सुप्रीम कोर्ट में 6 अगस्त से अयोध्या केस की रोजाना सुनवाई हो रही है. 17 अक्टूबर तक इस मामले की सुनवाई होगी और एक महीने बाद यानी 18 अक्टूबर को इस पर फैसला आएगा. 6 अगस्त से 30 अगस्त तक हिन्दू पक्ष की तरफ़ से निर्मोही अखाड़ा, रामलला विराजमान, रामजन्मस्थान गोपाल सिंह विशारद, श्री रामजन्मभूमि पुनरुत्थान समिति और हिंदू महासभा ने अपनी दलीलें रखीं. 2 सितम्बर से मुस्लिम पक्ष की ओर से सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन, ज़फ़रयाब जिलानी, मीनाक्षी अरोड़ा, शेखर नाफडे, मोहम्मद निजाम पाशा ने मस्जिद के पक्ष में दलीलें पेश कीं.
निर्मोही अखाड़ा ने अब तक कोर्ट में क्या क्या कहा
- निर्मोही अखाड़े की तरफ़ से वकील सुशील जैन ने अब तक अपनी बातें रखी हैं
- निर्मोही अखाड़ा पूजा प्रबंधन और अधिकार को लेकर लड़ रहा है.
- सुनवाई के दूसरे ही दिन 7 अगस्त को निर्मोही अखाड़े ने कहा कि उसके पास रामजन्मभूमि के स्वामित्व का कोई सबूत नहीं है.
- निर्मोही अखाड़ा ने कहा कि साल 1982 में डकैती हुई थी, जिसमें हमने सारे रिकॉर्ड खो दिए.
- 1934 से किसी भी मुस्लिम को विवादित ढांचे में प्रवेश नहीं मिला है.
- 1855 से पहले यहां कभी नहीं पढ़ी गई नमाज.
- ये मंदिर ही था जिसकी देखरेख निर्मोही अखाड़ा करता था.
- पूरा का पूरा ढांचा जमीन से घिरा हुआ है और हिंदू देवता वहां थे.
- विवादित ज़मीन पर मालिकाना हक़ का दावा नहीं कर रहे.
- सिर्फ पूजा-प्रबन्धन और कब्जे का अधिकार मांग रहे है.
- मेरे सेवादार के अधिकार को छीन कर मुझसे कब्जा लिया गया.
- रामलला की ओर से जो निकट सहयोगी देवकी नंदन अग्रवाल बनाये गए है, मैं उन्हें नहीं मानता. वो तो पुजारी भी नहीं है.
- मैं रामलला और रामजन्मस्थान की याचिका के खिलाफ नहीं हूँ.
- सिर्फ निर्मोही अखाड़े का नाम गैजेटियर और ऐतिहासिक दस्तावेजो में अंकित है.
- सिर्फ मैं ही हिंदू पक्ष का प्रतिनिधित्व कर सकता हूँ.
- हम देव स्थान का मैनेजमेंट करते हैं और पूजा का अधिकार चाहते हैं.
- निर्मोही अखाड़ा जन्मस्थान का मैनेजमेंट देखता है.
- हमारा दावा आंतरिक अहाते को लेकर है.
- बाहर तो हमारा अधिकार और कब्ज़ा पहले से ही था.
- जल्दी-जल्दी सुनवाई से नाराज़ होकर कहा अयोध्या मामले की सुनवाई अब 20-20 की तरह हो गई है… खफा SC ने पूछा- क्या पहले टेस्ट था?
- हम तो सदियों से रामलला के सेवायत रहे हैं.
- हमारे सेवा के अधिकार को किसी ने चुनौती नहीं दी है.
- हमें मन्दिर से बेदखलकर बाहर किया गया. पर हमारी सेवा चलती रही.
- अब कोर्ट हमारी बजाय बाकी पक्षकारों को कब्जा साबित करने को कहे.
रामलला विराजमान की तरफ़ से वकील सीएस वैद्यनाथन की दलीलें
- रामलला विराजमान ने कहा, भक्तों की अटूट आस्था प्रमाण है कि विवादित स्थल ही राम का जन्मस्थान है.
- हाई कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा, जज ने खुद लिखा है कि भगवान राम का मंदिर ढहाकर मस्जिद बनाई गई.
- महज मस्जिद जैसा ढांचा खड़ा कर इस पर मालिकाना हक का दावा नहीं कर सकता.
- जन्मस्थली कानूनी व्यक्ति की तरह है, वह वादी हो सकता है.
- जमीन कुछ समय के लिए बोर्ड के पास जाने से वह मालिक नहीं हो जाता.
- ऐतिहासिक किताबों, विदेशी यात्रियों के यात्रा वृतांतों और वेद एवं स्कंद पुराण की दलीलें कोर्ट में पेश की गईं.
- जिस जगह मस्जिद बनाई गई थी उसके नीचे मंदिर का बहुत बड़ा ढांचा था.
- यह हिंदुओं के लिए महत्व का स्थान है, यह बौद्धों का पवित्र स्थान कभी नहीं रहा.
- मंदिर अपने आप में भगवान. कोई भी महज मस्जिद जैसा ढांचा खड़ा कर इस पर मालिकाना हक का दावा नहीं कर सकता.
- यह एक उचित अनुमान है कि यह एक हिंदू मंदिर था.
