मजदूरों की बदहाली पर सुनवाई करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसमें दो राय नहीं कि केंद्र और राज्यों ने कदम उठाए है लेकिन मजदूरों के घर जाने रजिस्ट्रेशन , ट्रांसपोर्टेशन और उनको खाना- पानी उपलब्ध कराने की प्रकिया में कई खामियां है. रजिस्ट्रेशन के बाद भी उन्हें घर जाने के लिए ट्रेन/ बस की सुविधा उपलब्ध होने में काफी वक्त लग रहा है। अभी भी मजदूर पैदल सड़को पर है। हमारे नोटिस के जवाब में अभी कई राज्यों ने जवाब दाखिल नही किया है। हमे लगता है कि अभी केंद्र और राज्यों को जवाब दाखिल करने के लिए और वक्त दिए जाने की ज़रूरत है.
- कोर्ट ने इस बारे में दिशा-निर्देश जारी करते हुए कहा कि बस या ट्रेन से सफर कर रहे प्रवासी मजदूरों से कोई किराया न वसूला जाए. राज्य किराया का खर्च उठाये.
- फंसे हुए मजदूरों को खाना- शरण उपलब्ध कराना राज्यों की ज़िम्मेदारी है. मजदूरों को बताया जाए कि उन्हें बस या ट्रेन मिलने के लिये कितना इंतज़ार करना होगा. रेल यात्रा के दौरान खाना मुहैया कराना पलायन होने वाली जगह वाले राज्य और रेलवे की ज़िम्मेदारी. बसों में भी खाना उपलब्ध कराया जाए
- राज्य रजिस्ट्रेशन प्रकिया की निगरानी करे. सुनिश्चित करे कि रजिस्ट्रेशन के बाद जल्द से जल्द घर भेजने की व्यवस्था हो . इस बारे में जानकारी प्रकाशित की जाए.
इससे पहले इंदिरा जय सिंह ने कोर्ट से गुजारिश की कि कोर्ट आज ही केंद्र सरकार का पक्ष सुनकर आदेश पास करे. इस मामले मे तुंरत सुनवाई की ज़रूरत है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सरकार का पक्ष रखा. उन्होंने कहा, कुछ दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं हुई है. हमने कोर्ट में शुरुआती रिपोर्ट जमा कराई है. SG तुषार मेहता ने कहा, 24 मार्च को जो लॉक डाउन घोषित हुआ, उसके दो मकसद थे. कोरोना की चेन को तोड़ना, हॉस्पिटल में स्वास्थ्य सेवाओं को तैयार करना. इसी के चलते प्रवासी कामगारों को पहले रोका गया ताकि संक्रमण शहरों से ग्रामीण इलाकों तक ना पहुंचे लेकिन अब प्रवासी मजदूरों को शिफ्ट करने की कोशिश जारी है.
यह भी पढ़ें: बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा कोविड-19 लक्षणों के साथ अस्पताल में भर्ती
सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि 1 मई से लेकर अब तक 91 लाख मजदूरों को उनके गृह राज्यों में भेजा गया है. 3700 श्रमिक स्पेशल ट्रेन के जरिये 50 लाख मजदूरों को भेजा गया. इसके अलावा पड़ोसी राज्यों में करीब 41 लाख लोगो को बसों के जरिये भेजा गया. केंद्र और राज्य मिलकर अपनी विचारधारा और पार्टी लाइन से ऊपर उठकर माइग्रेशन के काम में लगे है. हर रोज 1.85 लाख मजदूरों को भेजा जा रहा है. कोर्ट ने पूछा कि मजदूरों के टिकट के पैसे कौन दे रहा है. इस पर SG तुषार मेहता ने कहा, शुरुआत में इसे लेकर भ्रम की स्थिति बनी. लेकिन बाद में ये तय हुआ कि किराया या तो वो राज्य देंगे जहां से मजदूर पलायन कर रहे है या वो राज्य जहां पर मजदूरों को जाना है. लेकिन किराया मजदूरों को चुकाने की ज़रूरत नहीं है. खाना- पीने का पानी रेलवे द्वारा मुफ्त उपलब्ध कराया जा रहा है. रेलवे 81 लाख लोगों को खाना खिला चुका है. यात्रा पूरी होने पर भी मजदूरों की स्क्रीनिंग होती है,ताकि कोरोना संक्रमण न फैले. 80 % से ज़्यादा मज़दूर यूपी, बिहार से आते है. यूपी जैसे राज्यों ने मजदूरों के रेलवे स्टेशन पर पहुंचने पर उनको क्वारंटाइन करने की व्यवस्था भी की है.
