Farmers Protest: किसान अपनी मांगों को लेकर एक बार फिर से सड़कों पर उतर आए हैं, लेकिन इस बार पंजाब और हरियाणा समेत कुछ अन्य राज्यों के किसान ही आंदोलन कर रहे हैं. संयुक्त किसान मोर्चा और चढूनी गुट समेत कई संगठनों ने इस बार किसान आंदोलन से दूरी बना ली है. बता दें कि करीब दो साल पहले राजधानी दिल्ली में किसानों ने एक साल से ज्यादा समय तक आंदोलन किया था. किसानों के उस आंदोलन का असर ये हुआ कि केंद्र सरकार को तीन कृषि कानूनों को वापस लेना पड़ा. लेकिन अब किसान एक बार फिर से दिल्ली पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं.
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हालांकि पुलिस के कड़े सुरक्षा इंतजामों के चलते किसान दिल्ली नहीं पहुंच पा रहे हैं. बता कोरोना काल के समय हुए किसान आंदोलन में 32 किसान संगठनों ने संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले आंदोलन किया था, लेकिन अब ये किसान मोर्चा तीन गुटों में बंट गया है. पहला एसकेएम (पंजाब) और दूसरा एसकेएम (गैर राजनीतिक) और तीसरा किसान मजदूर मोर्चा (केएमएम).
दिल्ली के इन बॉर्डर्स पर तैनात की गई पुलिस
पंजाब और हरियाणा के किसानों के साथ कुछ अन्य राज्यों के किसान भी दिल्ली कूच कर रहे हैं लेकिन उन्हें राजधानी में घुसने से रोकने के लिए दिल्ली के तमाम बोर्डर्स पर कड़ी सुरक्षा की गई है. सिंघु बॉर्डर हो या फिर गाजीपुर बॉर्डर, कांलिंदी कुंज बॉर्डर, शंभू बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर और झरौंदा बॉर्डर हर जगह कड़ी सुरक्षा की गई है. दिल्ली से सटी सीमाओं पर जाम लग गया है.
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फिर सड़कों पर उतरे किसान
किसानों के इस आंदोलन ने एक बार फिर से 2020-21 के किसान आंदोलन की याद दिला दी, लेकिन इस बार के किसान आंदोलन में काफी बदलाव देखने को मिला है. क्योंकि किसान संगठन में पड़ी फूट के चलते कई नए संगठन अस्तित्व में आए हैं. जिसके चलते इस बार का आंदोलन पहले वाले आंदोलन से काफी बदला हुआ है. ऐसा माना जा रहा है कि ऐसा कहा जा रहा है कि पिछली बार की तुलना में इस बार ज्यादा किसान संगठन दिल्ली की ओर कूच कर रहे हैं. 2020-21 के आंदोलन की अगुवाई जहां संयुक्त किसान मोर्चा ने की थी तो वहीं अब इस आंदोलन को पिछली बार की तरह सभी किसान संगठनों का समर्थन नहीं मिल रहा.
ये किसान संगठन कर रहे आंदोलन की अगुवाई
इस बार के किसान आंदोलन की अगुवाई जगजीत सिंह दल्लेवाल का संयुक्त किसान मोर्चा (अराजनैतिक) और किसान मजदूर मोर्चा कर रहे हैं. बता दें कि ये दोनों संगठन पहले संयुक्त किसान मोर्चा का हिस्सा रहे हैं. 18 किसान समूहों से मिलकर बने किसान मजदूर मोर्चा के संयोजक सरवन सिंह पंढेर हैं. इन दोनों संगठनों में राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के किसान शामिल हैं. बता दें कि नवंबर 2020 में हुए किसान आंदोलन में जहां 32 संगठन शामिल थे. जिनकी टूटकर संख्या अब 50 हो गई है. किसानों का कहना है कि इस बार 200 से अधिक किसान संगठन दिल्ली कूच में शामिल हैं.
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इन किसान संगठनों ने बनाई आंदोलन से दूरी
बता दें कि इस बार कई किसान संगठनों ने आंदोलन से दूरी बना ली है. इसमें पहले किसान आंदोलन में शामिल रहे किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी का नाम भी शामिल है. इस बार वह किसानों के दिल्ली कूच पर सवाल उठा रहे हैं. चढूनी का आरोप है कि इस आंदोलन से उन नेताओं को अलग रखा गया है जो पिछले आंदोलन में शामिल थे. उन्होंने कहा कि, "पिछली बार विरोध प्रदर्शन खत्म करने से पहले तय हुआ था कि जरूरत पड़ने पर फिर से आंदोलन किया जाएगा. लेकिन इस बार आंदोलन शुरू करने से पहले कोई बैठक नहीं बुलाई गई. इसलिए मैं इस विरोध प्रदर्शन में शामिल नहीं होऊंगा.
संयुक्त किसान मोर्चा भी आंदोलन में शामिल नहीं
वहीं ऑल इंडिया किसान सभा के वाइस प्रेसिडेंट और संयुक्त किसान मोर्चा नेता हनन मोल्ला का कहना है कि ऑल इंडिया किसान सभा संयुक्त किसान मोर्चा का सबसे बड़ा दल है. लेकिन हम इस प्रदर्शन में शामिल नहीं हो रहे. मोल्ला ने कहा कि किसान आंदोलन के बाद संयुक्त किसान मोर्चा से कुछ दल अलग हो गए. इस आंदोलन को उन्हीं ने बुलाया है.
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ये हैं किसानों की मांग
इस बार आंदोलन कर रहे किसानों की मांग है कि एमएसपी पर गारंटी कानून लाया जाए. इसके साथ ही किसान संगठन स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू कराने की भी मांग कर रहे हैं. किसानों की पेंशन और ऋण माफी भी इस आंदोलन का बड़ा मुद्दा है. इनके अलावा किसान संगठन पिछले आंदोलन के दौरान दर्ज किए गए मुकदमों को भी खत्म करने की मांग कर रहे हैं.
Source : News Nation Bureau