सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को सरकार को उस समय लताड़ा जब उसने शीर्ष अदालत से आग्रह किया कि जनहित याचिका पर सुनवाई करने के दौरान वह सरकार के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी करने में 'संयम' बरते। शीर्ष अदालत ने साफ किया कि उसका उद्देश्य समस्याओं को सुलझाना है ना कि सरकार की आलोचना करना। केंद्र सरकार की ओर से पेश महान्यायवादी के.के. वेणुगोपाल ने न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा कि अदालत निजी जनहित याचिकाओं की सुनवाई में वित्तीय प्रभावों के बारे में समझे बिना आदेश जारी कर देती है।
वेणुगोपाल ने शीर्ष अदालत के ऐसे निर्णयों की जानकारी देने वाली समाचार पत्रों की सुर्खियों का हवाला दिया।
वेणुगोपाल ने उदाहरण देते हुए कहा कि 2जी लाइसेंसों को अदालत द्वारा रद्द करने से भारी विदेशी निवेश देश से बाहर चला गया। इसी तरह राजमार्गो पर से शराब की दुकानों को हटाने के एक और आदेश से वित्तीय घाटा हुआ और लोगों को अपनी रोजी-रोटी खोनी पड़ी।
वेणुगोपाल ने कहा, 'यहां बजटीय आवंटन का सवाल है..सरकार के 80-90 कल्याण कार्यक्रम एक साथ चल रहे हैं..अदालत एक मुद्दे पर सुनवाई कर आदेश दे देती है लेकिन उसके लिए फंड कहां से आएगा।'
उन्होंने कहा, 'न्यायाधीश जब सरकार के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणियां करते हैं तो शायद उन्हें हर समस्या के सभी पहुलओं के बारे में नहीं पता होता।'
न्यायमूर्ति लोकुर ने उन्हें जवाब देते हुए कहा कि यह अदालत का आदेश ही है जिसके कारण सरकार को गैरकानूनी खनन के लिए पर्यावरण निधि के रूप में 1,50,000 करोड़ रुपये मिले हैं।
अदालत ने यह जानना चाहा कि यह राशि अभी तक खर्च क्यों नहीं की गई।
और पढ़ें: सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी 497 कानून पर जब पति होता है सहमत तो कहां चली जाती है महिला की पवित्रता
पीठ में न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता भी शामिल हैं। अदालत ने कहा, 'हम यह स्पष्ट कर रहे हैं कि हमने सभी चीजों के लिए सरकार की आलोचना नहीं की और न ही करते हैं।'
उन्होंने कहा, 'हम भी इस देश के नागरिक हैं। ऐसी धारणा मत दीजिए कि हम सरकार की आलोचना कर रहे हैं और उसे काम करने से रोक रहे हैं। हम केवल जनता के अधिकारों को लागू कर रहे हैं। हम अनुच्छेद 21 की अवहेलना नहीं कर सकते।'
पीठ ने कहा कि अदालत के आदेश के कारण ही कई विकास कार्य हुए हैं। पीठ ने कहा कि आपको केवल अपने अधिकारियों से संसद के बनाए कानूनों का पालन करने के बारे में कहना चाहिए।
और पढ़ें: सुप्रीम कोर्ट ने आम्रपाली के निदेशकों को लगाई कड़ी फटकार, कहा- स्मार्ट बनने की कोशिश की तो कर देंगे बेघर
अदालत देश की 1382 जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों के कारण उत्पन्न अमानवीय स्थितियों पर एक जनहित याचिका की सुनवाई कर रही है। शीर्ष अदालत का सुझाव सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में कारागार सुधार पर एक सदस्यीय समिति के गठन का है जिसे दो-तीन सरकारी अधिकारी मदद दें। अदालत ने केंद्र से इस प्रस्तावित समिति के बारे में विवरण देने को कहा और मामले की सुनवाई के लिए 17 अगस्त की तारीख दी।
Source : IANS
