पंजाब कांग्रेस के भीतर मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के बीच सुलह की कोशिशों में लगे पंजाब प्रभारी हरीश रावत खुद विवादों में फंस गए हैं. उन्होंने नवजोत सिंह सिद्धू और अन्य चार कार्यकारी अध्यक्षों की तुलना सिख धर्म के महान 'पंज प्यारो' से कर दी, जिसपर हंगामा हो गया. कांग्रेस के अलावा जब विपक्षी दलों ने भी उन्हें घेरा तो विवाद बढ़ता चला गया. अब हरीश रावत ने अपने बयान पर माफी मांगी है. उन्होंने ट्वीट किया कि 'मुझसे ये गलती हुई है, मैं लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए क्षमा प्रार्थी हूं. मैं प्रायश्चित स्वरूप सबसे क्षमा चाहता हूं.'
कभी आप आदर व्यक्त करते हुये, कुछ ऐसे शब्दों का उपयोग कर देते हैं जो आपत्तिजनक होते हैं। मुझसे भी कल अपने माननीय अध्यक्ष व चार कार्यकारी अध्यक्षों के लिए पंज प्यारे शब्द का उपयोग करने की गलती हुई है। मैं देश के इतिहास का विद्यार्थी हूंँ और पंज प्यारों के ....1/2 pic.twitter.com/63RLnF4L0U
— Harish Rawat (@harishrawatcmuk) September 1, 2021
इस मामले में जब विवाद बढ़ा तो माफी मांगते हुए हरीश रावत ने ट्वीट किया 'कभी आप आदर व्यक्त करते हुए कुछ ऐसे शब्दों का उपयोग कर देते हैं जो आपत्तिजनक होते हैं. मुझसे भी कल अपने माननीय अध्यक्ष व चार कार्यकारी अध्यक्षों के लिए पंज प्यारे शब्द का उपयोग करने की गलती हुई है. मैं देश के इतिहास का विद्यार्थी हूं और पंज प्यारों के अग्रणी स्थान की किसी और से तुलना नहीं की जा सकती है. मुझसे ये गलती हुई है, मैं लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए क्षमा प्रार्थी हूं. मैं प्रायश्चित स्वरूप सबसे क्षमा चाहता हूं.'
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क्यों हुआ विवाद
हरीश रावत नवजोत सिंह सिद्धू और अमरिंदर के सिंह के बीच जारी विवाद को सुलझाने चंडीगढ़ पहुंचे थे. उन्होंने कैप्टन अमरिंदर सिंह से मुलाकात की थी. हरीश रावत ने मीडिया से बातचीत में सिद्धू और चार अन्य कार्यकारी अध्यक्षों की तुलना पंज प्यारे से कर दी. अकाली दल के प्रवक्ता और पूर्व मंत्री दलजीत सिंह चीमा ने कांग्रेस नेताओं की तुलना पंच प्यारे से करने को लेकर हरीश रावत की निंदा की थी. उन्होंने मांग उठाई थी कि हरीश रावत अपने शब्दों को वापिस लें और तुरंत ही सिख संगत से माफी मांगे.
गौतरलब है कि सिख धर्म में मान्यता है कि जब गुरु गोविंद सिंह ने सिख धर्म की शुरुआत की थी तो उन्होंने 5 प्यारों यानि 5 लोगों को चुना था, जोकि गुरु और धर्म के लिए कुछ भी कर सके और धर्म के लिए अपनी जान भी न्यौछावर कर देते हों. इसी के बाद से ये परंपरा रही है कि जब भी सिखों की कोई भी यात्रा, नगर-कीर्तन या धार्मिक कार्यक्रम होता है वहां पर पंज प्यारे उसका नेतृत्व करते हैं जिनको बहुत ही पवित्र माना जाता है.