25 जून, 1975 को भारत में आपातकाल यानि इमरजेंसी घोषित की गई थी. ये दिन भारत के इतिहास में कभी भी ना बदलने वाला दिन बन गया. आपातकाल का कांग्रेस के दामन पर एक ऐसा दाग है जो कभी भी मिट नहीं सकता है. 1975 में इंदिरा गांधी पर इलाहाबाद उच्च न्याय ने जैसे ही एक फैसला दिया वैसे ही इमरजेंसी की नींव पड़ गई.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद पड़ गई थी इमरजेंसी की 'नींव'
साल 1975 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी को चुनाव में धांधली करने का दोषी पाया गया था. उसके बाद उन पर 6 सालों तक कोई भी पद संभालने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. उस वक्त देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी न्यायालय के इस फैसले को कैसे बर्दाश्त कर सकती थी. इंदिरा गांधी ने कोर्ट के इस फैसले को इंकार कर दिया और फिर सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की घोषणा की.
सिद्धार्थ शंकर राय ने इमरजेंसी लागू करने का दिया था सुझाव
लेकिन इंदिरा गांधी कहां सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करने वाली थी. उन्होंने 25 जून को देश के लोगों की अभिव्यक्ति की आजादी छिनते हुए इमरजेंसी लागू कर दी. इमरजेंसी इंदिरा गांधी के कहने पर लगाया गया था या इसमें किसी और का दिमाग था. इसे लेकर तरह-तरह की बातें सामने आई. लेकिन 25 जून 1975 की सुबह इंदिरा गांधी ने सबसे पहले जिसे याद किया वो नाम था पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर राय का. सिद्धार्थ शंकर राय दिल्ली के बंग भवन में जब आराम कर रहे थे तब उनके पास इंदिरा जी का फोन आया और उन्हें 1 सफ़दरजंग रोड पर तलब किया गया. इंदिरा ने उनसे कहा कि पूरे देश में अव्यवस्था फैल रही है हमें कड़े फैसले लेने की जरूरत है. इंदिरा ने पश्चिम बंगाल के सीएम सिद्धार्थ को इसलिए बुलाया था क्योंकि वह संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ माने जाते थे.
धारा 352 के तहत आपातकाल की घोषणा
सिद्धार्थ ने इंदिरा जी से कहा कि मुझे संवैधानिक स्थिति समझने दीजिए फिर बताता हूं, लेकिन तब इंदिरा जी ने उन्हें जल्दी करने को कहा था. जिसके बाद राय ने भारतीय संविधान के साथ अमरीकी संविधान को पढ़ा और इंदिरा गांधी को धारा 352 के तहत आपातकाल की घोषणा करने का सुझाव दिया.
राष्ट्रपति के पास इंदिरा गांधी सिद्धार्थ के साथ पहुंचीं
जिसके बाद इंदिरा ने सिद्धार्थ को कहा कि वो आपातकाल का प्रस्ताव लेकर राष्ट्रपति के पास जाए और उन्हें समझाए. कैथरीन फ़्रैंक की किताब 'इंदिरा' में लिखा हुआ है कि उस वक्त सिद्धार्थ ने राष्ट्रपति के पास जाने से मना कर दिया, लेकिन कहा कि जब इंदिरा खुद चलेंगी तो वो उनके साथ जाएंगे. जिसके बाद इंदिरा और सिद्धार्थ 25 जून शाम 5 बजे राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद के पास पहुंचे और सारी बातों को बयां किया. जिसके बाद राष्ट्रपति ने इंदिरा को आपातकाल का कागज भेजने को कहा.
राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने इमरजेंसी के पेपर पर साइन किया
राष्ट्रपति के कहने के बाद इंदिरा गांधी ने आपातकाल का पेपर तैयार किया और आरके धवन को पेपर के साथ राष्ट्रपति भवन भेजा. आरके धवन इंदिरा गांधी के निजी सचिव थे. इस पेपर पर राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने साइन करके आपातकाल की घोषणा कर दी.
इमरजेंसी में इन तीन नाम को कोई नहीं भूल सकता
संजय गांधी, वीसी शुक्ल और बंसी लाल ये तीन नाम ऐसे थे जिन्होंने आपातकाल के दौरान पूरे देश में भूचाल ला दिया. चौधरी बंसी लाल उस वक्त हरियाणा के मुख्यमंत्री थे और इंदिरा गांधी के बड़े मुरीद थे. वहीं, विद्याचरण शुक्ल(वीसी शुक्ल) मध्य प्रदेश के कद्दावर नेताओं में से गिने जाते थे. आपातकाल के दौरान वीसी शुक्ल और भी ज्यादा उभर कर सामने आए.
संजय गांधी के साथ इन दो नाम ने मचाया उपद्रव
आपातकाल के दौरान संजय गांधी, वीसी शुक्ल और बंसी लाल ने उपद्रव मचाया. अखबारों की बिजली काटने, संपादकों को जेल भेजने, जबरन नसबंदी कराना. ये तमाम काम इनलोगों ने मिलकर की. इंदिरा ने भले ही आपातकाल की घोषणा की थी, लेकिन संजय गांधी उसका पूरा फायदा उठाने चाहते थे. अखबारों की बिजली काटना,अदालतें बंद करने का पूरा आइडिया संजय गांधी का था.
इमरजेंसी में इंदिरा नहीं संजय गांधी ने थामा था कमान
कहा जाता है कि आपातकाल के दौरान इंदिरा के हाथ से कमान पूरी तरह संजय गांधी ने ले लिया था. इमरजेंसी के दौरान विपक्षी नेताओं की गिरफ़्तारी का आदेश देना, सेंसरशिप लागू करना और सरकारी कामकाज में हस्तक्षेप करने में संजय गांधी का काम बन गया था. इतना ही नहीं जब उस वक्त के सूचना मंत्री इंदर कुमार गुजराल ने संजय गांधी का विरोध किया तो उन्हें उनके पद से हटा दिया गया. इतना ही नहीं पूरे देश में जबरन परिवार नियोजन करा के संजय गांधी ने जनता को कांग्रेस के विरूद्ध कर दिया था. 21 मार्च 1977 तक यानी 21 महीने तक देश में आपातकाल रहा इस दौरान इंदिरा गायब थी और संजय गांधी मुख्य भूमिका में नजर आए. कहा जाता है कि आपातकाल के दौरान कई बार संजय गांधी ने अपनी मां इंदिरा गांधी के साथ बदसलूकी भी की थी.
Source : NITU KUMARI