साल 2008 के जनवरी महीने में एक सुबह IB ऑफिस को एक अनोखा पार्सल मिला। इस पार्सल में जम्मू कश्मीर से इशु कराए गए 30 प्रीपेड सिम था। हैरत की बात ये थी कि इन सभी सिम को पाकिस्तान भेजा जाना था लेकिन इसे न्यू दिल्ली रेलवे स्टेशन पर ही रोक लिया गया था।
IB ऑफिसर्स ने किसी अंजान ख़तरे को भांपते हुए उस पार्सल में अपनी तरफ़ से तीन और सिम रख दिये। ऑफिसर्स को शक हुआ कि इतने सारे सिम को एक साथ कश्मीर से पाकिस्तान क्यों भेजा जा रहा है। कहीं ये भविष्य में होने वाले ख़तरे की घंटी तो नहीं।
IB आने वाले एक बड़े ख़तरे से अंजान थे लेकिन फिर भी उन्होंने अपनी तरफ़ से अंधेरे में तीर चला दिया था। ऑफिसर्स ने इन तीनों सिम को सर्विलांस पर रखते हुए निगरानी करनी शुरू कर दी थी।
आज पूरे विश्व में इस बात को लेकर चर्चा है कि इस हमले में अमेरिकी नागरिक दाउद सैय्यद गिलानी उर्फ़ डेविड हेडली का हाथ है। जो अमेरिका के किसी अज्ञात जगह पर उम्रकैद की सज़ा काट रहा है, वो वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिये मुंबई की अदालत के सामने अपना बयान दर्ज़ कर रहा है कि ये हमला पाकिस्तान की तरफ़ से कराया गया था। जैसा की शुरुआत से ही भारत भी समझता आ रहा है।
अब तक किसी ने भी इस बात पर सवाल खड़े नहीं किये की जब हमले की योजना बन रही थी तो उस वक़्त अमेरिकन इंटेलिजेंस एजेंसी क्या कर रही थी ? क्या उन्हें इस बारे में पहले से ही कोई सूचना मिली थी या उनसे भी भूल हुई।
26 नवम्बर को जब ताज होटल पर हमला हुआ तो पुलिस को अंदाज़ा नहीं था कि ये हमला इतना बड़ा हो सकता है। पुलिस बाद में इस बात को समझ पायी थी की ये हमला सुनियोजित है। जैसे ही टीवी पर पहली हमले की तस्वीर जारी हुई ठीक उसी वक़्त IB ऑफिस में भी एक हलचल हुई।
ऑफिसर्स ने जो तीन सिम उस पार्सल में रखा था उसमें से एक सिम (जिसे निगरानी के लिए सर्विलांस पर भी रखा गया था) में से बातचीत के संकेत मिलने लगे। ऑफिसर्स ने नोट किया कि कई महीनो से बंद पड़े इस सिम से लगातार बात हो रही है। इस सिम पर पाकिस्तान से मुंबई के कोलाबा में उर्दू में बात की जा रही थी।
ऑफिसर्स को मामला समझने में देर नहीं लगी, वो समझ गए थे कि अंधेरे में छोड़ी गयी तीर इतने महीनो बाद निशाने पर लगी है। क्योंकि उस नंबर से हमलावरों की करांची में बैठे आका से बात हो रही थी। जो उन्हें आगे के हमलों के लिए दिशा निर्देश जारी कर रहा था।
इस ऑपरेशन के ऑफिसर डी पी सिन्हा ने भी इस बात की पुष्टि की है कि ऑफिसर्स ने कई महीने पहले जो सोचा था वो ठीक साबित हो रहा था। हालांकि उनसे भी इस हमले की गंभीरता को समझने में बड़ी चूक हुई थी। उन्हें लगा था कि इस सिम का प्रयोग कश्मीर या पंजाब के सीमावर्ती इलाके में छोटे मोटे हमले के लिए किया जाएगा।
ऑपरेशन ऑफिसर सिन्हा (जिनका कार्यकाल अब पूरा हो गया है) ने कहा की दुर्भाग्य ये था कि आतंकी उन तीन सिम में से सिर्फ़ एक सिम का ही प्रयोग कर रहे थे।