- कुरान में यह कहा गया है कि रसूल के विचारों को स्मृति में रखने के लिए उनसे सुनकर उन्हें लिखा गया.
- मेरा ये कहना है कि परंपरा और धर्मग्रन्थों को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में माना है.
रामलला विराजमान की तरफ़ से वकील के परासरन की दलीलें
- जन्म स्थान पर मनाया जाए राम का जन्मदिन, रामजन्म भूमि को एक न्यायिक व्यक्ति के तौर पर देखा जाए.
राम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति के वकील पीएन मिश्रा की दलीलें
- स्कंद पुराण में बताया गया है कि कहां जन्मस्थान है.
- बाबरी मस्जिद बाबर नहीं, औरंगजेब ने बनवाई.
- बाबरनामा, तुजुके जहांगीरी और आईने अकबरी का हवाला दिया.
- 1770 से पहले जिसने भी अयोध्या की यात्रा की उसने वहां मस्जिद होने का कोई जिक्र तक नहीं किया.
- कोई भी ऐतिहासिक दस्तावेज़ नहीं हैं जो ये बताएं कि जन्मभूमि पर विवादित ढांचा (बाबरी मस्जिद) 520 AD में बना था.
- बाबरनामा में मीर बाक़ी के बारे में जिक्र तक नहीं है.
- बाबरनामा में बाक़ी बेग ताश्कंदी और बाक़ी बेग का जिक्र है.
- बाक़ी ताश्कंदी 1529 में ताशकन्द से (अयोध्या) बाबर से मिलने आया था.
- मंदिर बाबर ने नहीं, औरंगजेब ने तोड़ा था.
- मीर बाकी जैसा कोई शख्स था ही नहीं.
- सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा गलत तथ्य पर आधारित हैं.
- आईने अकबरी और हुमायूंनामा में बाबर द्वारा बाबरी मस्जिद बनने की बात कहीं नहीं है.
- तुजुके जहांगीरी में भी बाबरी मस्जिद का नाम तक नहीं है.
- हमारे मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई.
- वक्फ बोर्ड यह साबित करे कि 100-200 साल से यहां कब नमाज पढ़ी गई?
- बाबर इसका सिर्फ वाकिफ था यानी उसने सिर्फ जमीन वक्फ की.
- ब्रिटिश दौर से भी पहले 1770 में भारत भ्रमण पर आए लेखक पर्यटक ट्रैफन थेलर ने वहां बमुश्किल 30-40 वर्ष पहले बनी इमारत का उल्लेख किया है, जिसे तब के अयोध्यावासी मस्जिद जन्मभूमि के नाम से जानते थे.
- बाबर द्वारा मस्जिद बनाने के सबूत नहीं.
- इससे जुड़ा कोई सबूत नहीं है कि 1528 में मस्जिद का निर्माण किया गया.
- इलाहाबाद हाईकोर्ट में मुस्लिम इस बाबत कोई सबूत पेश नहीं कर पाए कि मस्जिद बाबर ने बनवाई या औरंगजेब ने.
- हाई कोर्ट ने फैसले में माना था कि मस्जिद का निर्माण मंदिर को नष्ट करके किया गया था.
- हाई कोर्ट ने बहुमत से माना था कि इस बात के सबूत नहीं हैं कि बाबर जमीन का मालिक था.
हिंदू महासभा के वकील हरिशंकर जैन की दलीलें
- एक बार मंदिर बन गया तो हमेशा मंदिर ही रहता है.
- राम और कृष्ण हमारे देश की संस्कृति की धरोहर हैं.
- ये स्थापित दलील है कि बाबर ने मन्दिर तोड़कर मस्जिद का रूप दिया.
- संविधान की मूल प्रति के तीसरे चैप्टर में भी राम की तस्वीर है, राम संवैधानिक पुरुष भी हैं.
- राम अयोध्या में महल में पैदा हुए थे. ये विश्वास नहीं, सही है क्योंकि सभी ग्रंथ यही कहते हैं.
- ये जगह शुरू से हिंदुओं के अधिकार में रही है.
- आज़ादी के बाद भी हमारे अधिकार भी सीमित क्यों रहें?
- क्योंकि 1528 से 1885 तक कहीं भी और कभी भी मुसलमानों का यहां कोई दावा नहीं था.
- आखिरी बार 16 दिसंबर 1949 को वहां नमाज़ अदा की गई, इसके बाद ही दंगे हुए और प्रशासन ने नमाज़ बंद करा दी.
- 1934 से 1949 के दौरान मस्जिद वाली इमारत की चाभी मुसलमानों के पास रहती थी लेकिन पुलिस अपने पहरे में जुमा की नमाज़ के लिए खुलवाती थी, सफाई होती और नमाज़ होती. इस पर बैरागी साधु शोर मचाते और नमाज़ में खलल पड़ता था, तनाव बढ़ता था. 22-23 दिसंबर की रात जुमा के लिए नमाज़ की तैयारी तो हुई लेकिन नमाज़ नहीं हो पाई.
गोपाल सिंह विशारद की तफर से वकील रंजीत कुमार की दलीलें
- मैं उपासक हूं और मुझे विवादित स्थल पर उपासना का अधिकार है.
- यह अधिकार मुझसे छीना नहीं जा सकता.
- भगवान राम का उपासक होने के नाते मेरा मेरा वहां पर पूजा करने का अधिकार है.
