कोरोना महामारी से मिली आर्थिक चुनौतियों से निपटने में भारत की अर्थव्यवस्था की धुरी कृषि का क्षेत्र और अन्नदाता किसानों की उपयोगिता का अहसास पूरे देश को हुआ और केंद्र सरकार ने कृषि क्षेत्र में आमूलचूल सुधार लाने के लिए साल 2020 में तीन कृषि कानून लागू किए. मगर, किसानों को ये मोदी सरकार द्वारा लाए गए कानून मंजूर नहीं है और वे इसके खिलाफ सड़कों पर हैं. साल के आखिर में अब कृषि सुधार पर किसान और सरकार के बीच जारी तकरार के समाधान का इंतजार है. साल 2020 के आरंभ में ही कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के बजटीय आबंटन में पिछले साल के मुकाबले करीब 30 फीसदी की बढ़ोतरी करके केंद्र सरकार ने यह संकेत दे दिया था कि मोदी-2.0 में भी कृषि और संबद्ध क्षेत्र पर सरकार का मुख्य फोकस रहेगा.
कोरोना महामारी के संकट के बावजूद मोदी सरकार ने अपनी प्रतिबद्धता दिखाते हुए कृषि क्षेत्र के तमाम कार्यक्रमों को जारी रखते हुए ऐतिहासिक नीतिगत सुधार को अंजाम दिया. कोरोना काल में तीन अहम अध्यादेश के माध्यम से कृषि और संबद्ध क्षेत्र में सुधार के बयार लाने के लिए नये कानून लागू किए गए. हालांकि इन कानूनों को लेकर देश में विरोध उसी समय शुरू हो गया था. लेकिन संसद के मानसून सत्र में जब इन अध्यादेशों के एवज में तीन विधेयक लाए गए तो तमाम विपक्षी दलों ने इनका विरोध किया. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का एक पुराना सहयोगी शिरोमणि अकाली दल (शिअद) ने सरकार का साथ छोड़ दिया. इसके बाद से सुधार के इन तीनों कानूनों पर लगातार रार जारी है और बीते एक महीने से देश की राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर किसान आंदोलनरत हैं.
नये कृषि कानूनों का विरोध हालांकि जून में अध्यादेशों की अधिघोषणा के बाद से ही शुरू हो गया था, लेकिन शुरूआत में मंडियों के व्यापारी और आढ़ती इनके खिलाफ थे, क्योंकि नये कानून से राज्यों में कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) द्वारा संचालित मंडियों के भविष्य को लेकर चिंता पैदा हो गई थी. पंजाब और हरियाणा में जहां देश में सबसे सशक्त एपीएमसी मंडी व्यवस्था है, वहां के किसान भी इसके विरोध में आ गए क्योंकि उन्हें मंडियां समाप्त होने से फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) नहीं मिलने का खतरा दिखने लगा. पंजाब में अगस्त में किसानों का आंदोलन धीरे-धीरे जोर पकड़ने लगा. केंद्र सरकार द्वारा लागू कानून के खिलाफ किसानों के लामबंद होने से इस ओर राजनीतिक दल भी आकृष्ट होने लगे और संसद के मानसून सत्र में जब विधेयक पेश किए गए तो दोनों सदनों में विपक्षी दलों ने विधेयकों में खामियां गिनाकर इनका पुरजोर विरोध किया. शिअद कोटे से कैबिनेट मंत्री हरसिमरन कौर बादल ने खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. विपक्षी दलों के कुछ सांसदों ने विधेयकों को पारित करने से पहले संसदीय समिति के पास भेजने की मांग की तो कुछ सांसदों ने संशोधन के सुझाव दिए. हालांकि उनकी मांगों को नजरंदाज करते हुए तीनों विधेयक दोनों सदनों में पारित करवाने के बाद केंद्र सरकार ने इन्हें लागू कर दिए.
केंद्र सरकार द्वारा कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून 2020, कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार कानून 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020 के रूप सितंबर में लागू होने के बाद पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई किसान संगठन इसके विरोध में किसानों को लामबंद करने लगे और अक्टूबर में पंजाब में किसानों का प्रदर्शन काफी तेज हो गया.
