Finance Act 2017 के मामले में सुप्रमी कोर्ट ने इस मामले को एक बड़े संविधान पीठ के पास भेज दिया है. यह बिल वित्त अधिनियम के पारित होने के मुद्दे को धन विधेयक के रूप में प्रस्तुत करता है. वहीं अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने प्रस्तुत किया था कि न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 110 के तहत एक विधेयक को धन विधेयक के रूप में प्रमाणित करने के स्पीकर के फैसले पर न्यायिक समीक्षा नहीं कर सकता है.
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Attorney General K K Venugopal had submitted that Court cannot exercise judicial review over Speaker's decision to certify a bill as a money bill under Article 110 of the Constitution. https://t.co/PwMdmU1QPe
— ANI (@ANI) November 13, 2019
वित्त अधिनियम 2017 के मामले को सुप्रमी कोर्ट ने एक बड़ी बेंच के पास भेजा है. उच्चतम न्यायालय ने 7 जजों की बड़ी बेंच के पास भेजा है. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने फाइनेंस एक्ट के सेक्शन 184 को बरकरार रखा. सरकार को फिर से नियम बनाने को कहा है. चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई समेत सभी 5 जजों ने बहुमत से यह फैसला सुनाया. पांचों जजों में बहुमत की राय यह रही कि सरकार की ओर से बनाये गए नियम मूल क़ानून का उल्लंघन है.
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इससे पहले चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने वित्त अधिनियम 2017 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई पूरी करने के बाद फैसला सुरक्षित रखा लिया था. केंद्र ने वित्त विधेयक, 2017 के धन विधेयक के रूप में प्रमाणीकरण को सुप्रीम कोर्ट में न्यायोचित ठहराते हुए कहा था कि इसके प्रावधानों में न्यायाधिकरणों के सदस्यों को भुगतान किए जाने वाले वेतन और भत्ते भारत की संचित निधि से आते हैं.
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अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने दलील दी थी कि लोकसभा अध्यक्ष ने वित्त अधिनियम को धन विधेयक के रूप में प्रमाणित किया है और न्यायालय इस फैसले की न्यायिक समीक्षा नहीं कर सकता है. वेणुगोपाल ने वित्त अधिनियम को धन विधेयक के रूप में प्रमाणित करने के निर्णय को न्यायोचित ठहराते हुये कहा था कि यह भारत की संचित निधि से मिलने वाले धन और उसके भुगतान के बारे में है. उन्होंने कहा था कि इसके एक हिस्से को नहीं बल्कि पूरे को ही धन विधेयक के रूप में प्रमाणित किया गया है, इसलिए इसके किसी हिस्से को अलग करके यह नहीं कहा जा सकता है कि इसे धन विधेयक नहीं माना जा सकता.