उत्तराखंड की राजनीति में गणेश गोदियाल (Shri Ganesh Godiyal) कोई नया नाम नहीं है. गोदियाल कई दिग्गजों को हार का मुंह दिखा चुके हैं. पार्टी ने उन्हे राज्य का चीफ बनाकर राजनीतिक पंडितों का आंकड़ा ही बदल दिया है. प्रदेश अध्यक्ष पद पर ताजपोशी के बाद राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले उनका इतिहास-भूगोल टटोलने लगे हैं. गोदियाल ने उत्तराखंड की राजनीति में उस वक्त कदम रखा, जब राठ क्षेत्र की राजनीति में दो दिग्गजों का बोलबाला था. इनमें कांग्रेस पार्टी से आठ बार के विधायक डॉ. शिवानंद नौटियाल और भाजपा से डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक शामिल थे.
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दरअसल, सन 2002 में कांग्रेस थलीसैंण विधानसभा में निशंक को टक्कर देने के लिए कोई जनाधार वाला चेहरा खोज रही है. जिसके दम पर उत्तराखंड में एक बार फिर से सत्ता पर काबिज हुआ जा सके. ऐसे में पार्टी की नजर गणेश गोदियाल पर पड़ी. जो उस वक्त राठ कॅालेज की स्थापना में लगे हुए थे. कांग्रेस ने आने वाले आम चुनावों में शिवानंद नौटियाल का टिकट काटकर गोदियाल पर दांव लगा दिया. गोदियाल ने भी निशंक की लोकप्रियता को फीकी करते हुए विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की थी. 2007 के चुनावों में गोदियाल चुनाव तो हार गए थे. लेकिन निशंक को कड़ी टक्कर दी थी.
दिग्गजों को हरा चुके हैं गोदियाल
2012 में नए परिसीमन पर हुए चुनावों में श्रीनगर विधानसभा क्षेत्र से गणेश गोदियाल ने भाजपा के डॉ. धन सिंह रावत को पराजित किया. इसके बाद से गणेश गोदियाल का राजनीतिक कद बढ़ता चला गया. एक जमाने में वे पार्टी में सतपाल महाराज खेमे के विधायक माने जाते थे. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सतपाल महाराज भाजपा में शामिल हुए तो उनके भी भाजपा में आने की अटकलें लगी, लेकिन गोदियाल पार्टी में ही रहे. कई बार गणेस गोदियाल के बीजेपी में आने की खबर चलती रही. लेकिन गोदियाल ने पार्टी नहीं छोड़ी. साथ ही पुर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के करीबी नेताओं में गिने जाने लगे.
गणेश गोदियाल ( Ganesh Godiyal) उत्तराखंड के श्रीनगर के रहने वाले हैं. साथ ही राजनीति में एक जाना पहचाना चेहरा है. मुख्य रुप से गोदियाल व्यापारी वर्ग से आते हैं, लेकिन बीजेपी के बड़े नेता रमेश पोखरियाल निशंक को हराने के बाद वह लगातार कांग्रेस की राजनीति के सुत्राधार रहे हैं. फिलहाल पार्टी किसी जनाधार वाले नेता को पार्टी का अध्यक्ष बनाना चाहती थी. गोदियाल पर आकर उनकी खोज खत्म हो गई. गोदियाल के अध्यक्ष बनने के बाद से राजनीतिक पंडितों के सारे आंकडे धरासायी हो गए. क्योंकि किसी ने नहीं सोचा था कि गणेश गोदियाल को उत्तराखंड पार्टी की कमान सौंप दी जाएगी.
Source : News Nation Bureau