- यह मेरा सामाजिक अधिकार है, जिसे हटाया नहीं जा सकता.
- ये वो जगह है जहां भगवान राम का जन्म हुआ था.
- मैं यहां पर पूजा करने का अधिकार मांग रहा हूं.
- ट्रायल कोर्ट के सामने पेश किए गए दस्तावेजों को सुप्रीम कोर्ट के सामने रखा.
- (80 साल के अब्दुल गनी की गवाही का हवाला देते हुए) गनी ने कहा था बाबरी मस्जिद जन्मस्थान पर बनी है ब्रिटिश राज में मस्जिद में सिर्फ जुमे की नमाज होती थी. हिन्दू भी वहां पर पूजा करने आते थे. मस्जिद गिरने के बाद मुस्लिम ने नमाज पढ़ना बंद कर दिया लेकिन हिंदुओं ने जन्मस्थान पर पूजा जारी रखी.
- दस्तावेज बताते हैं कि 1858 से पूजा होती रही है.
- हिंदुत्व और हिंदू में पूजा का अधिकार मिला हुआ है.
- इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में ये बात मानी है कि हिंदू 100 साल से वहां पूजा करते रहे हैं.
- पूजा लगातार होती रही है और तमाम दस्तावेज ये बात साबित करते हैं.
- जो हलफनामे पेश किए गए हैं उससे साबित होता है कि 1934 के बाद वहां नमाज नहीं पढ़ी गई.
के. परासरण की दलीलें
- विवादित जगह पर मूर्ति थी या नहीं थी। ये उतना महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं है.
- पूजा तमाम तरह से होते हैं। कहीं मूर्ति होती है कहीं मूर्ति नहीं होती है.
- पूजा का मकसद होता है कि देवत्व की पूजा हो.
- मूर्ति नहीं होने के आधार पर जन्मस्थान पर सवाल नहीं उठाया जा सकता.
- इस तरह का सवाल उठाना उचित नहीं है.
- हिंदू धर्म के मुताबिक एक गॉड सुप्रीम हैं उनके अलग-अलग रुपों की मंदिरों में पूजा होती है.
- जन्म स्थान पर मनाया जाए राम का जन्मदिन, रामजन्म भूमि को एक न्यायिक व्यक्ति के तौर पर देखा जाए.
शिया वक़्फ़ बोर्ड की दलील
- शिया वक्फ बोर्ड की ओर से वकील एमसी धींगरा ने कहा कि 1936 में शिया सुन्नी वक्फ बोर्ड बनाने की बात तय हुई और दोनों की वक्फ सम्पत्तियों की सूची बनाई जाने लगी. 1944 में बोर्ड के लिए अधिसूचना जारी हुई. वो मस्जिद शिया वक्फ की संपत्ति थी लेकिन हमारा मुतवल्ली शिया था. गलती से इमाम सुन्नी रख दिया गया. हम इसी वजह से मुकदमा हारे.
- रिकॉर्ड में दर्ज है कि 1949 में मुतवल्ली जकी शिया था. कोर्ट ने कहा कि आप हिन्दू पक्ष का विरोध नहीं कर रहे हैं, बस इतना ही काफी है. सीजीआई ने कहा कि हाईकोर्ट में आपकी अपील 1946 में खारिज हुई और आप 2017 में SLP लेकर सुप्रीम कोर्ट आए. इतनी देरी क्यों? जिस पर शिया वक्फ बोर्ड की ओर से वकील ने कहा कि हमारे दस्तावेज सुन्नी पक्षकारों ने जब्त किए हुए थे.
राजीव धवन की दलीलें
- धवन ने 17वें दिन मस्जिद पर हमले का जिक्र किया .हिन्दुओं ने 1934 में बाबरी मस्जिद पर हमला किया, फिर 1949 में अवैध घुसपैठ की और 1992 में इसे तोड़ दिया और अब कह रहे हैं कि संबंधित जमीन पर उनके अधिकार की रक्षा की जानी चाहिए.
- बाबरी के अंदर देवी-देवताओं की प्रतिमा का प्रकट होना चमत्कार नहीं था.
- 22-23 दिसंबर 1949 की रात उन्हें रखने के लिए सुनियोजित तरीके से और गुपचुप हमला किया गया.
- अयोध्या विवाद पर विराम लगना चाहिए। अब राम के नाम पर फिर कोई रथयात्रा नहीं निकलनी चाहिए.
- 1990 में निकाली गई रथयात्रा की ओर था जिसके बाद बाबरी विध्वंस हुआ था.
- विवादित जमीन के ढांचे के मेहराब के अंदर के शिलालेख पर 'अल्लाह' शब्द मिला.
- बाबरी मस्जिद में भगवान रामलला की मूर्ति स्थापित करना छल से हमला करना है.
- 1934 में निर्मोही अखाड़ा ने गलत तरीके से अवैध कब्जा कर लिया था. धवन के मुताबिक, इसके बाद नमाज अदा नहीं की गई.
- मूर्तियां रखने से मस्जिद का वजूद खत्म नहीं होता.
- लगातार नमाज ना पढ़ने और मूर्तियां रख देने से मस्जिद के अस्तित्व पर सवाल नहीं उठाए जा सकते.
- यह सही है कि विवादित ढांचे का बाहरी अहाता शुरू से निर्मोही अखाड़े के कब्जे में रहा है.
