Ramsetu कैसे बना, इस सवाल से अब जल्द ही पर्दा उठ जाएगा. 'राम सेतु' की उम्र का पता लगाने के लिए एक अंडरवाटर रिसर्च प्रॉजेक्ट इसी साल शुरू होगा. रामसेतु में पत्थरों की श्रृंखला को लेकर नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ ओशनोग्राफी (NIO) के वैज्ञानिक रिसर्च करेंगे. हाल ही में ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) के अधीन आने वाले सेंट्रल एडवायजरी बोर्ड ने इसे अपनी मंजूरी दे दी है. वैज्ञानिकों का कहना है कि अत्याधुनिक तकनीक से उन्हें पुल की उम्र और रामायण काल का पता लगाने में मदद मिलेगी.
पानी की सतह से लिए जाएंगे सैंपल
एनआईओ पानी की सहत के 35 से 40 मीटर नीचे जाकर सैंपल लेगा. इसके लिए सिंधु संकल्प या सिंधु साधना नाम के जहाजों का इस्तेमाल किया जाएगा. इस स्टडी में इस बात की थी जानकारी मिलेगी कि क्या पुल के आस-पास कोई बस्ती भी थी या नहीं. इस रिसर्च में रेडियोमेट्रिक और थर्मोल्यूमिनेसेंस (TL) डेटिंग जैसी तकनीकों का इस्तेमाल किया जाएगा. दरअसल पानी की सतह पर मिलने वाले कोरल्स में कैल्शियम कार्बोनेट होता है जिससे इस पुल की उम्र का पता चलेगा.
कहां है रामसेतु?
रामसेतु का जिक्र आपने रामायण में जरूर सुना होगा. भगवान राम जब लंका के राजा रावण की कैद से अपनी पत्नी सीता को बचाने निकले थे तो रास्ते में समुद्र पड़ा. उनकी वानर सेना ने ही इस पुल का निर्माण किया था. 'रामायण' के अनुसार, वानरों ने छोटे-छोटे पत्थरों की मदद से इस पुल को तैयार किया था. यह पुल कोरल और सिलिका पत्थरों का बना है. भारत और श्रीलंका के बीच बना यह पुल करीब 48 किलोमीटर लंबा है. राम सेतु मन्नार की खाड़ी और पॉक स्ट्रेट को एक-दूसरे से अलग करता है. इस पुल की गहराई 3 फीट से लेकर 30 फीट तक है.
विवादों में भी रहा है सेतुसमुद्रम प्रॉजेक्ट
दरअसल यूपीए 1 के कार्यकाल के दौरान 2005 में सेतुसमुद्रम शिप चैनल प्रॉजेक्ट की घोषणा हुई. तब इस प्रोजेक्ट को लेकर काफी विवाद हुआ था. पुल के निर्माण के लिए कुछ चट्टानों को तोड़ना पड़ता ताकि गहराई बढ़े और जहाज वहां से गुजर सके. यह मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा. 2007 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद निर्माण कार्य पर रोक लगा दी गई. 2007 में ही ASI और यूपीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि भगवान राम ने यह पुल बनाया है. फिलहाल मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.
Source : News Nation Bureau