भारत और ताइवान तेजी से करीब आते जा रहे हैं. सिर्फ इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी और सेमीकंडक्टर ही नहीं ताइवान अपनी रक्षा जरूरतों और भारत के 'मेक इन इंडिया' अभियान में बनने वाले अत्याधुनिक रक्षा उपकरणों में साझेदार भी साबित हो सकता है. ताइवान सरकार के कैबिनेट मंत्री डॉक्टर जॉन डेंग की माने तो दोनों देशों के बीच भविष्य में हर क्षेत्र में काम करने की अपार संभावनाएं हैं. बता दें कि ताइवान को हल्के लड़ाकू विमानों की आवश्यकता है जो फिलहाल एफ-16 वाईपर के जरिए पूरी की जा रही है, इसमें भारत का लाइट मल्टीरोल कॉम्बैट फाइटर जेट तेजस एक महत्वपूर्ण विकल्प बन सकता है, जबकि ताइवान के पड़ोसी देश जैसे इंडोनेशिया, फिलीपींस और वियतनाम ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल सिस्टम में दिलचस्पी जता चुके हैं, हालांकि इन दोनों विकल्पों की खरीद पर डॉक्टर जॉन ने स्पष्ट तौर पर हामी नहीं भरी, लेकिन यह जरूर कहा कि रक्षा क्षेत्र में दोनों देश मिलकर काम कर सकते हैं.
ताइवान भारत मिलकर बनेगा सेमीकंडक्टर सुपर पावर
सेमीकंडक्टर चिप मैन्युफैक्चरिंग में ताइवान की दो कंपनियां बेताज बादशाह है-टीएसएमसी और फॉक्सकॉन. इसमें से एक कंपनी यानी फॉक्सकॉन चिप मैन्युफैक्चरिंग और वेपर के असेंबली प्लांट को लेकर भारत में निवेश की संभावनाएं तलाश रही है. वाणिज्य मंत्री की मानें तो आने वाले वक्त में दोनों देशों के बीच इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी और सेमीकंडक्टर, हार्डवेयर, मैन्युफैक्चरिंग में सहयोग और शोध की अपार संभावनाएं हैं. गौरतलब है कि भारत सरकार द्वारा पीएलआई स्कीम के तहत सेमीकंडक्टर और चिप मेनिफेस्टईयररिंग में विदेशी निवेशकों के लिए आकर्षक विकल्प रखे गए हैं इसका फायदा अब ताइवान की कंपनियां भी उठाते हुए नजर आ रहे हैं. इसके अलावा इलेक्ट्रिक वहीकल प्रोडक्शन में भी दोनों देश सहयोग कर रहे हैं.
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अमेरिका से उम्मीद, लेकिन अपने दम पर लड़ेंगे चीन से लड़ाई
ताइवान सरकार के कैबिनेट मंत्री डॉक्टर जॉन डेंग ने कहा कि अमेरिका ने हमारे रक्षा क्षेत्र में बड़ा सहयोग किया है. आगे भी हमें अमेरिका के अलावा भारत, जापान समेत ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया से सहयोग की उम्मीद है, लेकिन जहां तक चीन से संभावित युद्ध की बात है, हम अपनी आजादी और लोकतंत्र की रक्षा के लिए अपने दम पर लड़ने के लिए तैयार है.
HIGHLIGHTS
- भारत-ताइवान में सहयोग बढ़ाने की तैयारी
- रक्षा क्षेत्र में भी सहयोग बढ़ाएंगे दोनों देश
- ताइवान को आधिकारिक मान्यता नहीं देता भारत