पद्मा पुरस्कारों की घोषणा हो चुकी है, बेंगलुरु की डॉक्टर प्रेमा धनराज को मेडिसिन के क्षेत्र में पद्मा श्री पुरस्कार से नवाजा जाएगा .प्रेमा जब आठ साल की थी और 5 कक्षा में पड़ रही थीं,एक दिन स्कूल से वापस घर पहुंची. रसोई में स्टोव जलाया तभी स्टोव ब्लास्ट हूआ और वे 50% जल गई. बेंगलुरु में कई जगह पर घरवालों ने इलाज कराया लेकिन ज्यादा फर्क नहीं हुआ. इसके बाद माता पिता ने प्रेमा को सीएमसी वेल्लोर इलाज के लिए लिया. प्रेमा को तीन बार ऑपरेशन थियेटर लाया गया लेकिन उनका ऑपरेशन नहीं हो पाया क्योंकि डॉक्टर उनके मुंह में ट्यूब नही डाल पाए. इसके बाद प्रेमा की मां ने मन्नत मांगी की अगर उनका ऑपरेशन हो जाता है और वो ठीक हो जाएगी तो वो प्रेमा को डॉक्टर बनाएगी.
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बस इसी मन्नत के बाद प्रेमा का ऑपरेशन हो पाया और वो ठीक हो गईं. इसके बाद प्रेमा अस्पताल से घर आ गईं, मगर एक साल तक उनके घर वालों ने उन्हें शीशा देखने नही दिया. एक दिन जब प्रेमा ने अचानक अपना चेहरा देखा तो वो टूट गई लेकिन उनके माता पिता ने उन्हें हौसला दिया और प्राइवेट बोर्ड के जरिए तीन साल बाद दसवी की परीक्षा दिलाई. स्कूल से कॉलेज तक प्रेमा का सफर आसान नहीं था, लोग उसे देखते ही रहते थे,उसे डेविल बुलाते थे. उससे बात नहीं करते थे, लेकिन उसने हिम्मत नही हारी और आगे बढ़ती रही. फिर एमबीबीएस किया और नौकरी के लिए सीएमसी वेल्लोर चली गई.
फिर उन्होंने ने प्लास्टिक सर्जरी की डिग्री हासिल की. 1997 में उन्हे एक अंतराष्ट्रीय अवार्ड मिला, जिसके बाद 1998 में उन्होंने अग्नि रक्षा संस्था की शुरुवात की, जहां पर उन्होंने अब तक 25 हजार महिलाओं,लड़कियों का इलाज और मदद की है. ये सब किसी न किसी वजह से जल गई थीं. अग्नि रक्षा में इलाज के साथ साथ सभी मरीजों की counselling भी की जाती है और स्किल डेवलपमेंट का काम भी सिखाया जाता है. डॉक्टर प्रेमा कहती है की ऊपरवाले का हर फैसला सोच समझ कर लिया होता है. वे सिंगर बनाना चाहती थी लेकिन इस हादसे की वजह से डॉक्टर बनी हजारों लोगो की मदद कर रही हैं. अगले जन्म में भी वो आगे ऐसी ही जल गई तो उसे कोई गम नही होगा. प्रेमा नागराज युवा पीढ़ी को भी नसीहत दे रही हैं की वो असफलता से डरे नहीं. आज थोड़ी सी समस्या से लोग परेशान होते है और आत्महत्या करते है. यह गलत है.
Source : News Nation Bureau