- झगड़ा आंतरिक हिस्से को लेकर है जिस पर कब्जा किया गया, लेकिन अदालत में किए गए उनके दावों में यह नहीं है। हम प्रतिकूल कब्जा मांग रहे हैं.
- निर्मोही अखाड़े ने पूजा का अधिकार मांगा था. हमने उन्हें राम चबूतरा दे दिया, लेकिन पूरी इमारत और अहाते के प्रबंधन का अधिकार हमारे पास ही था.
- कई दशकों तक राम चबूतरे पर बनाए गए छोटे से मंदिर में रामलला की पूजा होती रही लेकिन गवाह बताते हैं कि मूर्ति वहां बाद में रखी गई थी.
- निर्मोही अखाड़े के महंत रघुबर दास ने 1885 में स्वीकार किया था कि उनका बाहरी अहाते में पूजा का अधिकार था.
- निर्मोही अखाड़े के प्रबंधन अधिकार के दावे पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है.
- जस्टिस अशोक भूषण ने धवन से सवाल किया कि इसका मतलब है कि आप मान रहे हैं कि मंदिर का अस्तित्व है. जिस पर उन्होंने जवाब दिया, हो सकता है लेकिन सवाल कहां है.
- निर्मोही अखाड़ा 1734 से अस्तित्व का दावा कर रहा है. लेकिन अखाड़ा 1885 में बाहरी आंगन में था और राम चबूतरा बाहरी आंगन में है जिसे राम जन्मस्थल के रूप में जाना जाता है और मस्जिद को विवादित स्थल माना जाता है.
- कुछ लोग अखाड़ा 700 साल पहले का मानते हैं, लेकिन मैं निर्मोही अखाड़े की उपस्थिति 1855 से मानता हूं. 1885 में महंत रघुबर दास ने मुकदमा दायर किया.
- मंदिर और मस्जिद सह-अस्तित्व में हैं लेकिन हम पूरी मस्जिद के लिए टाइटल का दावा कर रहे हैं.
- अखाड़े की लिखित दलील का हवाला देते हुए धवन ने यात्री ट्रैफनथैलर की किताब का हवाला दिया कि तब ऐसी मान्यता थी कि श्रीराम बाहर चबूतरे वाली जगह पर पैदा हुए थे.
- हिंदू पक्ष के पास जमीन का मालिकाना हक नहीं.
- 22 दिसंबर 1949 को जो गलती हुई उसे जारी नहीं रखा जा सकता...क्या हिंदू पक्षकार गलती को लगातार जारी रखने के आधार पर अपने मालिकाना हक का दावा कर सकते हैं?
- संवैधानिक बेंच को दो पहलुओं को देखना है. पहला ये है कि विवादित स्थान पर मालिकाना हक किसका बनता है और दूसरा पहलू ये है कि क्या गलत एक्ट को लगातार जारी रखा जा सकता है या नहीं.
- राजीव धवन ने कहा 22 दिसंबर 1949 को मस्जिद के गुंबद के नीचे मूर्ति रख दी गई थी. ये गलत हरकत की गई जो अवैध ऐक्ट है लेकिन इसके बाद मैजिस्ट्रेट ने यथास्थिति बहाल रखने का ऑर्डर पास कर दिया. यानी गलती को लगातार जारी रखा गया. क्या ये किसी को अपना अधिकार बताने का आधार हो सकता है.
- किसी स्थान का गलत तरीके से कब्जा करना उस पर पजेशन का अधिकार नहीं दे सकता. 1949 में हिंदुओं गलत एक्ट किया. बाद में मजिस्ट्रेट ने यथास्थिति का आदेश बहाल कर दिया. एक गलत एक्ट था जिसे यथास्थिति के आदेश से जारी रखा गया और इस आधार पर किसी का अधिकार उत्पन्न नहीं हो सकता.
- क्या 1950 से पहले उनके पास कोई अधिकार था. उन्हें ये इस बात के सबूत देने होंगे कि उससे पहले उनके पास क्या अधिकार था. उनके पास क्या सबूत हैं. उनके अधिकार और साक्ष्य क्या हैं. एक गलत ऐक्ट लगातार जारी रहा और उसे ही क्या अधिकार कहा जाएगा?
- निर्मोही अखाड़ा पहले बाहरी आंगन में राम चबूतरे पर पूजा करता था लेकिन अवैध ऐक्ट हुआ और फिर वो अंदर के आंगन में आए. इससे पहले वह भीतरी आंगन में कभी नहीं पूजा के लिए आए थे.
- धवन ने जन्मस्थान को कानूनी व्यक्ति कहे जाने की दलील पर सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि वेदों में पेड़, पृथ्वी, सूर्य और चांद को पूजते हैं, लेकिन इसे अपना अधिकार क्षेत्र नहीं कहते. कल यदि चीन मानसरोवर यात्रा रोक दे तो क्या हम उस पर दावा ठोकेंगे?
- स्वयंभू की धारणा ये है कि ईश्वर खुद को प्रकट करता है. कोई पर्वत या मानसरोवर से यह साबित नहीं होता कि इस तरह के स्वयंभू ईश्वर स्वरूपों का कोई कानूनी व्यक्ति ही हो.
