3 घंटे के तूफान (Fani) के दौरान सब कुछ हिलता हुआ दिख रहा था. कार समुन्द्र से 2 किलोमीटर दूर लाये तब भी इनोवा जैसी भारी कार भी पत्तों की तरह से कांपने लगी. बस सामने पलट गई और कार को लेकर एक दम एक बड़ी बिल्डिंग के किनारे लगा कर अंदर खड़े हुए. शूट के साथ साथ उड़ते हुए साइन बोर्ड और दूसरी चीजों से बचाना, यह सब एक काम का हिस्सा है, लेकिन तीन घंटे के बाद शुरू हुआ काम विनाश लीला को देखने का. नेटवर्क जाम ही चुका चुका.
लाइट थी नहीं और सड़कों पर पानी ही पानी था. शूट शुरू हुआ तो दिखा कि अब कहीं निकला नहीं जा सकता था. पेड़ और पोल सड़कों पर थे. यही से दिखा कि प्रशासन के पास रोड ओपनिंग का कोई ठोस प्लान नहीं है. दिन के 12 बजे से रात तक कोई रोड पुरी से भी बाहर नहीं निकल पा रहा था.
एक मुहल्ले से दूसरे और दूसरे से तीसरे , इस तरह से पूरा पुरी घूम लिया गया, लेकिन बाहर आना बंद था. होटल पहले दिन ही सील कर दिए गए थे. दुकाने बंद थी. और कोई खबर बाहर नहीं जा पा रही थी. आखिर रात को 10 बजे खुद ही रास्ता बनाने का काम शुरू किया एक पुलिस जीप के सहारे जिसको भुबनेश्वर जाना था.
तब दिखा कि ये कोई अज़ब काम है कि गाँव वाले किसी मदद को तैयार होना तो दूर अब रोड खोलने देने के ही खिलाफ आवाज़ उठा रहे थे. उनको लग रहा था कि यह बंद रहेगा और लोग चिल्लाएँ तो सरकार यहां आएंगी, लेकिन हम लोगों के सामने सवाल था कि सरकार तो जब आएं तब आये लेकिन हम को अभी निकलना है, सो पुलिस की मदद से हमे काम शुरू किया कई जगह तो पेड़ की पोजिशन बता रही थी कि वो जहाँ अभी पड़े है वहाँ गिरे नहीं थे.
खैर एक लंबी कवायद की बाद हाइवे दिखा तो सांस में सांस आये और सही से बैठे ही थे कि सांस ही बंद हो गई. सामने हाईवे पर ओवर रोड साइन बोर्ड इस तरह गिरा था कि वहाँ से कोई जा ही नहीं सकता था. अब खड़े होकर सरकार का इंतजार कर रहे थे जो हाईवे पर भी नहीं थी जहाँ से एम्बुलेंस को जान था और यह तूफान गुज़र जाने के 10 घंटे बाद की हालत थी. हालांकि हम तो और भी बुरे फंसे जब हम एक नया रास्ता ले लिया.
वो कहानी फिर कभी 2 घंटे सिर्फ डर के साथ. हालांकि तूफान सिर्फ वही उड़ा पाया जिसकी पहले से उम्मीद थी. कमजोर, और कच्चे घर, तीन की छतें, झोपड़ियां, सड़क पर बिजली के पोल्स, रोड साइड पर खड़े वाहन और हज़ारों या लाख के करीब पेड़ ( यह सिर्फ आंकलन है क्योंकि पुरी, भुबनेश्वर और कटक में घुमा हूँ उस आधार पर). छह लोगो की मौत की दुखद सोचना भी थी. हालांकि नक्शा बदल ज़रूर गया कुछ दिन तक.
Source : DHIRENDRA PUNDIR