केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने 5 अगस्त 2019 को ऐतिहासिक फैसला लेते हुए जम्मू और कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35ए हटा दिया. सरकार के इस कदम पर बीजेपी सहित कई राजनीतिक पार्टियों के तमाम नेता अपनी-अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं. इसी कड़ी में बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने मंगलवार को एक ब्लॉग लिखा, जिसमें उन्होंने सरकार के फैसले की जमकर तारीफ की. पूर्व वित्त मंत्री जेटली ने लिखा कि पीएम मोदी ने अपने साहसिक फैसले की वजह से इतिहास रच दिया है. उन्होंने कहा कि कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35ए हटाने के लिए साहस की जरूरत थी, जो मोदी और शाह के पास है. जेटली ने कहा कि मोदी सरकार का ये फैसला उन लोगों के लिए भी एक करारा जवाब है जिन्हें लगता था कि बीजेपी के वादे महज नारे होते हैं.
विफल प्रयासों का इतिहास
कश्मीर पर पंडित नेहरू ने हालात का आकलन करने में भारी भूल की थी. उन्होंने शेख मोहम्मद अब्दुल्ला पर भरोसा करके उन्हें इस राज्य की बागडोर सौंपने का निर्णय लिया. लेकिन 1953 में उनका विश्वास शेख साहब से उठ गया और उन्हें जेल में बंद कर दिया. इंदिरा गांधी ने इसके बाद शेख साहब को रिहा करने और बाहर से कांग्रेस का समर्थन सुनिश्चित कर एक बार फिर उनकी सरकार बनाने का एक प्रयोग किया. हालांकि, कुछ ही महीनों के भीतर शेख साहब के सुर बदल गए और गांधी को यह स्पष्ट रूप से अहसास हो गया कि उन्हें नीचा दिखाया गया है. 1987 में राजीव गांधी ने एक बार फिर से नीतियों को बदल दिया और फारूख अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेंस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा. चुनाव में भी धांधली हुई. कुछ उम्मीदवार जिन्हें जोड़-तोड़ करके हराया गया था, वे बाद में अलगाववादी और तो और आतंकवादी तक बन गए.
ये भी पढ़ें- RIP Sushma Swaraj: सुषमा जी के निधन से टीम इंडिया में शोक की लहर, विराट कोहली और रैना ने किया भावुक ट्वीट
विपक्षी पार्टियां भी साथ आईं
सरकार की नई कश्मीर नीति पर आम जनता की ओर से जो जबर्दस्त समर्थन मिल रहा है, उसे देखते हुए कई विपक्षी दलों ने आम जनता के सुर में सुर मिलाना ही उचित समझा है. यही नहीं, राज्यसभा में इस निर्णय का दो तिहाई बहुमत से पारित होना निश्चित तौर पर कल्पना से परे है. मैंने इस निर्णय के असर के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर के मुद्दे को सुलझाने के अनगिनत विफल प्रयासों के इतिहास का विश्लेषण किया.
श्यामा प्रसाद मुखर्जी का नजरिया सही साबित हुआ
विशेष दर्जा प्रदान करने की ऐतिहासिक भूल से देश को राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ी. आज, जबकि इतिहास को नए सिरे से लिखा जा रहा है, उसने ये फैसला सुनाया है कि कश्मीर के बारे में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की दृष्टि सही थी और पंडित नेहरू जी के सपनों का समाधान विफल साबित हुआ है.
कांग्रेस पर तंज कसा
यह एक पछतावा है कि कांग्रेस पार्टी की विरासत ने पहले तो समस्या का सृजन किया और उसे बढ़ाया, अब वह कारण ढूंढने में विफल है. यह सरकार के इस फैसले के लिए लागू होता है. कांग्रेस के लोग व्यापक तौर पर विधेयक का समर्थन करते हैं. नया भारत बदला हुआ भारत है. केवल कांग्रेस इसे महसूस नहीं करती है. कांग्रेस नेतृत्व पतन की ओर अग्रसर है.
ये भी पढ़ें- IND vs WI: रिषभ पंत ने तोड़ा धोनी का रिकॉर्ड, ये कारनामा करने वाले पहले भारतीय विकेटकीपर बने
1989-90 तक हालात काबू से बाहर हो गए
1989-90 तक, हालात काबू से बाहर हो गए तथा अलगाववाद के साथ आतंकवाद की भावना जोर पकड़ने लगी. कश्मीरी पंडित को इस तरह के अत्याचार बर्दाश्त करने पड़े, जिस तरह के अत्याचार केवल नाजियों ने ही किये थे. कश्मीरी पंडितों को घाटी से बाहर खदेड़ दिया गया.
तीन नए प्रयास भी नाकाम
जब अलगाववाद जोर पकड़ रहे थे, विभिन्न राजनीतिक दलों की अगुवाई वाली केन्द्र सरकार ने तीन नए प्रयास किए. उन्होंने अलगाववादियों के साथ बातचीत की कोशिश की, जो व्यर्थ साबित हुई. द्विपक्षीय मामले के रूप में पाक के साथ बातचीत की कोशिश की गई. प्रयोग विफल होने के बाद केन्द्र की बहुत सी सरकारों ने राष्ट्रीय हित में मुख्यधारा वाली पार्टियों के साथ समायोजन का फैसला किया. दो राष्ट्रीय दलों ने एक अवस्था पर दो क्षेत्रीय पार्टियों पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस पर भरोसा करने का प्रयोग किया. उन्हें सत्ता पर आसीन कराया. लेकिन यह भी विफल रहा.
Source : News Nation Bureau