- जस्टिस बोबड़े ने पूछा, कानूनी व्यक्ति और स्थान की दिव्यता के मामले में काबा स्वयंभू है या किसी व्यक्ति ने बनाया है? इसके जवाब में मुस्लिम पक्ष के वकील एजाज मकबूल ने कहा कि इस पवित्र स्थल को पैगंबर इब्राहिम ने बनाया था. वहीं, धवन ने कहा कि काबा में जो भी स्वरूप है, उसमें दिव्यता अंतरनिहित है.
- मेरी दलील है कि जन्मस्थान कानूनी व्यक्ति नहीं हैं. दुर्भाग्य से हाई कोर्ट जन्मस्थान वाली दलील में कूद पड़ा था. यहां भी जन्मस्थान वाली दलील में सुप्रीम कोर्ट पड़ गया है.
- हिंदू पक्षकार आस्था के आधार पर अपना दावा पेश कर रहे हैं, लेकिन हमारी दलील है कि मूर्ति हमेशा बाहरी आंगन में थी और वहां पूजा होती रही है लेकिन 1949 में मूर्ति को भीतरी आंगन में शिफ्ट किया गया और फिर पूरे इलाके पर उन्होंने दावा कर दिया है.
- धवन ने जन्मस्थान को न्यायिक व्यक्ति की तरह पेश किए जाने का विरोध किया. उन्होंने कहा, "किसी जगह की परिक्रमा होने के चलते पूरी जगह को पूजास्थल मान लेना गलत है.
- पूरी ज़मीन को पूजास्थल बताना, उसे देवता या न्यायिक व्यक्ति साबित करना सही नहीं है. देवता का विभाजन कोर्ट भी नहीं कर सकता. यही कोशिश की जा रही है."
- मथुरा में कृष्ण जन्मस्थान है. उसे तो देवता का दर्जा नहीं दिया गया. अयोध्या में पूरी ज़मीन को पूजा की जगह बताने का मकसद दूसरे पक्ष को बाहर कर देना है.
- अयोध्या में ही 3 जगहों को भगवान राम का जन्मस्थान बताया जाता है. ऐसे में दावे से कुछ भी नहीं कहा जा सकता."
- विवादित जगह पर मंदिर होने के दावे का भी खंडन किया. इमारत से जिन खंभों के मिलने का दावा किया जाता है, उनमें हिंदू देवताओं की आकृति नहीं बनी थी. कमल जैसी कुछ आकृतियों के आधार पर उसे मंदिर नहीं कहा जा सकता.
- सुनवाई के 27वें दिन गर्मागर्म बहस हुई. राजीव धवन ने विवादित इमारत की मुख्य गुंबद के नीचे गर्भ गृह होने के दावे को बाद में गढ़ा गया बताया.
- धवन की मुख्य दलील इस पर आधारित है कि विवादित इमारत के बाहर बना राम चबूतरा वह जगह है जिसे भगवान राम का जन्म स्थान कहा जाता था.
- 1885 में महंत रघुवरदास की तरफ से दाखिल मुकदमे में यही कहा गया था. मुख्य गुंबद के नीचे असली गर्भगृह होने की धारणा को बाद में बढ़ाया गया. इसी वजह से 22-23 दिसंबर, 1949 की रात वहां गैरकानूनी तरीके से मूर्तियां रख दी गई.
- धवन की दलीलों के दौरान उन्हें रोकते हुए 5 जजों की बेंच के सदस्य जस्टिस अशोक भूषण ने उनका ध्यान राममूरत तिवारी नाम के गवाह के बयान की तरफ दिलाया. तिवारी ने हाई कोर्ट में बयान दिया था कि 1935 में वह 13 साल की उम्र में पहली बार विवादित इमारत में गए थे. वहां उन्होंने इमारत के भीतर एक मूर्ति और भगवान की तस्वीर देखी थी. धवन ने तिवारी की गवाही को अविश्वसनीय बताते हुए कहा कि उस पर चर्चा नहीं होनी चाहिए. उनका कहना था कि गवाह के पूरे बयान को देखें तो ऐसा लगता है उसे बातें ठीक से याद नहीं थी. इसलिए हिंदू पक्ष ने भी उसकी गवाही का हवाला नहीं दिया.
- बाबर की आत्मकथा बाबरनामा के अलग-अलग संस्करणों का कोर्ट में ज़िक्र किया और कहा, "हर संस्करण में साफ तौर पर यह दर्ज है कि बाबर के हुक्म से अयोध्या में मस्जिद तामीर की गई थी.
- धवन ने यह भी कहा कि इमारत पर अरबी और फारसी भाषा में कई बातें लिखी थी. इससे भी साबित होता है कि वह इमारत हिंदू मंदिर नहीं थी.
- धवन ने रामलला विराजमान और श्रीराम जन्मस्थान के नाम पर याचिका दाखिल किए जाने पर भी सवाल उठाए. उन्होंने कहा, "एक तरफ देवता के अधिकार की बात कही जा रही है. दूसरी तरफ पूरे जन्म स्थान को ही पूजा की जगह बता कर देवता जैसा दर्जा दिया जा रहा है. हिंदू पक्ष की कोशिश यही है कि मुस्लिम पक्ष को जमीन से पूरी तरह से बाहर कर दिया जाए."
