चीन की ओर से लद्दाख में लगातार जारी हस्तक्षेप के खिलाफ भारतीय विदेश मंत्री ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है. जयशंकर ने कहा है कि एलएसी को बदलने के किसी भी प्रयास को सफल नहीं होने दिया जाएगा. भारत के लिए उसकी सुरक्षा पहली प्राथमिकता है. ये बातें उन्होंने चीन-पाकिस्तान के संयुक्त समुद्री अभ्यास के बारे में बात करते हुए कही है. विदेश मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी की नेतृत्व वाली सरकार में हमेशा देश की सुरक्षा को प्राथमिकता दी जाती है. भारत-चीन के बीच जारी सीमा विवाद के लिए उन्होंने कांग्रेस सरकार को दोषी ठहराते हुए कहा कि एलएसी मुद्दा मुख्य रूप से 1962 में लद्दाख पर चीन के कब्जे की कारण है.
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विदेश मंत्री ने आगे कहा कि भारत को एक ऐसे देश के रूप में भी देखा जाता है, जो अपने लोगों की देखभाल करने में सक्षम है. उन्होंने कहा, राष्ट्रीय सुरक्षा निस्संदेह पहली प्राथमिकता है. यथास्थिति बनाए रखना एक अन्य विशेषता है, जिसने नरेंद्र मोदी सरकार की विदेश नीति को परिभाषित किया है. चाहे चीन हो, यूक्रेन हो या पाकिस्तान, यह सरकार एक स्टैंड लेती है और उस पर टिकी रहती है और मीडिया या चुनावों में गढ़ी गई राय से प्रभावित नहीं होती है.
जी 20 देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक से अलग भारत-चीन वार्ता पर आए थे अलग-अलग बयान
गौरतलब है कि भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने हाल ही में बाली में जी 20 देशों की बैठक से अलग चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की था. इस वार्ता के बाद भारत की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति, चीन द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति से काफी अलग था. भारतीय प्रेस विज्ञप्ति में पूर्वी लद्दाख में 1597 किलोमीटर की वास्तविक नियंत्रण रेखा पर यथास्थिति की बहाली के लिए बुलाई गई बैठक में द्विपक्षीय संबंधों के लिए सीमा समाधान की केंद्रीयता पर प्रकाश डाला गया था. वहीं, चीनी प्रेस रिलीज में उल्लेख किया गया था कि जयशंकर ने इस मुद्दे को ऐसे उठाया, जैसे कि भारत-चीन के बीच सीमा गतिरोध बड़े द्विपक्षीय कैनवास पर सिर्फ एक छोटा सा मुद्दा हो. अतीत में जब दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) क्षेत्र में देपसांग बुलगे में 2013 के उल्लंघन के प्रभाव को द्विपक्षीय संबंधों के संदर्भ में जनता से दूर रखा गया था, इसके विपरीत मोदी सरकार अप्रैल 2020 की यथास्थिति के लिए प्रतिबद्ध है. द्विपक्षीय संबंधों की बहाली की दिशा में यही एकमात्र रास्ता है.
Source : News Nation Bureau