतृत्व में उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा सहित अन्य राज्यों में विधानसभा चुनाव करता. लवासा के बाद आयुक्त सुशील चंद्र मुख्य चुनाव आयुक्त के पद के दावेदार होंगे.
चुनाव आयोग (चुनावा आयुक्तों की सेवा शर्तों और कामकाज) अधिनियम 1991 के प्रावधानों के मुताबिक कोई भी चुनाव आयुक्त अथवा मुख्य चुनाव आयुक्त अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को भेज सकता है. लवासा वर्ष 2019 में उस समय सुर्खियों में आये जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पूर्व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को चुनाव आचार संहिता नियमों का उल्लंघन किये जाने के मामले में क्लीन चिट दिये जाने के मामले में उन्होंने भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) को अपना असहमति नोट दिया था. चुनाव समाप्त होते ही लवासा की पत्नी सहित उनके परिवार के तीन सदस्य आय की घोषणा नहीं करने और कथित रूप से आय से अधिक संपत्ति के मामले में आयकर विभाग की जांच के घेरे में आ गये.
एडीबी उपाध्यक्ष की नियुक्त तीन साल के लिये करती है जिसे दो साल और बढ़ाया जा सकता है. एडीबी के अध्यक्ष छह उपाध्यक्षों के साथ प्रबंधन टीम का नेतृत्व करते हैं. आस्ट्रेलिया की सदर्न क्रास यूनिवर्सिटी से एमबीए डिग्री धारक, मद्रास यूनिवर्सिटी से रक्षा एवं रणनीतिक अध्ययन में एमफिल डिग्रीधारक लवासा 1980 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के हरियाणा कैडर के अधिकारी है. वह वित्त सचिव के पद से सेवानिवृत हुए थे.
एडीबी ने कहा है कि लवासा भारतीय सिविल सेवा के क्षेत्र में बेहतर करियर रहा है. उन्हें सार्वजनिक- निजी भागीदारी और अवसंरचना विकास के क्षेत्र में राज्य और संघीय क्षेत्र में व्यापक अनुभव है. उन्हें सार्वजनिक नीति और निजी क्षेत्र के भूमिका का भी गहरा ज्ञान है. पेरिस समझौते की जलवायु परिवर्तन वार्ता में उन्होंने भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया और भारत के राष्ट्रीय रूप से निर्धारित योगदानों को अंतिम रूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसमें निजी क्षेत्र को एक प्रमुख भूमिका में शामिल किया गया था. आर्थिक मामले विभाग में संयुक्त सचिव के तौर पर उन्होंने एडीबी के कई परियोजनाओं में नजदीकी से काम किया. इन परियोजनाओं में निजी क्षेत्र की कंपनियां भी शामिल थी.
Source : Bhasha