- धवन ने कहा, "इलाहाबाद हाई कोर्ट को यह देखना चाहिए था कि जन्मस्थान को याचिकाकर्ता बनाकर याचिका कैसे दाखिल हो सकती है. अभी भी सुप्रीम कोर्ट इस कमी को दूर कर सकता है. जन्म स्थान को न्यायिक व्यक्ति का दर्जा नहीं दिया जाना चाहिए."
- 1528 में बनाई गई मस्जिदमस्जिद में 1528 से 22 दिसंबर 1949 तक लगातार नमाज पढ़ी गई.. पौने पांच सौ साल पहले 1528 में मस्जिद बनाई गई थी और 22 दिसंबर 1949 तक लगातार नमाज हुई. तब तक वहां अंदर कोई मूर्ति नहीं थी. एक बार मस्जिद हो गई तो हमेशा मस्जिद ही रहेगी.
- औरंगजेब ने कई मंदिरों के लिए अनुदान भी दिए थे. नाथद्वारा मंदिर के बारे में भी यही मान्यता है. इसके मौखिक और लिखित प्रमाण भी हैं.
- बड़ी तादाद में लोग अगर किसी मंदिर में दर्शन पूजन करते हैं तो ये कोई आधार नहीं है उसके ज्यूरिस्टिक पर्सन होने का.हाई कोर्ट के फैसले की खामी यह है कि एक ही जगह के दो ज्यूरिस्टिक पर्सन नहीं हो सकते. ठीक वैसे ही जैसे गुरुद्वारा और गुरुग्रंथ साहिब दो ज्यूरिस्टिक पर्सन नहीं हो सकते. सिर्फ गुरुग्रंथ साहिब जब गुरुद्वारा में होते हैं तभी वो गुरुद्वारा बनता है.
- ये साबित करें की वहां मंदिर था और लोग पूजा करते थे.
- सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूछा कि क्या इस बात का कोई सबूत है कि बाबर ने बाबरी मस्जिद को कोई इमदाद दी हो? इसपर राजीव धवन ने कहा कि उस दौर में इसका कोई सबूत हमारे पास नहीं है, सबूत मंदिर के दावेदारों के पास भी नहीं है.
- राजीव धवन ने कहा कि 1855 में एक निहंग वहां आया और उसने वहां गुरु गोविंद सिंह की पूजा की और निशान लगा दिया था, बाद में सारी चीजें हटाई गईं.
- ब्रिटिश हुकूमत के गवर्नर जनरल और फैज़ाबाद के डिप्टी कमिश्नर ने भी पहले बाबर के फरमान के मुताबिक मस्जिद की देखभाल और रखरखाव के लिए रेंट फ्री गांव दिए फिर राजस्व वाले गांव दिए. आर्थिक मदद की वजह से ही दूसरे पक्ष का एडवर्स पजिशन नहीं हो सका.
- 1934 में मस्जिद पर हमले के बाद नुकसान की भरपाई और मस्जिद की साफ-सफाई के लिए मुस्लिमों को मुआवजा भी दिया गया. 10 दिसंबर 1884 में भी एक बैरागी फकीर मस्जिद की इमारत में घुस कर बैठ गया था, प्रशासन की चेतावनी पर वो बाहर नहीं निकला तो उसे जबरन निकाला गया और उसका लगाया झंडा भी उखाड़ा गया.
- 1934 में दंगा-फसाद के बाद ही ये तय हो गया था कि हिंदू बाहर पूजा करेंगे, तो 22/23 दिसंबर 1949 की रात हिंदू इमारत में कैसे गए?
- संविधान के अनुच्छेद 12 के जरिए देश भर के सार्वजनिक संस्थान भी नियमित किए गए. उन्होंने कहा कि 1934 में दंगों के दौरान इमारत को नुकसान पहुंचा और धारा 144 लगाई गई.
- ये बाबर पर मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने का इल्जाम लगाते हैं, बाबर कोई विध्वंसक नहीं था. मस्जिद तो मीर बाकी ने बनाई, एक सूफी के कहने पर. इस दौरान उन्होंने पढ़ा कि ‘है राम के वजूद पर हिन्दोस्तां को नाज़ अहले नज़र समझते हैं उसको इमाम ए हिन्द!’
- सांप्रदायिक विभाजन का आरोप मुसलमानों पर लगाया जाता है लेकिन ये उनपर (हिंदू पक्ष) पर भी लागू होता है जब उन्होंने बाबरी मस्जिद को ढहाया था. इसके पहले 1934, 1949 में भी ऐसा ही किया गया था.
- जस्टिस बोबड़े ने पूछा कि क्या इस्लाम में देवत्व को किसी वस्तु पर थोपा जाता है? इस पर मुस्लिम पक्ष की ओर से जवाब दिया कि दोनों धर्मों में ऐसा ही होता है, इस्लाम में मस्जिद इसका उदाहरण है.जस्टिस बोबड़े ने कहा कि हम हमेशा सुनते हैं कि ऐसा कुछ नहीं है, आप अल्लाह की पूजा करते हैं ना कि किसी वस्तु की. हम देखना चाहते हैं कि क्या किसी संस्था ने मस्जिद को पूज्य माना है, क्योंकि सिर्फ अल्लाह को पूजे जाने की बात आती है.
- राजीव धवन ने कहा कि हम (मुस्लिम) पांच बार अल्लाह की पूजा करते हैं, नमाज़ मस्जिद में अदा की जाती है. उन्होंने कहा कि इस मामले में मस्जिद पर जबरन कब्जा किया गया, लोगों को धर्म के नाम पर उकसाया गया, रथयात्रा निकाली गई, लंबित मामले में दबाव बनाया गया.
