केंद्र सरकार के तीन कृषि अधिनियमों के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसानों ने बुधवार को कहा कि सरकार नए कृषि कानूनों में "निरर्थक" संशोधन करने की बात को नहीं दोहराए, क्योंकि इन्हें पहले ही खारिज किया जा चुका है, बल्कि वार्ता को बहाल करने के लिए लिखित में "ठोस" पेशकश लेकर आए. सरकार की वार्ता की पेशकश पर दिए जवाब में किसान नेताओं ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि अगर उन्हें कोई ठोस प्रस्ताव मिलता है तो वे खुले दिमाग से बातचीत के लिए तैयार हैं, लेकिन यह स्पष्ट किया कि वे तीन कृषि कानूनों को पूरी तरह से निरस्त करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के लिए कानूनी गारंटी से कम पर कुछ भी स्वीकार नहीं करेंगे.
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स्वराज अभियान के नेता योगेंद्र यादव ने कहा कि अगर सरकार एक कदम उठाएगी, तो किसान दो कदम उठाएंगे. उन्होंने साथ में सरकार से "प्रेम पत्र" लिखना बंद करने को कहा. ऑल इंडिया किसान सभा के नेता हन्नान मौला ने दावा किया कि सरकार किसानों को थकाना चाहती है ताकि प्रदर्शन खत्म हो जाए. केंद्रीय कृषि मंत्रालय में संयुक्त सचिव विवेक अग्रवाल को लिखे पत्र में संयुक्त किसान मोर्चा ने आरोप लगाया कि सरकार किसानों के साथ अपने "राजनीतिक विरोधियों " की तरह सलूक कर रही है. इस मोर्चे में 40 किसान संघ शामिल हैं जो दिल्ली की सीमाओं पर 27 दिनों से प्रदर्शन कर रहे हैं. संघ के नेताओं की तीन घंटे तक चली बैठक के बाद किसान नेता शिवकुमार कक्का ने बताया, " हम पहले ही गृह मंत्री अमित शाह को बता चुके हैं कि प्रदर्शनकारी किसान संशोधनों को स्वीकार नहीं करेंगे."
मोर्चा के सदस्य यादव ने कहा, "किसान संघ सरकार के साथ बातचीत करने को तैयार हैं और सरकार के मेज़ पर खुले दिमाग से आने का इंतज़ार कर रहे हैं." उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार किसान संघों के साथ समानांतर बातचीत कर रही है, जिसका प्रदर्शन से कोई संबंध नहीं है और इसे तीन कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन को पटरी से उतारने की कोशिश बताया. केंद्र के 20 दिसंबर के पत्र के जवाब में लिखी चिट्ठी को पढ़ते हुए यादव ने कहा, " हम आपसे (सरकार से) नए कृषि कानूनों में "निरर्थक" संशोधन करने की बात को नहीं दोहराने का आग्रह करते हैं, जिन्हें हम पहले ही खारिज कर चुके हैं, बल्कि लिखित रूप में एक ठोस प्रस्ताव के साथ आएं, जो नए सिरे से बातचीत का एजेंडा बन सके."
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मोर्चा ने अपने पत्र में कहा, "हमें आश्चर्य है कि सरकार हमारी मूल आपत्तियों को समझ नहीं पा रही है. किसानों के प्रतिनिधियों ने इन कृषि कानूनों को पूरी तरह से निरस्त करने की मांग की है... लेकिन सरकार बड़ी चतुराई से यह दिखाना चाहती है कि हमारी मांगें संशोधन के लिए हैं. " पत्र में कहा गया है, " अपनी पिछली वार्ता में, हमने सरकार से स्पष्ट रूप से कहा था कि हम संशोधन नहीं चाहते हैं. " यादव ने आरोप लगाया कि सरकार यह दिखाना चाहती है कि किसान बातचीत करने के लिए तैयार नहीं हैं. गेंद सरकार के पाले में है क्योंकि किसान बातचीत के लिए तैयार हैं लेकिन वार्ता ठोस प्रस्ताव मिलने के बाद ही होगी.
कक्का ने कहा कि सरकार को "अपनी ज़िद छोड़नी चाहिए" और किसानों की मांगों को स्वीकार करना चाहिए. उन्होंने साथ में यह भी कहा कि सरकार को वार्ता के लिए अनुकूल माहौल बनाना चाहिए. मौला ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार बातचीत दिखावे के लिए कर रही है. केंद्र सरकार ने तीन कृषि कानूनों के विरोध में राजधानी दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों को रविवार को पत्र लिखकर वार्ता के लिए आमंत्रित किया था.
अग्रवाल ने पत्र में कहा था, ‘‘विनम्रतापूर्वक अनुरोध है कि पूर्व आमंत्रित आंदोलनरत किसान संगठनों के प्रतिनिधि शेष आशंकाओं के संबंध में विवरण उपलब्ध कराने का कष्ट करें तथा पुन: वार्ता के वास्ते सुविधानुसार तिथि से अवगत कराने का कष्ट करें.’’ नौ दिसंबर को होने वाली छठे दौर की वार्ता को रद्द कर दिया गया था क्योंकि किसान संघ तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की अपनी मांग से हिलने को तैयार नहीं थे. बहरहाल, किसानों ने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की जयंती ‘किसान दिवस’ पर उनके प्रदर्शन को समर्थन देने के लिए लोगों से एक वक्त का भोजन ना करने की अपील की.
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कई किसानों ने बुधवार सुबह ‘किसान घाट’ पहुंच चौधरी चरण सिंह को श्रद्धांजलि भी अर्पित की. सिंह को उनकी किसान हितैषी नीतियों के लिए पहचाना जाता है. ‘किसान दिवस’ के मौके पर प्रदर्शन कर रहे किसानों ने गाजीपुर बॉर्डर पर हवन भी किया. इससे पहले, कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि सरकार कृषि क्षेत्र में सुधार करना जारी रखेगी. साथ में उम्मीद जताई कि प्रदर्शनकारी किसान कानूनों पर अपनी चिंताओं के समाधान का हल निकालने के लिए केंद्र के साथ वार्ता बहाल करने के वास्ते जल्द आगे आएंगे.
Source : News Nation Bureau