नरेंद्र मोदी ने पिछले साल आठ नवंबर को नोटबंदी का ऐलान किया। सरकार ने दावा किया कि नोटबंदी से भ्रष्टाचार खत्म होगा और पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद भी बंद होगा। मोदी के इस फैसले के बाद देश में नयी बहस छिड़ गई कि क्या नोटबंदी देश की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर डालेगा।
पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव आते-आते ये चुनावी मुद्दा भी बन गया। विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर मोदी सरकार को घेरा। उन्होने नोटबंदी को गैर-जरूरी मुद्दा बताया जिससे आम आदमी को केवल परेशानी हुई। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी चुनावी सभाओं नोटबंदी के फैसले को देशहित में बताया और इसके ज़रिये भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करने पर ज़ोर दिया।
आइये जानते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नोटबंदी का फैसला कैसे बन गया चुनावी मुद्दा और कैसे अलग-अलग पार्टियों नें इस मुद्दे को वोटरों के बीच रखा। पहले जानते हैं मोदी और बीजेपी के अन्य बड़े नेताओं का नोटबंदी को लेकर विपक्ष पर आक्रमण।
नोटबंदी पर मोदी के बयान
उत्तर प्रदेश में छठें दौर के चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने देवरिया और महाराजगंज में रैली को संबोधित करते हुए कहा कि, 'नोटबंदी के बाद भी देश आगे बढ़ रहा है।'
नोटबंदी के फायदे गिनाते हुए और विपक्ष पर निशाना साधते हुए नरेंद्र मोदी ने कहा कि,'वो कहते थे कि जीडीपी 2 से 3 प्रतिशत गिर जाएगा, लेकिन देश ने देख लिया कि हार्डवर्क और हावर्ड में क्या फर्क होता है। '
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उत्तर प्रदेश में ही सांतवें दौर के चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री ने विपक्ष को नोटबंदी के मुद्दे पर आड़े हाथों लेते हुए कहा कि, 'बसपा, कांग्रेस सपा तीनों एक दूसरे के विरोध में बोलते थे लेकिन नोटबंदी के मुद्दे को लेकर पहली बार तीनों दल एक साथ इक्ठ्ठे हो गए।'
नोटबंदी पर अमित शाह
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भी नोटबंदी को एक बड़ा चुनावी मुद्दा मानते हुए एक अंग्रेज़ी अख़बार को बयान देते हुए कहा था कि, 'नोटबंदी एक बड़ा मुद्दा है। विपक्षी इसके बारे में बात कर रहे हैं और अगर वह चाहें तो इस चुनाव को जनमत संग्रह मान सकते है। बीजेपी को विपक्ष की यह चुनौती स्वीकार है।'
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नोटबंदी पर अखिलेश यादव
नोटबंदी मुद्दा जितना बीजेपी के लिए अहम है उतना ही विपक्षी पार्टियों के लिए भी है। नोटबंदी के खिलाफ बीजेपी को घेरने के लिए सभी विपक्षी पार्टियां कमर कसते हुए चुनावी रण में उतरीं।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने नरेंद्र मोदी पर हमला करते हुए कहा कि, 'प्रधानमंत्री ने नोटबंदी का फैसला लेकर गरीबों और मजदूरों को अपने पैसे के लिए ही लाइन में लगा दिया, कई लोगों की लाइनों में खड़े होने से मौत हो गई।’
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अखिलेश यादव ने कहा कि, ‘पैसा काला नहीं होता बल्कि लेन-देन काला होता है।'वहीं मुख्यमंत्री की पत्नी डिंपल यादव ने भी अपने भाषण में नोटबंदी पर मोदी पर तंज कसते हुए कहा कि, 'सरकार कालाधन तो वापस नहीं लाई लेकिन दो हजार का चूरन छाप नोट आ गया।'
नोटबंदी पर मायावती
इसके अलावा बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री को घेरते हुए कहा कि, 'नोटबंदी कर दी लेकिन न कालाधन वापस आया, न ही किसानों का कर्ज माफ हुआ।'
उन्होंने भारतीय जनता पार्टी को भारतीय जुमला पार्टी करार देते हुए कहा कि, 'नोटबंदी से फैली अराजकता से देश अभी तक उबर नहीं सका है, नोटबंदी से पहले ही बीजेपी वालों ने अपना कालाधन सफेद कर लिया।'
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नोटबंदी पर आम आदमी पार्टी के चुनावी बयान
वहीं आम आदमी पार्टी ने भी नोटबंदी के मुद्दे को पंजाब में चुनावी रैलियों में ज़ोर शोर से उठाया और केंद्र सरकार पर हमला करते हुए कहा कि, 'नोटबंदी के बाद जितना भी काला धन इक्ट्ठा हुआ। इसका हिसाब सरकार जनता को दे।'
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आम लोगों पर सरकार के इस फैसले से उनकी ज़िंदगी पर अच्छा असर हुआ या फिर उनकी परेशानियों को सरकार ने कई गुना बढ़ा दिया। इन चुनावों में जनता किसे चुनेगी अपना सरताज और किसे खाने पड़ेगी मुंह की, यह 11 मार्च को साबित हो ही जाएगा।
गौरतलब है कि हाल ही में महाराष्ट्र में हुआ एमएनसी का चुनाव नोटबंदी के बाद आठवां चुनाव था जिसमें बीजेपी ने 10 में से आठ सीटों पर कब्ज़ा किया और यह शिवसेना के समकक्ष आकर खड़ी हो गई। ये परिणाम विधानसभा चुनावों के बीच आया और बीजेपी के लिये खुशखबरी लाया। शायद यही कारण था कि बीजेपी ने विधानसभा चुनावों में अपनी पूरी ताकत झोंक दी।
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HIGHLIGHTS
- नोटबंदी के बाद पांच राज्यों में होने वाले चुनाव पहले विधानसभा चुनाव हैं
- नोटबंदी के फैसले पर देश की जनता का मूड बताएंगे यह विधानसभा चुनाव
- महाराष्ट्र एमएनसी चुनाव के बेहतर नतीजों से हत्तोसाहित है भारतीय जनता पार्टी
Source : Shivani Bansal