- मस्जिद ध्वस्त की गई और उस समय मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह ने एक दिन कि जेल अवमानना के चलते काटी. अदालत से गुजारिश है कि तमाम घटनाओं को ध्यान में रखें.
- हमें (मुस्लिम पक्ष) 5 दिसंबर 1992 जैसा अयोध्या चाहिए, जो बाबरी मस्जिद विध्वंस से पहले का था.
- श्रद्धा से जमीन नहीं मिलती है,
- स्कन्द पुराण से अयोध्या की जमीन का हक नहीं मिलता है.
- हिंदू पक्ष लगातार अदालत में श्रद्धा और पुराणों का जिक्र कर रहा है.
- राजीव धवन की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में कई सवाल खड़े किए गए, उन्होंने अदालत में कहा कि आप हमेशा हमसे (मुस्लिम पक्ष) से सवाल करते हैं, जबकि उनसे (हिंदू पक्ष) से सवाल नहीं पूछे जा रहे हैं. हालांकि, अदालत की ओर से इस किसी तरह की टिप्पणी नहीं की गई.
ज़फ़रयाब जिलानी की दलील
- निर्मोही अखाड़े ने विवादित स्थल पर मस्जिद होने की बात मानी थी.
- 1885 और1949 में दायर अपनी याचिकाओं में उसने मस्जिद का जिक्र किया था.
- 1885 में निर्मोही अखाड़े ने कोर्ट में जो याचिका दायर की थी, उसमें विवादित जमीन की पश्चिमी सीमा पर एक मस्जिद होने की बात कही गई थी.
- रामचरित मानस की रचना मस्जिद बनने के करीब 70 साल बाद हुई लेकिन कहीं ये जिक्र नहीं कि राम जन्मस्थान वहां है, जहां मस्जिद है. यानी जन्मस्थान को लेकर हिंदुओं की आस्था भी बाद में बदल गई.
- जस्टिस बोबड़े ने कहा कि बाबर ने मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई या पहले कभी मंदिर था उस जगह मस्जिद बनाई या खाली जगह पर मस्जिद बंसी? इस सवाल पर जिलानी बोले कि बाबर ने खाली प्लॉट पर मस्जिद बनाई थी. अगर पहले मंदिर रहा होगा तो बाबर को इसकी जानकारी ना हो.
- हिंदू 1886 में पूजा का अधिकार मिलने के बाद ही मंदिर बनाना चाहते थे, लेकिन कोर्ट से इजाजत नहीं मिली. उन्होंने कहा कि एक गवाह ने दशरथ महल में रामजन्म होने का जिक्र किया, लेकिन महल की स्थिति का पता नहीं है.
- जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि गवाहों ने शास्त्रों का हवाला देते हुए सीताकूप के अग्निकोण में 200 कदम दूर राम का जन्मस्थान बताया गया है.
- जिलानी ने नक्शा बताते हुए कहा कि जन्मस्थान और सीता कूप के उत्तर दक्षिण का भी ज़िक्र किया गया है लेकिन इसमें जन्मस्थान मन्दिर को माना जा रहा है. फिर हिंदुओं ने अपना विश्वास बदल दिया और दोनों जगहों पर दावा करने लगे.
- रामानंदचार्य, रामभद्राचार्य का उदाहरण दिया. मानस टीका में अवधपुरी का भी जिक्र है, किसी स्थान का नहीं. दोहा शतक के सबूत को जफरयाब जिलानी ने खारिज करते हुए कहा कि इसके तुलसीकृत होने का सबूत नहीं दिया गया है.
- जफरयाब जिलानी ने कहा कि जन्मस्थल पर रामजन्म को लेकर विश्वास तो है, लेकिन सबूत कोई नहीं है. उन्होंने कहा कि दलीलों पर तीन आधार दिए गए हैं, राम चरित मानस, वाल्मिकी रामायण भी इनमें शामिल हैं.
- याचिकाकर्ताओं को साबित करना है कि कौन-कौन सी किताबों में इनका जिक्र किया गया है. जिलानी ने दावा किया कि रामचरित मानस और रामायण में कहीं विशिष्ट तौर पर राम जन्मस्थान का कोई जिक्र नहीं है.
- 1949 से पहले मध्य गुंबद के नीचे रामजन्म, पूजा का कोई अस्तित्व या सबूत नहीं मिलता है.
- जस्टिस बोबड़े ने जिलानी से पूछा कि क्या आप ये सबूत भी देंगे कि 1949 से पहले वहां नियमित नमाज़ होती थी? जिसपर जिलानी ने कहा कि सबूत जुबानी हैं लेकिन लिखित नहीं है. इसपर जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि हिंदू पक्ष की दलील में भी रामायण, रामचरित मानस में अयोध्या में दशरथ महल में राम के जन्म का जिक्र है हालांकि स्थान का कोई जिक्र नहीं है.
- जिलानी ने कहा वह रामचबूतरे को भगवान राम का जन्मस्थान नहीं मानते हैं. ये हमने स्वीकार नहीं किया है, बल्कि हिंदुओं का विश्वास है.
मीनाक्षी अरोड़ा की दलील
- मीनाक्षी अरोड़ा ने एएसआई की रिपोर्ट पर सवाल उठाये.
