गोवा में बीजेपी का कमल खिलाने वाले मनोहर पर्रिकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रिय नेताओं में से एक माने जाते हैं। कहा जाता है कि वे आधुनिक सोच के नेताओं में से एक हैं। हालांकि पार्टी राज्य में बहुमत से दूर है।
13 दिसम्बर, 1955 के मापुसा में जन्मे मनोहर पर्रिकर का पूरा नाम मनोहर गोपालकृष्णन प्रभु पर्रिकर है। साल 1978 मे आई.आई.टी. मुम्बई से ग्रेजुएट हुए। 24 अक्टूबर् 2000 को वह गोवा के मुख्यमंत्री बने लेकिन उनकी सरकार 27 फरवरी 2002 तक ही चल पायी।
राज्य में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर ही पिछले चुनाव में सत्ता पर बीजेपी काबिज हुई। इस बार भी मुद्दा यही था। पर्रिकर ने राज्य में इस पर काबू पाया लेकिन मोदी के पीएम बनने के बाद दिल्ली आ गए। लक्ष्मीकांत पारसेकर कमज़ोर सीएम साबित हुए और जनता में विश्वास नहीं बना पाए।
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जून 2002 में वह एक बार फिर विधानसभा के सदस्य बने और पांच जून 2002 को गोवा के मुख्यमंत्री बने। वे भारतीय राजनीति में मिस्टर क्लीन की छवि से जाने जाते हैं।
राज्य में मनोहर पर्रिकर को केंद्र में बुलाने के बाद लक्ष्मीकांत पारसेकर को राज्य के सत्ता की बागडोर सौंपी गई। लेकिन पारसेकर राज्य में अपनी छाप छोड़ने में फेल रहे।
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लक्ष्मीकांत पारसेकर टुनाव हार गए हैं और जांहिर है कि राज्य में बीजेपी को मनोहर पर्रिकर की कमी खली है।
पर्रिकर की खासियत
- मनोहर पर्रिकर की राज्य की जनता को काफी विश्वास है।
- पर्रिकर ने इसाई समुदाय के बीच अपनी पकड़ बनाई और उनके विश्वास को जीतने में कामयाब रहे। उग्र हिंदू संगठन श्री राम सेने जैसे संगठनों पर नकेल लगाकर उन्होंने इसाई समुदाय के खिलाफ उनके अभियान को बेअसर किया।
- भ्रष्टाचार को लेकर मनोहर पर्रिकर मुख्यमंत्री रहते हुए लगाम भी लगाई थी, लेकिन लक्ष्मीकांत पारसेकर इसमें फेल रहे हैं।
- इसके अलावा पारसेकर जनता और पार्टी दोनों की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पा रहे हैं।
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- पर्रिकर राज्य बीजेपी और संघ के बीच समन्वय बनाए रखने में सफल रहे, लेकिन पारसेकर ऐसा नहीं कर पाए। यही कारण है कि चुनाव से ठीक पहले राज्य में संघ के प्रमुख सुभाष वेलिंगकर ने पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
- राज्य की जनता में पर्रिकर की छवि अच्छी है। इसके अलावा गोवा की राजनीति में भी पकड़ अच्छी है।
बीजेपी को गोवा की सत्ता में लाने का श्रेय उन्हीं को जाता है। इसके अलावे भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव को गोवा लाने का श्रेय उन्हीं को जाता है।
अपने काम के जरिए मनोहर पर्रिकर ने हमेशा खुद को साबित किया 29 जनवरी 2005 को चार बीजेपी नेताओं के इस्तीफा देने के कारण उनकी सरकार अल्पमत में आ गयी थी लेकिन पर्रिकर ने अपना बहुमत साबित करते हुए अपने दम पर आगे बढ़े।
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Source : Pradeep Tripathi