निजता के अधिकार की संवैधानिकता पर विचार कर रही सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच के सामने सरकार ने अपना रुख बदला है। सुनवाई के चौथे दिन, अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने मान लिया कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार हो सकता है।
लेकिन साथ ही ये भी जोड़ा - कि इसका हर पहलू मौलिक अधिकार के दायरे में नहीं आता। ये असीमित अधिकार नहीं है। निजता पर तर्कसंगत नियंत्रण हो सकता है। ऐसे में निजता को हर मामले में अलग-अलग देखने की जरूरत है।
हालांकि सुनवाई की शुरुआत में अटॉर्नी जनरल राइट टू प्राइवेसी को निजता को मौलिक अधिकार बताने से बचते रहे हैं। एजी ने कहा कि संविधान में निजता के अधिकार को भी मूल अधिकार का दर्जा दिया जा सकता था। इसे संविधान निर्माताओं ने जान बूझकर छोड़ दिया। इसलिए आर्टिकल 21 के तहत जीने या स्वतन्त्रता का अधिकार भी सम्पूर्ण अधिकार नहीं है।
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अगर ये सम्पूर्ण अधिकार होता तो फांसी की सज़ा का प्रावधान नहीं होता। ये अपने आप में मूल सिद्धांत है, कि बिना कानून स्थापित तरीकों को अमल में लाया जाए। किसी व्यक्ति से ज़मीन, सम्पति और ज़िन्दगी नहीं ली जा सकती है। बता दें कि कानून सम्मत तरीकों से ऐसा किया जा सकता हैं, यानि ये अधिकार सम्पूर्ण अधिकार नहीं है।
एजी ने आधार को सामाजिक न्याय से जोड़ा
अटॉर्नी जनरल ने कहा कि वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट भी ये तस्दीक करती है कि हर विकासशील देश में आधार कार्ड जैसी योजना होनी चाहिये। कोई शख्स ये दावा नहीं कर सकता कि उसके बायोमेट्रिक रिकॉर्ड लेने से मूल अधिकार का हनन हो रहा है। इस देश में करोड़ों लोग शहरों में फुटपाथ और झुग्गी में रहने को मजबूर हैं।
आधार जैसी योजना उन्हें खानपान, आवास जैसे बुनियादी अधिकारों को दिलाने के लिए लाई गई है ताकि उनका जीवन स्तर सुधर सके। महज कुछ लोगों के निजता के अधिकार की दुहाई देने से (आधार का विरोध करने वाले) एक बड़ी आबादी को उनकी बुनियादी जरूरतों से वंचित नहीं किया जा सकता
है।
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सुप्रीम कोर्ट के सवाल
अटॉर्नी जनरल की दलीलों के बीच बेंच के सदस्य जस्टिस चंद्रचूड़ ने उन्हें टोकते हुए कहा कि ये दलील सही नहीं कि प्राइवेसी महज सम्भ्रांत (इलीट क्लास) की चिंता का विषय है, ये बड़े वर्ग पर एक समान लागू होता है।
मसलन अगर सरकार स्लम एरिया में जनंसख्या नियंत्रण के मकसद से जबरन लोगों पर नसबन्दी थोपती है, तो इसके विरोध में सिर्फ निजता के अधिकार की दलील दी जा सकती है।
चार गैर बीजेपी शासित राज्य भी सरकार के विरोध में
इसी बीच चार गैर बीजेपी शासित राज्य, पंजाब, पश्चिमी बंगाल, कर्नाटक और पुड्डुचेरी की सरकार भी निजता के अधिकार को लेकर केंद्र सरकार के रुख के विरोध में सामने आ गई है।
राज्य सरकारों की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दलील देते हुए कहा कि इस जटिल मुद्दे को वर्ष 1954 और 1962 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर संवैधानिक कसौटी पर नहीं कसा जाना चाहिए।
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तकनीकी के इस युग में कई प्राइवेसी के पुराने मायने बदल चुके हैं और लोगों के निजी डाटा का दुरुपयोग किया जा रहा है। ऐसे में इस मुद्दे पर नए सिरे से सुनवाई की जानी चाहिए।
राइट टू प्राइवेसी तय होने के बाद आधार पर सुनवाई
दरअसल सुप्रीम कोर्ट में आधार कार्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं लंबित हैं। इन याचिकाओं में बायोमेट्रिक जानकारी लेने को निजता का हनन बताया है। जबकि सरकार की अब तक ये दलील रही है कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है।
इसलिए सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच सबसे पहले इस बात पर सुनवाई कर रही है कि निजता का अधिकाई मौलिक अधिकार है या नहीं। एक बार इस बारे में फैसला ले लिया जायेगा, उसके बाद पांच जजों की बेंच आधार कार्ड की वैधता को लेकर सुनवाई करेगी।
Source : Arvind Singh