देश में 1 जुलाई से नया टैक्स सिस्टम जीएसटी (गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स) लागू होने जा रहा है। इसे देश के इतिहास में सबसे बड़ा कर सुधार बताया जा रहा है। हालांकि जीएसटी का यहां तक का सफर करीब डेढ़ दशक से लंबी कोशिशों की कहानी है।
जीएसटी की शुरुआत की नींव पूर्व प्रधानमंत्री वी पी सिंह के कार्यकाल में पड़ी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में इसे मूर्त रूप दिया गया। हालांकि राजनीतिक गतिरोध और गठबंधन की मजबूरियों की वजह से मनमोहन सिंह के कार्यकाल में इसे अमली जामा नहीं पहनाया जा सका।
जीएसटी प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में लागू होने जा रहा है। संसद के केंद्रीय कक्ष से 30 जून की आधी रात को इस कानून को देश में लागू कर दिया जाएगा। इस पूरी प्रक्रिया में उन लोगों की भूमिका को समझना जरूरी हो जाता है, जिनकी कोशिशों के बाद देश को जीएसटी मिलने जा रहा है।
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पूर्व प्रधानमंत्री वी पी सिंह के कार्यकाल में हुई पहल
जीएसटी जैसे कर व्यवस्था की नींव वीपी सिंह की सरकार के कार्यकाल में पड़ी थी। सिंह ने MODVAT टैक्स प्रणाली को संसद में पेश किया था। यह टैक्स कुछ हद तक जीएसटी जैसा ही था। हालांकि इस दिशा में कुछ खास पहल नहीं हो पाई लेकिन इसने देश में जीएसटी जैसे टैक्स सिस्टम की नींव रख दी।
प्रधानमंत्री वाजपेयी ने उठाए कदम
इसके बाद इस दिशा में दूसरी बड़ी पहल पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी के समय में हुई। वाजपेयी ने बनाई पहली समिति, सन 2000 में अटल बिहारी वाजपेयी ने जीएसटी पर चर्चा के लिए मंजूरी देते हुए जीएसटी मॉडल और रोडमेप तैयार करने के लिए एक कमेटी का गठन किया था।
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तत्कालीन पश्चिम बंगाल के वित्तमंत्री असीम दास गुप्ता को इसका अध्यक्ष बनाया गया था।
इसके बाद 2004 में वित्त मंत्रालय के तत्कालिक सलाहकार विजय एल केलकर की अगुवाई में काम कर रही टास्क फोर्स ने देश के मौजूदा टैक्स सिस्टम में कई संरचनागत खामियों का जिक्र करते हुए सरकार को जीएसटी का सुझाव दिया।
इसके बाद जीएसटी जैसी व्यवस्था को लेकर एक दिशा मिल गई।
मनमोहन के कार्यकाल में हुए अहम बदलाव
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जीएसटी को लागू किए जाने की दिशा में सबसे अहम और तेज बदलाव पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में देखने को मिला, जब 2005-2006 के बजट में तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने पहली बार इसे लागू किए जाने का जिक्र किया।
बजटीय भाषण में उन्होंने पूरे प्रोडक्शन और डिस्ट्रीब्यूशन को एक नेशनल वैट या बेहतर गुड्स एंड सर्विसेज के तहत लाए जाने की अपील करते हुए देश में 1 अप्रैल 2010 से जीएसटी लागू करने की बात की।
हालांकि उनकी इस घोषणा के दौरान तत्कालिक वित्त मंत्री के सलाहकार पार्थसार्थी शोम ने राज्य सरकारों को जीएसटी के लिए कई महत्वपूर्ण बदलाव करने की सलाह दी थी। शोम ने इस दौरान केंद्र और राज्य के बीच बातचीत के लिए सेंट्रल सेल्स टैक्स की भरपाई का मुद्दा बताया था। हालांकि राज्यों के विरोध को लेकर बातचीत रफ्तार नहीं पकड़ नहीं पाई।
फरवरी 2007-08 में केंद्रीय बजट भाषण के दौरान एक बार फिर से जीएसटी को दोबारा लागू करने की बात कही गई और 1 अप्रैल 2010 की तारीख तय की गई।
वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के नेतृत्व में तेज़ हुई कार्रवाई
2009 में भारत के तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने जीएसटी के बेसिक स्ट्रक्चर की घोषणा करते हुए फिर से वही तारीख दोहरा दी। 2009 में उन्होंने असीम दासगुप्ता की कमेटी की सिफारिशों को जनता के सामने रखते हुए इस पर सुझावों की मांग की।
इसके बाद तत्कालीन यूपीए की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने जीएसटी के लिए सन 2010 में एक बड़ा कदम उठाया।
केंद्र सरकार ने कमर्शियल टैक्स के कम्प्यूटराइजेशन प्रोजेक्ट की शुरुआत करते हुए इस प्रोजेक्ट के लिए बजट में 1,133 करोड़ रुपये का प्रावधान रखा। वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने यह भी कहा कि सरकार 2011 से डायरेक्ट टैक्स कोड यानी डीटीसी लागू करने की हालत में है।
इसके बाद 2011 में यूपीए सरकार में कांग्रेस ने जीएसटी बिल पास कराने के लिए संसद में पेश किया। इस विधेयक को पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा की अध्यक्षता वाली संसद की स्थायी समिति के पास भेजा गया।
करीब एक साल बाद जून 2012 में स्थायी समिति ने इस पर चर्चा शुरू की। हालांकि इस दौरान विपक्षी दल के तौर पर बीजेपी (भारतीय जनता पार्टी) समेत अन्य दल जीएसटी की धारा 279 बी पर चिंता जताते रहे। इस धारा के तहत केंद्र के पास जीएसटी में अतिरिक्त विवेकाधीन शक्तियों की अनुमति थी।
राज्यों की चिंताओं के बीच नवंबर 2012 में तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने राज्यों के वित्तमंत्रियों के साथ चर्चा की। इस बैठक के बाद सभी मुद्दों को हल करने के लिए 31 दिसंबर 2012 तक का समय लिया गया।
2013 के शुरुआत में चिदंबरम ने कहा था कि राज्यों को भरपाई के लिए 9,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है और इसकी मदद से उन्होंने जीएसटी पर सहमति बनाने की उम्मीद जताई।
इसी साल अगस्त में स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट संसद में पेश की। पैनल ने इस विधेयक को कुछ संशोधनों के साथ अपनी मंजूरी दी। इसके बाद अक्टूबर में गुजरात के तत्कालीन वित्तमंत्री सौरभ पटेल ने इस बिल का विरोध किया था।
उन्होंने कहा था कि अगर इस हिसाब से जीएसटी लाया गया तो गुजरात को हर साल 14,000 करोड़ रुपये का नुकसान होगा। इस विरोध के बाद देश में लोकसभा के चुनाव हुए और गुजरात के तत्कालीन प्रधानमंत्री गांधीनगर से दिल्ली आ गए। हालांकि अब जीएसटी को लेकर मोदी का रुख बदल चुका था।
वित्तमंत्री अरुण जेटली ने आगे बढ़ाए कदम
सरकार बनने के बाद करीब 7 महीने बाद वित्तमंत्री अरुण जेटली ने इस बिल को संसद में पेश किया और कांग्रेस ने फिर से इस बिल को स्थायी समिति के पास भेजने की बात कही।
2015 फरवरी में संसद में वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा कि सरकार अप्रैल 2016 से जीएसटी लागू करना चाहती है। इसके बाद विपक्षी दलों और राज्यों को लेकर चर्चा का लंबा दौर शुरू हुआ।
कांग्रेस को मनाने की कोशिशें शुरू हुई और फिर उसके सहयोग से सरकार मई 2015 में लोकसभा में जीएसटी संविधान संशोधन विधेयक पारित कराने में सफल हुई।
हालांकि कांग्रेस की तरफ से चार महत्वपूर्ण संशोधनों को शामिल किए जाने के बाद ही इस बिल को राज्यसभा से पास कराया जा सका। अब जीएसटी हकीकत बन चुका है जिसे 1 जुलाई 2017 से पूरे देश में लागू किया जा रहा है।
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Source : Narendra Hazari