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फ्लोर टेस्‍ट की गजब कहानी: कोई एक दिन का सीएम तो कहीं सरकार एक वोट से गिरी

हालांकि देश में सियासी ड्रामे का यह पहला नमूना नहीं है. पहले भी विश्‍वास मत को लेकर कई रोचक कहानियां देखने को मिली हैं.

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Sunil Mishra
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फ्लोर टेस्‍ट की गजब कहानी: कोई एक दिन का सीएम तो कहीं सरकार एक वोट से गिरी

कर्नाटक विधानसभा (फाइल फोटो)

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कर्नाटक का नाटक पिछले कई दिनों से चर्चा में है. लंबे खिंचे सियासी ड्रामे के बाद आखिरकार कुमारस्‍वामी की सरकार गिर ही गई. हालांकि देश में सियासी ड्रामे का यह पहला नमूना नहीं है. पहले भी विश्‍वास मत को लेकर कई रोचक कहानियां देखने को मिली हैं. हाल तो ऐसा रहा कि कोई एक दिन के लिए सीएम बना तो कोई सरकार महज एक वोट से गिर गई.

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जगदंबिका पाल एक दिन के सीएम बने थे
उत्‍तर प्रदेश में 1996 से 1998 के बीच जबर्दस्‍त सियासी उठापटक देखने को मिली थी. इन सबके बीच जगदंबिका पाल को सीएम पद की शपथ दिला दी गई, लेकिन वे 24 घंटे ही इस कुर्सी पर टिक सके. तब 174 सीटों के साथ बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. 1997 में बसपा-बीजेपी के बीच 6-6 माह के लिए मुख्‍यमंत्री बनाने की सहमति बनी. बाद में मायावती ने कल्‍याण सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. फरवरी 1998 में नरेश अग्रवाल के नेतृत्‍व में दो दर्जन विधायक कल्‍याण सरकार से छिटके तो राज्‍यपाल ने जगदंबिका पाल को मुख्‍यमंत्री पद की शपथ दिला दी थी. हालांकि अदालत ने फैसले को गलत बताया तो 24 घंटे में पाल को कुर्सी छोड़नी पड़ी थी.

10 दिन के लिए मुख्‍यमंत्री बने थे शिबू सोरेन
झारखंड को में 2005 में झारखंड मुक्‍ति मोर्चा के अध्‍यक्ष शिबू सोरेन को मुख्‍यमंत्री बनने का मौका मिला, वो भी महज 10 दिनों के लिए. तब बीजेपी ने 81 में से 30 सीटें जीती थी. 17 सीट झारखंड मुक्‍ति मोर्चा के खाते में आई थी. शिबू सोरेन ने कांग्रेस व अन्‍य दलों के साथ सरकार तो बनाई पर बहुमत साबित न कर सके और सरकार 10 दिनों में ही गिर गई थी.

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एक वोट से गिर गई थी वाजपेयी सरकार
1999 में तत्‍कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को विश्‍वास मत साबित करना पड़ा था. तब उनकी सरकार महज एक वोट से गिर गई थी और केवल 13 माह में ही सरकार को जाना पड़ा था. तब ओडिशा (पहले उड़ीसा बोला जाता था) के मुख्‍यमंत्री गिरधर गमांग ने वाजपेयी सरकार के खिलाफ मतदान किया था. उस समय गमांग मुख्‍यमंत्री के अलावा लोकसभा के सदस्‍य भी थे.

येदियुरप्‍पा 6 दिन ही मुख्‍यमंत्री रहे
कर्नाटक में पिछले साल हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. बीजेपी को तब 104 सीटें मिली थीं, जबकि सरकार बनाने के लिए 113 विधायक चाहिए थे. उधर, जनता दल सेक्‍युलर और कांग्रेस ने हाथ मिला लिया और उनकी संख्‍या 115 तक पहुंच गई थी. मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया तो कोर्ट ने येदियुरप्‍पा को शक्‍ति परीक्षण के लिए कहा, मगर शक्‍ति परीक्षण से ठीक पहले येदियुरप्‍पा ने इस्‍तीफा दे दिया था.

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शक्‍ति परीक्षण के लिए पहुंचे ही शुरोजेली
नगालैंड में 2017 में राज्‍यपाल पीवी आचार्य ने नगालैंड पीपुल्‍स फ्रंट के शुरोजेली लेजित्‍सु को टीआर जेलियांग ने चुनौती दी थी. फिर उन्‍हें विश्‍वास मत साबित करने की चुनौती मिली मगर वह और उनके समर्थन पहुंचे ही नहीं. इस पर राज्‍यपाल ने जेलियांग को सीएम घोषित कर दिया.

पेमा खांडु ने एक साल में बदलीं दो पार्टियां
अरुणाचल में 2016 में एक साल में तीन मुख्‍यमंत्री बदले. 17 जुलाई को पेमा खांडू ने कांग्रेस के सीएम के रूप में शपथ ली. सितंबर में 32 विधायकों के साथ पार्टी बनाई और कुछ ही दिनों में वे बीजेपी में शामिल हो गए.

कर्नाटक : सात दशक में तीन मुख्‍यमंत्री ही पूरा कर पाए कार्यकाल
कर्नाटक के इतिहास में केवल तीन मुख्‍यमंत्री ही पांच साल का कार्यकाल पूरा कर पाए हैं. 14 माह तक सत्‍ता में रहने के बाद कुमारस्‍वामी की अगुवाई वाली गठबंधन सरकार मंगलवार को विधानसभा में विश्‍वास मत हार गई. एन निजलिंगप्‍पा (1962-68), डी देवराजा उर्स (1972-77) और सिद़्धरमैया (2013-18) ही ऐसे मुख्‍यमंत्री रहे, जिन्‍होंने अपना कार्यकाल पूरा किया. दूसरी ओर बीजेपी का कोई मुख्‍यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका.

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कर्नाटक : पहली विधानसभा में ही चार सीएम बने
कर्नाटक में ज्‍यादातर विधानसभाओं में राज्‍य ने एक से अधिक मुख्‍यमंत्री देखे हैं. देखा जाए तो पहली विधानसभा 18 जून 1952 और 31 मार्च 1957 के बीच ही राज्‍य में सबसे अधिक चार मुख्‍यमंत्री बने. वहीं, 9वीं (1989-94), 12वीं (2004-07) और 13वीं विधानसभा (2008-2013) में तीन मुख्‍यमंत्री बने.

भारत में पहली बार अविश्‍वास प्रस्‍ताव

  • भारतीय संसद के इतिहास में पहली बार अगस्‍त 1963 में जेबी कृपलानी ने अविश्‍वास प्रस्‍ताव रखा था.
  • तत्‍कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ पेश हुए प्रस्‍ताव के पक्ष में केवल 62 वोट पड़े.
  • अविश्‍वास प्रस्‍ताव के विरोध में 347 वोट पड़े थे.
  • सबसे अधिक 15 अविश्‍वास प्रस्‍ताव इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ आए थे.

Source : Sunil Mishra

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