Gandhi Jayanti 2023 : देश में हर वर्ष 2 अक्टूबर को गांधी जयंती मनाई जाती है. इस जिन भारत में राष्ट्रीय अवकाश घोषित है, क्योंकि हमारे देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का 2 अक्टूबर को जन्म हुआ था. देश में महात्मा गांधी का सबसे पहला चम्पारण सत्याग्रह था. नील की खेती करने वाले किसानों के शोषण के खिलाफ यह आंदोलन था. देश वासियों ने इसी सत्याग्रह से ही महात्मा गांधी के प्रभाव को महसूस किया था. आइये जानते हैं चम्पारण सत्याग्रह में महात्मा गांधी के योगदान के बारे में...
महात्मा गांधी सत्याग्रह आंदोलन के लिए 10 अप्रैल 1917 को ट्रेन से बिहार के पटना पहुंचे. इसके बाद गांधीजी उन दिनों पटना के बड़े वकीलों में एक डॉ. राजेंद्र प्रसाद के घर गए, लेकिन वे उस समय घर पर नहीं थे. इस पर गांधी यहां से मुजफ्फरपुर चले गए. वहां उनकी मुलाकात जीवटराम भगवानदास कृपलानी यानि जेबी कृपलानी के साथ हुई, जोकि एक कॉलेज में प्राध्यापक थे. इसके बाद उन्होंने मुजफ्फरपुर में अंग्रेज कमिश्नर मोरशेड से भेंट की, लेकिन उनका रवैया काफी रुखा था. इस पर मोरशेड ने चंपारण के जिलाधिकारी को लेटर लिखकर कहा कि अगर गांधीजी वहां जाएं तो धारा 144 लगा कर उन्हें रोका जाए और वापस भेज दिया जाए.
करीब 4 दिनों में गांधीजी के साथ हुए व्यवहार के बाद वे समझ गए कि नील का मामला काफी गंभीर है. इसके बाद उन्होंने 15 अप्रैल को चंपारण में कदम रखा, जहां उनका जबरदस्त स्वागत हुआ. दूसरे दिन यानी 16 अप्रैल को वे हाथी पर सवार होकर ग्रामीण मिले, लेकिन बीच में एक दारोगा वहां पहुंचा. उसने गांधीजी से कहा कि डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने आपको याद किया है. दारोगा ने उनसे वापस जाने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने साफ मना कर दिया.
गांधीजी और उनके साथ आए लोगों ने 17 अप्रैल को किसानों से मुलाकात की. इसके बाद गांधीजी ने जिलाधिकारी को लेटर लिखा कि वो आगे क्या करने वाले हैं. अगले ही दिन यानी 18 अप्रैल को सब डिविजनल मजिस्ट्रेट की अदालत में उन्हें पेश किया गया, जहां भारी भीड़ जुटी. बाद में अदालत ने खुद मुचलका लेकर उन्हें रिहा कर दिया.
गांधीजी ने 19 अप्रैल को फिर किसानों से मुलाकात की और उनकी समस्याओं को सुना. पूरे देश के अखबारों में विस्तार से ये खबर छपी, जिससे सरकार हरकत में आई. इसके बाद गांधीजी पर लगे सारे केस 20 अप्रैल को हटा लिए गए. अंत में सरकार को झुकना पड़ा और सारे मामले की जांच हुई. जांच में किसानों के हक में फैसला आया और 04 मार्च 1918 को कानून बन गया. कानून बनने के बाद 19 लाख से अधिक किसानों की समस्याओं का निस्तारण हो गया.
Source : News Nation Bureau