पूर्व कैबिनेट सचिव बीके चतुर्वेदी (bk chaturvedi) ने टूजी स्पेक्ट्रम (2G Spectrum) और कोयला ब्लॉक आवंटन (Coal allocation scam) के संबंध में एक रिपोर्ट को लेकर भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) की आलोचना की है. उनका कहना है कि लेखापरीक्षण निकाय ने नीति निर्माण में सरकार की भूमिका हड़पने और नीति निर्माण के क्षेत्र में प्रवेश करने की कोशिश की है.
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टूजी की रिपोट के संदर्भ में चतुर्वेदी ने कहा, "2008 के आरंभ में दिए गए लाइसेंस में घाटे की गणना करने के लिए 2010 में 3जी के आवंटन के आंकड़ों का इस्तेमाल उन्होंने इस प्रकार तैयार किया जैसे मानो कैग घाटे के आंकड़े को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना चाहता हो और पीएसी (संसद की लोकलेखा समिति) के बजाय जनता के सामने परोसना चाहता हो." उन्होंने अपनी किताब 'चैलेंजेज ऑफ गवर्नेस: इन्साइडर्स व्यू' में लिखा, "टूजी मामले में कैग की रिपोर्ट में ऐसे सवाल उठाए गए हैं जिनके शासन-प्रणाली और इसकी लेखापरीक्षा के दृष्टिकोण को लेकर गंभीर निहितार्थ हैं."
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सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी ने एक ऐसे मसले के संबंध में यह बात कही है, जिससे संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन-2 के कार्यकाल के दौरान भारी राजनीतिक बवाल मचा और कई सप्ताह तक संसद में हंगामा होता रहा. उन्होंने कहा, "हालांकि लाइसेंस के आवंटन में त्रुटियों को उजागर करने में कैग सही था, लेकिन उसने संभावित घाटे का मसला भी उठाया जिसे सरकार के राजस्व का घाटा बताया गया."
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टूजी आवंटन में कैग द्वारा घाटे का बाजार मूल्य का आकलन 33,000 करोड़ रुपये से लेकर 1.76 लाख करोड़ रुपये किया गया. इस व्यापक भिन्नता पर प्रकाश डालते हुए शीर्ष नौकरशाह ने लिखा, "संभावित घाटे का आकलन सरकार के घाटे के रूप में करके कैग ने नीति निर्माण में सरकार की भूमिका हड़पने की कोशिश की." चतुर्वेदी 2004 से लेकर 2007 तक कैबिनेट सचिव रहे.
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उन्होंने कहा, 'जब फैसला लिया जाता है तो पूरे घाटे का आकलन सरकार की नीति के आधार पर किया जाता है. कीमत निर्धारण की कई संरचनाएं कभी-कभी बाजार मूल्य से कम होती हैं. यह आर्थिक विकास को तेज करने या सेवा का विस्तार करने के लिए जरूरी हो सकती है." कैबिनेट सचिव के तौर पर 2007 में उनका कार्यकाल समाप्त होने के बाद चतुर्वेदी योजना आयोग और 13वें वित्त आयोग के सदस्य भी थे.
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उन्होंने कहा, "सरकार ने नए लाइसेंसधारियों के लिए स्पेक्ट्रम का मूल्य बढ़ाने के विरुद्ध फैसला लिया. कैग को लगा कि यह गलत है और इसलिए स्पेक्ट्रम के बाजार मूल्य के आधार पर इसे सरकार को घाटा बता दिया. ऐसा करते समय उसने दूरसंचार क्षेत्र की नीतियों की समीक्षा में व्यापक आर्थिक नजरिए पर विचार नहीं किया."