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पीठ ने कहा कि अदालत के आदेश के कारण ही कई विकास कार्य हुए हैं। पीठ ने कहा कि आपको केवल अपने अधिकारियों से संसद के बनाए कानूनों का पालन करने के बारे में कहना चाहिए।
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सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को सरकार को उस समय लताड़ा जब उसने शीर्ष अदालत से आग्रह किया कि जनहित याचिका पर सुनवाई करने के दौरान वह सरकार के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी करने में 'संयम' बरते। शीर्ष अदालत ने साफ किया कि उसका उद्देश्य समस्याओं को सुलझाना है ना कि सरकार की आलोचना करना। केंद्र सरकार की ओर से पेश महान्यायवादी के.के. वेणुगोपाल ने न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा कि अदालत निजी जनहित याचिकाओं की सुनवाई में वित्तीय प्रभावों के बारे में समझे बिना आदेश जारी कर देती है।
वेणुगोपाल ने शीर्ष अदालत के ऐसे निर्णयों की जानकारी देने वाली समाचार पत्रों की सुर्खियों का हवाला दिया।
वेणुगोपाल ने उदाहरण देते हुए कहा कि 2जी लाइसेंसों को अदालत द्वारा रद्द करने से भारी विदेशी निवेश देश से बाहर चला गया। इसी तरह राजमार्गो पर से शराब की दुकानों को हटाने के एक और आदेश से वित्तीय घाटा हुआ और लोगों को अपनी रोजी-रोटी खोनी पड़ी।
वेणुगोपाल ने कहा, 'यहां बजटीय आवंटन का सवाल है..सरकार के 80-90 कल्याण कार्यक्रम एक साथ चल रहे हैं..अदालत एक मुद्दे पर सुनवाई कर आदेश दे देती है लेकिन उसके लिए फंड कहां से आएगा।'
उन्होंने कहा, 'न्यायाधीश जब सरकार के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणियां करते हैं तो शायद उन्हें हर समस्या के सभी पहुलओं के बारे में नहीं पता होता।'
न्यायमूर्ति लोकुर ने उन्हें जवाब देते हुए कहा कि यह अदालत का आदेश ही है जिसके कारण सरकार को गैरकानूनी खनन के लिए पर्यावरण निधि के रूप में 1,50,000 करोड़ रुपये मिले हैं।
अदालत ने यह जानना चाहा कि यह राशि अभी तक खर्च क्यों नहीं की गई।
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पीठ में न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता भी शामिल हैं। अदालत ने कहा, 'हम यह स्पष्ट कर रहे हैं कि हमने सभी चीजों के लिए सरकार की आलोचना नहीं की और न ही करते हैं।'
उन्होंने कहा, 'हम भी इस देश के नागरिक हैं। ऐसी धारणा मत दीजिए कि हम सरकार की आलोचना कर रहे हैं और उसे काम करने से रोक रहे हैं। हम केवल जनता के अधिकारों को लागू कर रहे हैं। हम अनुच्छेद 21 की अवहेलना नहीं कर सकते।'
पीठ ने कहा कि अदालत के आदेश के कारण ही कई विकास कार्य हुए हैं। पीठ ने कहा कि आपको केवल अपने अधिकारियों से संसद के बनाए कानूनों का पालन करने के बारे में कहना चाहिए।
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अदालत देश की 1382 जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों के कारण उत्पन्न अमानवीय स्थितियों पर एक जनहित याचिका की सुनवाई कर रही है। शीर्ष अदालत का सुझाव सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में कारागार सुधार पर एक सदस्यीय समिति के गठन का है जिसे दो-तीन सरकारी अधिकारी मदद दें। अदालत ने केंद्र से इस प्रस्तावित समिति के बारे में विवरण देने को कहा और मामले की सुनवाई के लिए 17 अगस्त की तारीख दी।
Source : IANS