इस विरोध प्रदर्शन को देखते हुए केंद्र सरकार ने किसान संगठनों को बातचीत के लिए बुलाया और 14 अक्टूबर को कृषि सचिव ने किसान नेताओं से बातचीत की जोकि केंद्र सरकार से किसानों की पहली वार्ता थी. मगर वार्ता का कोई नतीजा नहीं निकला क्योंकि किसानों ने तीनों कानूनों को रद्द करने की मांग की. किसानों ने तीनों कानूनों का निरस्त करने के साथ-साथ एमएसपी पर फसलों की खरीद की गारंटी के लिए एक नया कानून बनाने की मांग की. उनकी मांगों की फेहरिस्त हालांकि और लंबी है. किसान पराली दहन से संबंधित अध्यादेश में किए गए भारी दंड व जुर्माना को वापस लेने के साथ-साथ बिजली संशोधन विधेयक 2020 को वापस लेने की भी मांग कर रहे हैं.
किसानों ने अपनी मांगों को लेकर आंदोलन तेज कर दिया. पंजाब में रेल सेवा ठप हो गई. इसके बाद किसान संगठनों को मंत्री स्तर की वार्ता के लिए बुलाया गया.
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, रेलमंत्री पीयूष गोयल और केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग राज्यमंत्री सोम प्रकाश के साथ 13 नवंबर को यहां विज्ञान-भवन में किसान नेताओं के साथ हुई वार्ता भी बेनतीजा रही और आगे वार्ता जारी रखने पर सहमति बनी. लेकिन किसानों ने 26 नवंबर को दिल्ली चलो का एलान कर दिया. पंजाब और हरियाणा के साथ-साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान तय कार्यक्रम के अनुसार दिल्ली की सीमाओं पर पहुंचे और तब से वे सिंघु बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर, गाजीपुर बॉर्डर व अन्य जगहों पर डेरा डाले हुए हैं. हालांकि सरकार ने उन्हें पहले तीन दिसंबर को फिर वार्ता के लिए आमंत्रित किया था. मगर, किसानों के आंदोलन को देखते हुए उन्हें एक दिसंबर को ही बुलाया गया और विज्ञान भवन में आयोजित मंत्री स्तरीय यह वार्ता भी बेनतीजा रही क्योंकि किसान संगठनों के नेता तीनों कानूनों का निरस्त करवाने की अपनी मांग पर कायम रहे.
आगे फिर तीन दिसंबर और पांच दिसंबर को किसान नेताओं के साथ हुई मंत्री स्तरीय वार्ताएं भी विफल रहीं. हालांकि छठे दौर की वार्ता जारी रखने के लिए नौ दिसंबर की तारीख तय हुई मगर इससे पहले आठ दिसंबर को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कुछ किसान नेताओं की एक कमेटी के साथ मुलाकात की जिसमें यह तय हुआ है कि सरकार उन्हें किसानों की समस्याओं के समाधान को लेकर प्रस्ताव भेजेगी और उस पर उनकी सहमति के बाद आगे की वार्ता की जाएगी. इसके बाद से लगातार अगले दौर की वार्ता के लिए दोनों तरफ से हो रहे पत्राचार में कहा जा रहा है कि वे मसले के समाधान के लिए वार्ता करने को तैयार हैं. मगर वार्ता की तारीख व समय तय नहीं हुआ है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 दिसंबर को एक कार्यक्रम में किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि वह उनके विश्वास पर कोई आंच नहीं आने देंगे. प्रधानमंत्री ने आंदोलनरत किसानों से किसी के बहकावे में नहीं आने की हिदायत देते हुए तर्क और तथ्य के आधार पर विचार करने की अपील की है. वित्त वर्ष 2020-21 के बजट में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के लिए 1,42,762 करोड़ रुपये बजट का प्रावधान किया गया जोकि पिछले वित्त वर्ष में की तुलना में 30 फीसदी अधिक है.
Source : IANS