राम मंदिर बनाने को लेकर बीजेपी सांसद राकेश सिन्हा संसद के आगामी मानसून सत्र में निजी विधेयक ला रहे हैं. उन्होंने टि्वटर पर इसकी घोषणा की और साथ ही राहुल गांधी, लालू प्रसाद यादव, सीताराम येचुरी और अन्य नेताओं को इसका समर्थन करने की चुनौती भी दी थी. आइए जानते हैं निजी विधेयक का इतिहास. क्या होता है निजी विधेयक और कितने निजी विधेयक अब तक कानून बन चुके हैं? अब तक कितने विधेयक पेश किए जा चुके हैं संसद में?
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संसद की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, पिछले 40 साल में तकरीबन 3000 निजी विधेयक पेश किए गए. इनमें से तीन या चार फ़ीसदी विधेयक पर ही विचार हो पाया. केवल एक ही निजी विधेयक पास हुआ था. देश में क़ानून बनने वाला पहला निजी विधेयक मुस्लिम वक्फ़ विधेयक-1952 था, जो 1954 में पास हुआ. इसे सैयद मुहम्मद अहमद काज़मी ने वर्ष 1952 में पेश किया था. इसका उद्देश्य मुस्लिम वक्फ़ संपत्तियों के प्रबंधन और मुतवल्लियों की देखरेख को परिभाषित करना था.
सुप्रीम कोर्ट (आपराधिक अपीलीय क्षेत्राधिकार विस्तार) अधिनियम 1968 अंतिम निजी विधेयक था, जो क़ानून बना. इसे आनंद नारायण मुल्ला ने 1970 में संसद में पेश किया था. सबसे अधिक निजी विधेयक 1956 में पास होकर कानून बने. इस साल 6 निजी विधेयक पास हुए थे. 1954 से 1970 के बीच संसद ने 14 निजी विधेयकों को स्वीकार किया. इन 14 क़ानूनों में फिरोज़ गांधी का प्रसिद्ध संसदीय कार्यवाही संरक्षण विधेयक-1956 भी है. इस क़ानून के कारण भारतीय पत्रकारों को संसदीय कार्यवाही कवर करने का विशेषाधिकार और संरक्षण मिला. 1956 में ही राजमाता कमलेन्दुमति शाह का महिला एवं बाल संस्थाएं (लाइसेंसिंग) निजी विधेयक पास हुआ. डॉ सीता परमानंद का हिंदू विवाह संशोधन विधेयक-1956 भी मील का पत्थर साबित हुआ. दीवान चमन लाल के भारतीय दंड संहिता (संशोधन) विधेयक 1969 में पास हुआ था. इस क़ानून के तहत कलाकृतियों को अश्लीलता से जुड़े सामान्य क़ानूनों से संरक्षण हासिल हुआ था.
ज़्यादातर निजी विधेयक उन विषयों से जुड़े होते हैं, जिनपर सरकार की निगाह नहीं जाती या किसी अन्य कारणों से उन विषयों पर कानून नहीं बन पाते. मसलन वर्ष 2008 में महेन्द्र मोहन का संसद के न्यूनतम कार्य-दिवस तय करने वाला विधेयक. इसके तहत संविधान के अनुच्छेद 85 और 174 में संशोधन करके संसद में न्यूनतम 120 और राज्य विधानसभाओं में 60 कार्य-दिवस तय करने की व्यवस्था थी. उस समय संसदीय कार्य मंत्री ने कहा कि यह सुझाव अव्यावहारिक है तो इस पर सांसद ने अपना विधेयक वापस ले लिया.
1969 में आचार्य जेबी कृपलानी का राष्ट्रीय सम्मानों को समाप्त करने वाला विधेयक था. आचार्य कृपलानी का कहना था कि पद्म पुरस्कार जैसे राष्ट्रीय सम्मान अपने उद्देश्य को पूरा नहीं करते. हालांकि संसद में यह विधेयक पारित नहीं हो सका.
वर्ष 2011 में अन्ना हजारे के आंदोलन के दौरान भी निजी विधेयकों का शोर उठा था. उस समय का सबसे गर्म मुद्दा जन लोकपाल बिल को भी निजी विधेयक के रूप में पेश करने की बात कही जा रही थी. निजी विधेयकों को लेकर कुछ सांसद देश का ध्यान महत्वपूर्ण मुद्दों की तरफ खींचने की कोशिश करते हैं, हालांकि संसद के रुटीन के कामों के चलते इन पर कम फोकस हो पाता है.
निजी विधेयक लाने की जरूरत क्यों पड़ी
बीजेपी सरकार राम मंदिर मुद्दे पर विधेयक नहीं ला रही है. इसे निजी विधेयक के रूप में संसद में प्रस्तुत किया जाएगा. इसके लिए राकेश सिन्हा ने कमर कसी है. बतौर सांसद, यह उनके लिए पहला बड़ा महत्वपूर्ण कदम होगा. अब सवाल उठता है कि निजी विधेयक क्यों? वो इसलिए कि अगर सरकार अपनी तरफ से राम मंदिर पर विधेयक लेकर आती है तो राजग के सहयोगी दल बिदक जाएंगे और बीजेपी को चुनाव में मुश्किल हो जाएगी.
क्या होता है निजी विधेयक
- राज्यसभा या लोकसभा के वो सभी सदस्य जो सरकार का हिस्सा नहीं हैं उन्हें लोक महत्व के विभिन्न मामलों पर अपने विचार व्यक्त करने का अवसर प्रदान करने के लिए निजी विधेयक पेश करने का अधिकार दिया गया है.
- लोकसभा और राज्यसभा में वो सांसद जो सरकार में मंत्री नहीं है वह एक निजी सदस्य कहलाता है. ऐसे सदस्य द्वारा संसद में पेश किये गए विधेयक को निजी विधेयक कहा जाता है
- संसद में हर शुक्रवार को संसदीय कार्यवाही के आखिरी दो-ढाई घंटों का समय निजी बिल पेश करने के लिए तय किया गया है.
- हालांकि संसद में निजी विधेयकों के पारित होने की सम्भावना बेहद कम होती है. लेकिन फिर भी संसद सदस्य जन कल्याण के मुद्दों पर निजी विधेयक पेश कर सकते हैं.
Source : News Nation Bureau