- कहा कि हमारी आपत्ति ये है कि बिना सबूत के रिपोर्ट का क्या मतलब है?
- एएसआई की रिपोर्ट अंदाज़े पर आधारित है - ये कोई साइंस नहीं है.
- वहां पर हाथी और किसी जानवर की मूर्ति मिलने से ये नहीं कहा जा सकता कि वहां पर मंदिर ही होगा. क्योंकि उस समय में वो खिलौना भी हो सकता है, जिसको किसी धर्म से नहीं जोड़ा जा सकता.
- वहां पर 383 आर्किटेक्चर अवशेष मिले थे, जिसमेँ से 40 को छोड़कर कोई भी मंदिर का हिस्सा नहीं कहा जा सकता.
- शिलाओं पर बने कमल के निशान पर कहा कि ऐसा नहीं कहा जा सकता कि वह मंदिर ही है क्योंकि वह जैन, मुस्लिम बौद्ध और हिंदू धर्मों के भी पवित्र चिन्ह हो सकते है.
- जस्टिस बोबड़े ने पूछा कि क्या मस्जिदों में भी कमल के निशान होते हैं? इस सवाल का मीनाक्षी अरोड़ा ने सीधा जवाब नहीं दिया. उन्होंने कहा कि हो सकता है.
- जस्टिस बोबड़े ने अपने साथ बेंच में बैठे जज जस्टिस नजीर से इसका जवाब जानना चाहा कि क्या मस्जिदों में भी कमल के निशान होते हैं. जस्टिस नजीर ने कहा कि मेरी जानकारी में ऐसा नहीं है.
- मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि कमल के चित्र को हिंदू, मुस्लिम, बुद्ध सभी इस्तेमाल करते रहे है. इसका इस्तेमाल मुस्लिम और इस्लामिक आर्किटेक्ट में होता रहा है.
- मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि जिन 85 खंभों की बात की जा रही है उन पर कई इतिहासकारों और पुरातत्वविदों में मतभेद हैं.
- खंभे अलग आकार और ऊंचाई के हैं. अगर वो एक ही सतह वाले आधार पर थे तो ऊंचाई अलग-अलग होने का क्या मतलब?
- वो पश्चिमी दिशा वाली दीवार ईदगाह की क्यों नहीं हो सकती? ऐसा मानने में क्या हर्ज है? क्योंकि वो दीवार बिल्कुल अलग और अकेली है और खंभे बिल्कुल अलग हैं. वो खंभे खोखली जगह पर ईंटों की जमावट से भी बनाए गए हो सकते हैं.
- जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हम ASI रिपोर्ट के लेखकों के निष्कर्ष से उलट कोई निष्कर्ष नहीं निकाल सकते. खंभों की ऊंचाई और आकार पर भी CJI ने कहा कि इससे आप ये बताना चाहती हैं कि ये अलग-अलग फ्लोर अलग अलग समय मे बने थे.
- पुरातत्व विभाग (ASI) की रिपोर्ट में कहीं पर भी राम मंदिर का स्थान नहीं बताया गया है, जबकि राम चबूतरे को वाटर टैंक बताया गया है.
- ASI की रिपोर्ट की जांच होनी चाहिए क्योंकि कई एक्सपर्ट ने उसपर सवाल उठाए थे. उन्होंने कहा कि रिपोर्ट से कहीं साबित नहीं होता कि वहां गुप्त काल का भी निर्माण था.
- जिस महल की बात की जा रही है, उसका निर्माण मध्यकाल का है. ऐसे में उसे 12वीं सदी का मंदिर बताना गलत है, उसे दिव्य कहना भी उचित नहीं है.
- जस्टिस बोबड़े ने कहा कि ये काफी प्राचीन दौर की बात है, इसलिए कोई राय बनाना कठिन है. दोनों पक्षों के तर्क अनुमानों पर आधारित हैं. हमें इन अनुमानों की पुष्टि करने की जरूरत है.
शेखर नाफडे की दलीलें
- वहां मस्जिद थी और उस पर कोई विवाद नहीं हो सकता क्योंकि उस पर किसी दूसरे पक्ष का कोई पहले दावा नहीं था.
- मस्जिद की मौजूदगी को स्वीकारा जा चुका है और उसे साबित करने की जरूरत नहीं है.
- राम चबूतरे पर छोटी सी मंदिर थी। बाकी पूरा इलाका मस्जिद का था और उस पर दूसरे पक्षकार का दावा नहीं था.
- वह उस एरिया को मस्जिद के तौर पर स्वीकार करते थे। इस बात को साबित करने की जरूरत नहीं है.
- जूडिशियल कमिश्नर की रिपोर्ट में भी इस बात का जिक्र है। अब हिंदू अपने दावे के क्षेत्र को बढ़ाने की कोशिश कर रहा है.
मोहम्मद निजाम पाशा की दलील
- निर्मोही का मतलब बिना किसी मोह का होना है. निर्मोही को तो किसी भी संपत्ति से कोई मोह होना ही नहीं चाहिए लेकिन फिर भी वह पोजेशन का दावा कर रहे हैं. हमारा कहना है कि हमें धार्मिक पहलू पर बहस के बजाय कानूनी पहलू को देखना चाहिए.
Source : न्यूज स्टेट ब्यूरो