विदेश मंत्री एस जयशंकर (External Affair Minister S Jaishankar) ने पश्चिमी देशों के दोहरे मापदंडों पर तीखा प्रहार किया है. उन्होंने कहा, ‘भारत हमेशा से ही नियम-आधारित व्यवस्था (Rule-Based Order) का पक्षधर रहा है. खुद इसका पालन किया है और दुनिया के सभी देशों से इसका पालन करने की अपेक्षा करता रहा है. लेकिन अभी कुछ समय पहले जब एशिया में इस नियम-आधारित व्यवस्था को चुनौती मिल रही थी तो यूरोप के देश हमें ज्ञान दे रहे थे. कह रहे थे कि हमें व्यापार पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए. वे शुक्र मनाएं कि कम से कम आज जब यूरोप में वही नियम-आधारित व्यवस्था को खतरा पैदा हुआ है तो हम ऐसा नहीं कर रहे हैं.’
जयशंकर नई दिल्ली में अंतरराष्ट्रीय मामलों और भारतीय विदेश नीति से जुड़े विषयों ‘रायसीना डायलॉग्स’ के नाम से हुए कार्यक्रम में बोल रहे थे. उन्होंने रूस-यूक्रेन के बीच जारी युद्ध (Russia-Ukraine War) की परिस्थिति में ‘नियम-आधारित व्यवस्था’ का जिक्र किया था. इस दौरान उन्होंने भारत-चीन के बीच 2020 में हुए सीमा-संघर्ष के दौरान पश्चिम देशों के रवैये पर सवाल खड़े किए. उन्होंने कहा भी, ‘उस वक्त पश्चिम के देश हमसे कह भी रहे थे कि देखिए, अपने तमाम विवाद और तनाव को किनारे रखकर यूरोप किस तरह व्यापार कर रहा है. एशिया को भी ऐसा ही करना चाहिए. तब हम उन्हें बार-बार याद दिला रहे थे कि नियम-आधारित व्यवस्था विश्वस्तर पर खतरे में है. लेकिन उन्होंने ध्यान नहीं दिया. इसके बावजूद हमने तो अपने मसले सुलझा लिए. एशिया आगे बढ़ गया और यूरोप में देखिए, क्या हो रहा है. हालांकि इस वक्त भी हम उनसे वही बात दोहरा रहे हैं. आगे आइए. युद्ध बंद कीजिए. बातचीत कीजिए और नियम-आधारित व्यवस्था विश्वस्तर पर सुनिश्चित हो, इस पर विचार कीजिए. यही हर विवाद का स्थायी समाधान है.’
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गौरतलब है कि भारत ने पाकिस्तान और चीन जैसे अपने बिगड़े हुए पड़ोसियों के लिए बीते कुछ वर्षों से सख्त विदेश नीति अपना रखी है. इसके तहत उनसे स्पष्ट कह दिया है कि पहले विवाद के मुख्य मुद्दों का समाधान होगा, उसके बाद व्यापार, कारोबार की बातचीत होगी. जैसे, चीन के साथ सीमाई-विवाद और पाकिस्तान के साथ कश्मीर. जबकि ये दोनों देश पश्चिम की तरह ही विवादित मुद्दों को किनारे रखकर व्यापार करते रहने पर जोर देते रहे हैं. अब भी दे रहे हैं.
जयशंकर (S Jaishankar) ने कहा, ‘वह वक्त अब पीछे छोड़ देने की जरूरत है जब विदेश नीति से जुड़े मसलों पर कोई हमें कुछ बताता था और हम उसका अनुमोदन करते थे. अब भारत किसी को खुश करने के बजाय अपनी शर्तों, अपने हित और अपनी क्षमताओं के आधार पर दुनिया के विभिन्न देशों के साथ संबंध रखता है.’ उनके मुताबिक, ‘जब हम भारत के 75 सालों की यात्रा को देखते हैं तो सिर्फ ये नहीं देखते कि हमने इतना लंबा सफर कर लिया. बल्कि ये भी देखते हैं कि इन बीते वर्षों में हमने कहां गलती की और किस जगह बेहतर रहे. इसके अलावा अगले 25 वर्षों में कहां होंगे. और जब अगले 25 सालों की बात करते हैं, तो पाते हैं कि भारत को वैश्वीकरण के अगले चरण में होना चाहिए. उसे अपनी क्षमता में और अधिक वृद्धि करनी चाहिए. इस पर सोचना चाहिए.’