कोर्ट ने पूछा कि घर के लिए रजिस्ट्रेशन कराने के बावजूद प्रवासी मजदूरों को इतना इंतज़ार क्यों करना पड़ रहा है. क्या पहले उन्हें किराया देने के बोला गया. क्या इतंजार के दरमियान उन्हें खाना मिल रहा है. जब FCI के पास पर्याप्त अनाज है तो अनाज की कमी तो नहीं होनी चाहिए. हम मानते है कि सबको एक साथ भेजा नहीं जा सकता, लेकिन इस दरमियान उन्हें खाना, शरण तो मिलनी चाहिए. जब तक ये लोग अपने घरों तक नही पहुंच जाते, उन्हें खाना, पानी, बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना सरकार की ज़िम्मेदारी है.
यह भी पढ़ें: मोदी सरकार के इस एक फैसले से जापान, चीन, यूरोपीय संघ और रूस को होगा बड़ा नुकसान
कोर्ट ने कहा कि हम ऐसा नहीं कह रहे कि सरकार कुछ नहीं कर रही, पर इतनी बड़ी तादाद में जिस तरह मज़दूर फंसे हुए है , कुछ ठोस कदम उठाए जाने की ज़रूरत है. कोर्ट ने पूछा कि सभी मजदूरों को उनके गृह राज्य भेजने में और कितना वक़्त लगेगा. इस पर SG तुषार मेहता ने कहा ये जानकारी राज्यों को उपलब्ध करानी है.
कोर्ट ने पूछा कि लेकिन उन प्रवासी मजदूरों का क्या, जो शेल्टर होम में नहीं रह रहे. बहुत सारे लोग किराए के मकान में रह रहे हैं. SG तुषार मेहता ने कहा, 5 किलो अनाज और 1 किलो दाल हरेक को उपलब्ध कराई जा रही है फिर चाहे वो रिलीफ कैम्प में हो या नहीं. कुछ जगह स्थानीय स्तर पर लोग सक्रिय है, जो मजदूरों को पैदल चलने के लिए उकसा रहे है. उन्हें समझाया जा रहा है कि लॉक डाउन और बढ़ेगा, ट्रेन नहीं चलेगी. कोर्ट ने पूछा कि जो लोग रास्ते में है, पैदल चल रहे है, उन्हें खाना कैसे मिलेगा.
SG ने कहा, ऐसे पैदल चल रहे लोगों को तुरंत बस में बैठाकर नजदीक के रेलवे स्टेशन पर लाया जा रहा है ताकि उनके गांव उन्हें भेजा जा सके.
सुप्रीम कोर्ट लगातार SG तुषार मेहता से सवाल कर रहा हैं. कोर्ट ने सरकार से बिंदुओं पर स्थिति स्पष्ठ करने के लिए कहा है
- मजदूरों को कैसे पता चलेगा कि उन्हें घर जाने के लिए व्यवस्था कब तक हो पाएगी.
- कौन सा राज्य उनके किराए का खर्च उठाएगा ? मजदूरों को ये स्पष्ठता रहे कि उन्हें किराया नहीं चुकाना होगा ताकि वो दलालो के चंगुल में न फंसे
- क्या ऐसी कोई नीति है कि कोई राज्य मजदूरों को एंट्री देने से इंकार नहीं कर सकता
SG तुषार मेहता ने कहा कि राज्यों से बात कर वो विस्तृत जवाब दाखिल करेंगे. उन्होंने इस मासले पर कोर्ट से संज्ञान का आग्रह करने वाले बड़े वकीलो पर कटाक्ष किया. SG ने कहा कि कुछ लोग नकारात्मकता से भरे हैं. उनमें देशप्रेम नहीं है. यह उस फोटोग्राफर की तरह जिसने मौत की कगार पर पहुंचे बच्चे और गिद्ध की तस्वीर खींची थी. उससे एक पत्रकार ने कहा था कि वहां 1 नहीं 2 गिद्ध थे. जिन लोगों ने आपसे संज्ञान लेने का आग्रह किया , जरा उनका ख़ुद का योगदान भी तो देखिए. वो वह करोड़ों में कमाते हैं लेकिन क्या 1 पैसा भी वो खर्च कर रहे है. लोग सड़कों पर भूखों को खाना खिला रहे है पर क्या ये लोग मदद के लिए AC कमरों से बाहर निकले हैं. उन लोगों से हलफनामा दाखिल करवा के पूछा जाना चाहिए कि आखिर वो क्या मदद कर रहे हैं. ऐसे लोगों को राजनीति मकसदों के लिए कोर्ट के इस्तेमाल की इजाजत नहीं मिलनी चाहिए. जस्टिस कौल ने कहा, अगर कुछ लोग न्यायपालिका को अपने हिसाब से चलाना चाहते हैं तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है. हम अपनी अंतरात्मा के हिसाब से न्याय के लिए काम करेंगे.