सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर ने शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय में आरोप लगाया कि मामले सामने लाने वाले को ही सरकार खत्म करना चाहती है, जबकि दिल्ली हिंसा (Delhi Violence) के वास्तविक षड्यंत्रकारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रही है. उन्होंने दावा किया कि उनके भाषण में कुछ भी भड़काऊ नहीं था. मंदर की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने ये बातें कहीं जबकि उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली पुलिस के इन आरोपों पर शुक्रवार को सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर को जवाब देने का निर्देश दिया कि संशोधित नागरिकता कानून (CAA) के विरोध प्रदर्शन के दौरान उन्होंने नफरत पैदा करने वाले भाषण दिये जिनमें शीर्ष अदालत के खिलाफ भी कतिपय आपत्तिजनक टिप्पणियां थीं.
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दिल्ली उच्च न्यायालय ने उत्तर पूर्वी दिल्ली में हिंसा से जुड़े कई याचिकाओं पर सुनवाई की तारीख 12 मार्च के लिए सूचीबद्ध की. इसमें भाजपा नेताओं अनुराग ठाकुर, प्रवेश वर्मा और कपिल मिश्रा के खिलाफ कथित तौर पर नफरत भरे भाषण देने के लिए प्राथमिकी दर्ज करने से जुड़ी याचिका भी शामिल है. हिंसा में 53 लोगों की मौत हो गई और 200 से अधिक लोग जख्मी हो गए.
उच्च न्यायालय ने 27 फरवरी को ऐसे सभी मामलों की सुनवाई की तारीख 13 अप्रैल तय की थी
उच्च न्यायालय ने 27 फरवरी को ऐसे सभी मामलों की सुनवाई की तारीख 13 अप्रैल तय की थी, लेकिन उच्चतम न्यायालय ने चार मार्च को कहा कि इतने अधिक समय तक स्थगन ‘‘आवश्यक और उचित नहीं है.’’ उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय से हिंसा और कथित तौर पर नफरत भरे भाषण से जुड़े मामलों की सुनवाई छह मार्च को करने के लिए कही और कहा कि ‘‘उन पर यथासंभव जल्द से जल्द सुनवाई हो.’’ प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्य कांत की पीठ ने स्पष्ट किया कि उसने दिल्ली पुलिस की याचिका पर हर्ष मंदर को अवमानना का नोटिस जारी नहीं किया है और वह इस मामले की 15 अप्रैल को सुनवाई करेगी.
दिल्ली पुलिस ने बुधवार को दायर अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि हर्ष मंदर ने शीर्ष अदालत और उसके न्यायाधीशों के खिलाफ कथित अपमानजनक टिप्पणियां की हैं और उसने इसके लिये उनके खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने का अनुरोध किया था. हर्ष मंदर की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कहा कि उन्होंने इस कार्यकर्ता के नाम से दिये गये बयान का अवलोकन किया है और उन्हें इनमें कुछ भी अपमानजनक या आपत्तिजनक नहीं मिला है. उन्होंने कहा कि सरकार ऐसे ही धौंस दिखाने की कोशिश कर रही है. दवे ने कहा कि सरकार असली अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करने की बजाय इसे सामने लाने वाले को ही शिकार बनाना चाहती है.
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इससे पहले, सुनवाई होते ही दिल्ली पुलिस की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने इस दलील का विरोध किया और कहा कि उन्हें इसी तरह का एक और बयान मिला है जो आपत्तिजनक है और न्यायपालिका के लिये अपयशकारी है. इस पर पीठ ने मेहता से कहा कि वह एक अन्य हलफनामे में दूसरे भाषण का विवरण भी दाखिल करें ताकि मंदर उस पर भी अपना जवाब दाखिल कर सकें. पीठ ने कहा, ‘‘आप (मंदर) हलफनामे (दिल्ली पुलिस का) का जवाब दे सकते हैं.’’
सालिसीटर जनरल बोले- एक मामले में मंदर की ओर से कितने वकील बहस कर सकते हैं
पीठ ने कहा कि इस मामले को किसी अन्य पीठ को सौंपा जा सकता है अगर नौ सदस्यीय संविधान पीठ सबरीमला पुनर्विचार मामले से संबंधित प्रकरण की सुनवाई 15 अप्रैल तक पूरी नहीं कर सकी. इस दौरान मंदर का प्रतिनिधित्व कर रहे दवे और विधि अधिकारी के बीच तीखी बहस भी हुयी क्योंकि इसी बीच कार्यकर्ता के पक्ष में एक अन्य वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन भी बहस करने लगे जिसका मेहता ने विरोध किया. सालिसीटर जनरल ने कहा, ‘‘एक मामले में मंदर की ओर से कितने वकील बहस कर सकते हैं.
उन्होंने कहा कि अगर कोई व्यक्ति न्यायालय और उसकी गरिमा के खिलाफ टिप्पणी करेगा तो वह इसे शीर्ष अदालत के संज्ञान में लायेंगे. दवे ने कहा कि वह विधि अधिकारी से अनुरोध करते हैं कि इसी तरह का कोई हलफनामा भाजपा नेताओं के खिलाफ भी दें जिन्होंने नफरत फैलाने वाले भाषण दिये जिनकी वजह से उत्तर पूर्वी दिल्ली में हिंसा हुयी . सालिसीटर जनरल ने दवे के इस कथन का विरोध किया और कहा कि वह इस तरह की घटना न्यायालय के संज्ञान में लाने वाले पहले व्यक्ति होंगे. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि दवे ऐसा करने वाले अंतिम व्यक्ति होंगे. इस पर दवे ने सालिसीटर जनरल को चुनौती दी कि वह उनके खिलाफ अवमानना याचिका लाकर दिखायें.
सीजेआई ने हस्तक्षेप किया और मुद्दे पर अपनी टिप्पणी पूरी नहीं कर पाने पर वह क्षुब्ध दिखे. इस पर पीठ ने कहा, ‘‘हम इसकी सराहना नहीं करेंगे. हमें एक वाक्य भी पूरा नहीं करने दिया गया है.’’ पीठ ने स्पष्ट किया कि सबरीमला प्रकरण मामले की सुनवाई पूरी होने के बाद इस पर विचार किया जायेगा. शीर्ष अदालत ने हालांकि मंदर द्वारा दायर याचिका अपने पास रोक ली थी. इस याचिका में मंदर ने उच्च न्यायालय द्वारा मामले को लंबे समय के लिये स्थगित करने को चुनौती दी थी. मंदर ने याचिका में कथित रूप से नफरत पैदा करने वाले भाषण देने वाले नेताओं के खिलाफ प्राथमिकियां दर्ज करने का अनुरोध भी किया है.