मंगलवार को रिटायर हो रहे भारत के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि मैं लोगों को इतिहास के तौर पर जज नहीं करता. साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ा कि मैं यह भी नहीं कह सकता कि अपनी जुबान रोको, ताकि मैं बोल सकूं. जस्टिस मिश्रा ने कहा कि मैं आपकी बातों को सुनूंगा और अपने तरीके से मैं अपनी बातों को रखूंगा. अपने स्पीच के दौरान उन्होंने कहा कि देश के हर व्यक्ति को तभी न्याय मिलेगा जब समता के साथ न्याय यानी 'जस्टिस विद इक्विटी' होगा.
जस्टिस मिश्रा ने कहा कि आज दिल की बात कहने का दिन है इतिहास कभी उदार होता है, कभी नहीं. मैं व्यक्ति के बारे में राय इतिहास से नहीं, उसकी गतिविधियों से बनाता हूं. यहां जितने लोग आए हैं, उनके प्रेम को स्वीकार करता हूं.
स्पीच के दौरान जजों की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा कि न्यायपालिका इसके जजों के कारण सबसे मजबूत है. न्यायपालिका की स्वतंत्रता अक्षुण्ण है, और हमेशा रहेगी. सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम है और सुप्रीम ही रहेगा. इस दौरान कहा कि न्याय का मानवीय चेहरा, मानवीय मूल्य होना चाहिए. साथ ही जोड़ा कि सच का रंग नहीं होता.
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चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के विदाई समारोह के दौरान जस्टिस रंजन गोगई ने कहा, 'हम जाति/मत के आधार पर बंटे हुए हैं. हम क्या पहन रहे हैं, खा रहे हैं, अब ये छोटी बात नहीं रह गई है और हम इन आदतों के कारण एक दूसरे से नफरत कर रहे है, और ऐसे में जो चीज हमे जोड़ती है, वो है संविधान.'
इस दौरान जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि निर्भया मामले का फैसला देते वक्त जिस तरह से जस्टिस दीपक मिश्रा ने अपनी भावनाओं का इजहार किया, वो स्वभाविक था. ये ऐसे व्यक्ति हैं जो अपने नजदीक आने वाले हर व्यक्ति में देशभक्ति और संवैधानिक मूल्यों के लिए आस्था जगाते हैं.
Source : News Nation Bureau