हिंदी साहित्य के बड़े कवि केदारनाथ सिंह का सोमवार को दिल्ली में निधन हो गया। 83 साल के केदारनाथ सिंह काफी दिनों से बीमार थे और एम्स अस्पताल में रात करीब 8:45 बजे उन्होंने आखिरी सांस ली।
दिल्ली के लोधी रोड स्थिति श्मशान घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।
केदारनाथ सिंह का जन्म 1934 में उत्तर प्रदेश के बलिया में हुआ था। उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्लायल से 1956 में हिंदी में एमए और 1964 में पीएचडी की उपाधि हासिल की थी।
गोरखपुर में कुछ दिनों हिंदी पढ़ाने के बाद दिल्ली के जेएनयू में वो हिंदी भाषा विभाग के अध्यक्ष पद से रिटायर हुए थे। उन्होंने कई चर्चित कविताएं लिखी थी और जटिल विषयों पर बेहद आसान शब्दों में कविता लिखना उनकी सबसे बड़ी खासियत थी।
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हिंदी साहित्य में अमूल्य योगदान के लिए उन्हें साल 2013 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा गया था। उनकी कई कविताएं बेहद चर्चित हुईं थी। पेश हैं उनके कुछ अंश
हाथ
उसका हाथ अपने हाथ में लेते हुए मैंने सोचा
सोचा को हाथ की तरह गर्म और सुंदर होना चाहिए
जाना
मैं जा रही हूं- उसने कहा
जाओ - मैंने उत्तर दिया
यह जानते हुए कि जाना
हिंदी की सबसे खौफनाक क्रिया है
पूंजी
सारा शहर छान डालने के बाद
मैं इस नतीजे पर पहुँचा
कि इस इतने बड़े शहर में
मेरी सबसे बड़ी पूँजी है
मेरी चलती हुई साँस
मेरी छाती में बंद मेरी छोटी-सी पूँजी
जिसे रोज मैं थोड़ा-थोड़ा
खर्च कर देता हूं
बनारस
इस शहर में वसंत
अचानक आता है
और जब आता है तो मैंने देखा है
लहरतारा या मडुवाडीह की तरफ़ से
उठता है धूल का एक बवंडर
और इस महान पुराने शहर की जीभ
किरकिराने लगती है
इसके अलावा टॉलस्टॉय और साइकिल, अकाल में सारस, उत्तर कबीर और सृष्टि जैसी कविताएं बेहद शानदार थी।
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Source : News Nation Bureau