ऑफिसर्स ने सिम के सिगनल्स पर निगरानी रखनी शुरू कर दी थी, तभी उन्हें जानकारी मिली की आतंकियों का अगला हमला गेटवे ऑफ इंडिया के पास होने वाला है।
दरअसल यहां से ही सभी पत्रकार हमले की जानकारी लोगों तक साझा कर पा रहे थे। आतंकी यहां पर हथगोला फेकने की फ़िराक में था। ऑफिसर्स ने बिना वक़्त गवाये उस जगह से सभी लोगों को हटाने के निर्देश जारी किये।
भारतीय ऑफिसर्स ने अपना काम करना शुरू कर दिया था जिसकी वजह से एक और बड़ा हमला होते होते रह गया।
26/11 के हमले के बारे में डेविड हेडली ने एनआईए के सामने जो भी दावे किए हैं, देश की तमाम जांच एजेंसियां भी उन बातों को काफी हद तक सही मान रही है।
हेडली ने एनआईए को बताया कि अगस्त, 2008 में (26/11 से तीन महीने पहले) उसे उसके बॉस साजिद माजिद द्वारा एक इंडियन सिम कार्ड दिया गया और कहा गया कि तुम वाघा वार्डर जाकर देखो कि इस सिम कार्ड की कनेक्टिविटी मिल रही है, कि नहीं।
हेडली इसके बाद लाहौर से करीब 30 मिनट ड्राइव करके वाघा वार्डर गया। वाघा वार्डर एरिया में उसने इस इंडियन सिम कार्ड की कनेक्टिविटी को पाया और यह बात लाहौर वापस जाकर हेडली ने साजिद माजिद को बता भी दी।
मुंबई क्राइम ब्रांच सूत्रों का कहना है कि 26/11 के हमले के बाद जिंदा कसाब व मृतक नौ आतंकवादियों के पास से मुंबई पुलिस को सिर्फ पांच मोबाइल सेट मिले थे और इन पांच मोबाइल सेटों में भी सिर्फ दो इंडियन सिम कार्ड लगे थे। इसमें भी सिर्फ एक इंडियन सिम कार्ड काम कर रहा था।
यह सिम कार्ड दिल्ली के किसी सुरेश कुमार के नाम से खरीदा गया था। इस सिम कार्ड को ताज होटल से एक आतंकवादी द्वारा पाकिस्तान में अपने हैंडलर से बातचीत करने के लिए यूज किया गया था।
दूसरा सिम कार्ड कोलकाता के किसी व्यक्ति के नाम से फर्जी दस्तावेजों पर लिया गया था, लेकिन वह सिम कार्ड बंद था।
मुंबई क्राइम ब्रांच के एक अधिकारी के मुताबिक यदि वाघा वार्डर पर हेडली को किसी एक सिम कार्ड की कनेक्टिविटी चेक करने के लिए भेजा गया, तो फिर बाकी सिम कार्ड की कनेक्टिविटी पाकिस्तान में क्यों नहीं चेक की गई?
यदि दिल्ली के सुरेश कुमार के नाम के सिम कार्ड को छोड़कर शेष इंडियन सिम कार्ड काम कर रहे होते, तो आतंकवादियों को ताज, ओबेराय व अन्य जगहों पर बंधक बनाए गए लोगों के मोबाइल फोन नहीं छीनने पड़ते। इन्हीं बंधकों के मोबाइल नंबरों से आतंकवादियों ने पाकिस्तान में अपने आकाओं से बातचीत की थी।
HIGHLIGHTS
- जनवरी महीने में IB ऑफिस को एक अनोखा पार्सल मिला।
- ऑफिसर्स को शक हुआ कि इतने सारे सिम को एक साथ कश्मीर से पाकिस्तान क्यों भेजा जा रहा है।
- उस पार्सल में अपनी तरफ़ से तीन और सिम रख दिये।
- ऑफिसर्स ने इन तीनों सिम को सर्विलांस पर रखते हुए निगरानी करनी शुरू कर दी थी।
Source : News Nation Bureau