अटल बिहारी वाजपेयी: यूएन में अपने भाषण से विश्व पटल पर दी हिन्दी को पहचान

अटल बिहारी वाजपयी राजनेता के साथ साथ प्रसिद्ध कवि और वक्ता भी थे। हिंदी भाषा का उन्हें अच्छा ज्ञान था।

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अटल बिहारी वाजपेयी: यूएन में अपने भाषण से विश्व पटल पर दी हिन्दी को पहचान

file- साल 1977 में यूएन में भाषण देते तत्कालीन विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी

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पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहरी वाजपेयी को दुनिया एक बेहरीन राजनेता के तौर पर जानती है। जिन्होंने भारत में अपने राजनीतिक कार्यकाल के दौरान कई अहम फैसले लिए और विश्व पटल पर भारत की एक अलग पहचान बनाई। अटल बिहारी वाजपयी राजनेता के साथ-साथ प्रसिद्ध कवि और वक्ता भी थे। हिंदी भाषा का उन्हें अच्छा ज्ञान था। हिंदी भाषा पर उनकी पकड़ उनकी कविताओं और भाषणों में देखने को मिलती है। अटल जी ने कई ऐसे ऐतिहासिक भाषण दिए जिन्हें भारतीय राजनीति में आज भी एक मिसाल के तौर पर पेश किया जाता है।

चाहे बात करें 1977 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में दिए उनके भाषण की, 1988 में परमाणु परीक्षण के बाद संसद में उनके जबर्दस्त भाषण की या फिर बात हो सन् 2001 में संसद में आतंकवादी हमले के बाद कश्मीर और आतंकवाद के मुद्दे पर दिया उनका भाषण की। सभी में उन्होंने समसामयिक आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक परेशानियों को बेझिझक सबके सामने रखा। साथ ही 1999 में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान दिया उनका भाषण राजनीति में आए हर व्यक्ति और देशवासी को सुनना चाहिए। इन सभी भाषणों में अटल जी के कुशल नेता होने के साथ-साथ कुशल वक्ता होने की भी छाप मिलती है। 

अंतरराष्ट्रीय मंच संयुक्त राष्ट्र महासभा में दिया उनका भाषण काफी प्रसिद्ध है। अटल बिहारी वाजपेयी को हिन्दी से बेहद लगाव था साल 1977 में जनता सरकार में विदेश मंत्री रहते हुए अटल बिहारी वाजपेयी ने यूएन में अपना पहला भाषण हिन्दी में ही दिया था जो उस वक्त बेहद लोकप्रिय हुआ और पहली बार यूएन जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत की राजभाषा गूंजी। वह यूएन में हिंदी में भाषण देने वाले पहले व्यक्ति बनें।

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इतना ही नहीं भाषण खत्म होने के बाद यूएन में आए सभी देश के प्रतिनिधियों ने खड़े होकर अटल बिहारी वाजपेयी का तालियों से स्वागत किया।
नीचे पढ़िए आज से करीब 40 साल पहले यूएन जैसे अंतराष्ट्रीय मंच पर वाजपेयी जी ने हिन्दी में क्या कहा था-

सुनिए उनका पूरा भाषण

'मैं भारत की जनता की ओर से राष्ट्रसंघ के लिए शुभकामनाओं का संदेश लाया हूं। महासभा के इस 32 वें अधिवेशन के अवसर पर मैं राष्ट्रसंघ में भारत की दृढ़ आस्था को पुन: व्यक्त करना चाहता हूं। जनता सरकार को शासन की बागडोर संभाले केवल 6 मास हुए हैं फिर भी इतने अल्प समय में हमारी उपलब्धियां उल्लेखनीय हैं। भारत में मूलभूत मानव अधिकार पुन: प्रतिष्ठित हो गए हैं जिस भय और आतंक के वातावरण ने हमारे लोगों को घेर लिया था वह अब दूर हो गया है ऐसे संवैधानिक कदम उठाए जा रहे हैं जिनसे ये सुनिश्चित हो जाए कि लोकतंत्र और बुनियादी आजादी का अब फिर कभी हनन नहीं होगा। अध्यक्ष महोदय वसुधैव कुटुंबकम की परिकल्पना बहुत पुरानी है भारत में सदा से हमारा इस धारणा में विश्वास रहा है कि सारा संसार एक परिवार है अनेकानेक प्रयत्नों और कष्टों के बाद संयुक्त राष्ट्र के रूप में इस स्वप्न के साकार होने की संभावना है यहां मैं राष्ट्रों की सत्ता और महत्ता के बारे में नहीं सोच रहा हूं। आम आदमी की प्रतिष्ठा और प्रगति के लिए कहीं अधिक महत्व रखती है अंतत: हमारी सफलताएं और असफलताएं केवल एक ही मापदंड से नापी जानी चाहिए कि क्या हम पूरे मानव समाज वस्तुत: हर नर-नारी और बालक के लिए न्याय और गरिमा की आश्वसति देने में प्रयत्नशील हैं। अफ्रीका में चुनौती स्पष्ट हैं प्रश्न ये है कि किसी जनता को स्वतंत्रता और सम्मान के साथ रहने का अनपरणीय अधिकार है या रंग भेद में विश्वास रखने वाला अल्पमत किसी विशाल बहुमत पर हमेशा अन्याय और दमन करता रहेगा। नि:संदेह रंगभेद के सभी रुपों का जड़ से उन्मूलन होना चाहिए हाल में इजरायल ने वेस्ट बैंक को गाजा में नई बस्तियां बसा कर अधिकृत क्षेत्रों में जनसंख्या परिवर्तन करने का जो प्रयत्न किया है संयुक्त राष्ट्र को उसे पूरी तरह अस्वीकार और रद्द कर देना चाहिए। यदि इन समस्याओं का संतोषजनक और शीघ्र ही समाधान नहीं होता तो इसके दुष्परिणाम इस क्षेत्र के बाहर भी फैल सकते हैं यह अति आवश्यक है कि जेनेवा सम्मेलन का पुन: आयोजन किया जाए और उसमें पीएलओ का प्रतिनिधित्व किया जाए। अध्यक्ष महोदय भारत सब देशों से मैत्री चाहता है और किसी पर प्रभुत्व स्थापित करना नहीं चाहता भारत ना तो आण्विक शस्त्र शक्ति है और न बनना ही चाहता है नई सरकार ने अपने असंदिग्ध शब्दों में इस बात की पुनघोर्षणा की है हमारी कार्यसूची का एक सर्वस्पर्थी विषय जो आगामी अनेक वर्षों और दशकों में बना रहेगा वह है मानव का भविष्य। मैं भारत की ओर से इस महासभा को आश्वासन देना चाहता हूं कि हम एक विश्व के आदर्शों की प्राप्ति और मानव कल्याण तथा उसके गौरव के लिए त्याग और बलिदान की बेला में कभी पीछे नहीं रहेंगे। जय जगत धन्यवाद।'

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अटल जी के इस भाषण के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी सराहना हुई। बताया जाता है कि कई देशों के प्रतिनीधियों ने उनकी सराहना करते हुए कहा था कि - आप बोल रहे थे तो लग रहा था कि भारत की जनता और संस्कृति बोल रही है।

जानकार कहते हैं कि उनके इस भाषण के बाद हिंदी विश्व पटल पर भारतीय भाषा के रूप में प्रख्यात हुई। साथ ही भाषण के अंत में 'जय जगत' कहते हुए उन्होंने नए मूल्यों की स्थापना की।

Source : Kunal Kaushal

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