भारत में पाक के पूर्व उच्चायुक्त अब्दुल बासित का अफगानिस्तान संकट को लेकर बड़ा बयान सामने आया है. अब्दुल बासित ने कहा कि चीन ने तालिबान के साथ कॉन्ट्रैक्ट किया है. आपको बता दें कि अफगानिस्तान में तालिबान के पूर्ण कब्जे के बाद सबसे पहले चीन ने ही वहां बनने वाली तालिबानी सरकार को समर्थन देने की बात कही थी. जिसको लेकर भारत समेत कई देशों ने चीन के इस बयान की निंदा की थी. दरअसल, अफगानिस्तान में तालिबान के नेतृत्व में जल्द ही सरकार का गठन होने जा रहा है.
यह भी पढ़ें : ऑपरेशन देवी शक्ति के तहत अफगानिस्तान में बचाव अभियान में जुटी भारतीय वायुसेना
आपको बता दें कि इससे पहले अब्दुल बासित ने अफगानिस्तान के हालातों पर बात करते हुए कहा था कि पाकिस्तान में हम इसे अलग तरीके से देख रहे हैं. पूर्व उच्चायुक्त ने कहा कि "जब शांति और लड़ाई की बात होती है तो भारत तारीख (इतिहास) के गलत दो राहे में खड़ा है." उन्होंने आगे कहा कि यह सच है कि तालिबान ने इस्लामिक एमिरेट ऑफ अगानिस्तान कायम कर ली है. इसके साथ ही उन्होंने एक नई शुरुआत का भी वादा किया है. पूर्व उच्चायुक्त अब्दुल बासित यहीं न नहीं रुके, उन्होंने कहा कि तालिबान ने बहुत जद्दोजेहद किया. तालिबान ने 20 सालों तक संघर्ष किया. अब्दुल बासित के अनुसार तालिबान ने हमेशा यही कहा कि हम दूसरे देश के कब्ज़े के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं. यही वजह है कि तालिबान का संघर्ष बिल्कुल जायज़ था. अब्दुल बासित ने आरोप लगाते हुए दावा किया कि भारत यह प्रयास करेगा कि तालिबान को विश्व समुदाय मान्यता न दे.
यह भी पढ़ें : श्रीलंका के विपक्ष ने तालिबान को स्वीकार करने की सरकार के फैसले की आलोचना की
वहीं, अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा सत्ता पर कब्जा करने के लिए धीरे-धीरे बढ़ रहा प्रतिरोध प्रतीकात्मक हो सकता है, जोकि नए शासकों और कुछ मायनों में पाकिस्तान में उनके बाहरी समर्थकों और आकाओं के लिए खतरे की घंटी का कारण बनने के लिए पर्याप्त है. जब सार्वजनिक भावना की अभिव्यक्ति की बात आती है तो प्रतीक मायने रखते हैं और अफगान झंडा रैली का बिंदु बन गया है. तालिबान के काबुल पर नियंत्रण करने के चार दिनों के भीतर, कई अफगानों ने अपने पारंपरिक नए साल को नवरोज को राष्ट्रीय झंडा फहराकर मनाया. जबकि शहरों में इन विरोधों ने मीडिया में अपनी जगह बना ली है, ग्रामीण इलाकों में वे रिकॉर्ड नहीं किए गए हैं.