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नहीं मिला विशेष राज्य का दर्जा तो नाराज हो सकते हैं नायडू-नीतीश, बढ़ सकती है BJP की टेंशन

विशेष राज्य का दर्जा पाने के प्रावधान संविधान में अब मौजूद नहीं है. 2014 में योजना आयोग को समाप्त कर दिया गया था और 14वें वित्त आयोग ने विशेष और सामान्य श्रेणी के राज्यों के बीच किसी भी प्रकार का भेदभाव खत्म कर दिया था.

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Ritu Sharma
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विशेष राज्य का दर्जा( Photo Credit : News Nation )

Special Category Status: नरेंद्र मोदी तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बन चुके हैं. बता दें कि रविवार, 09 जून 2024 को शाम 7 बजकर15 मिनट पर तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्रहण की. अब मोदी (Modi 3.0) के तीसरे कार्यकाल में जेडीयू (जनता दल यूनाइटेड) और टीडीपी (तेलुगु देशम पार्टी) की ओर से भारी दबाव बना हुआ है. ये दोनों दल बिहार और आंध्र प्रदेश के लिए विशेष राज्य का दर्जा मांग रहे हैं. हालांकि, मौजूदा परिस्थितियों में यह दर्जा हासिल करना काफी मुश्किल साबित हो सकता है. इसके पीछे मुख्य कारण सांवैधानिक प्रावधानों में हुए बदलाव हैं.

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वर्तमान स्थिति और प्रावधान

विशेष राज्य का दर्जा पाने के प्रावधान संविधान में अब मौजूद नहीं है. 2014 में योजना आयोग को समाप्त कर दिया गया था और 14वें वित्त आयोग ने विशेष और सामान्य श्रेणी के राज्यों के बीच किसी भी प्रकार का भेदभाव खत्म कर दिया था. इसके बाद, सरकार ने 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया और 1 अप्रैल 2015 से कर हस्तांतरण की राशि बढ़ा दी.

इससे पहले, केंद्र से राज्यों को 32 प्रतिशत कर हस्तांतरण होता था जिसे बढ़ाकर 42 प्रतिशत कर दिया गया. इसके अलावा, राज्यों के लिए 'राजस्व घाटा अनुदान' का प्रावधान भी जोड़ा गया. इससे यह सुनिश्चित किया गया कि जिन राज्यों के पास संसाधनों की कमी होती है, उन्हें अतिरिक्त वित्तीय मदद मिल सके.

पुरानी व्यवस्था में विशेष राज्य का दर्जा

आपको बता दें कि 2015 से पहले जिन राज्यों को विशेष श्रेणी का दर्जा मिला हुआ था, उनमें असम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर, नागालैंड, मिजोरम, सिक्किम, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर शामिल हैं. इन्हें केंद्र की ओर से चलाए जाने वाले सभी स्पॉन्सर्ड योजनाओं में 90 प्रतिशत वित्तीय मदद मिलती थी, जबकि राज्यों का योगदान केवल 10 प्रतिशत तक होता था.

नए प्रावधान के लाभ

वहीं नए प्रावधान के तहत, 2015-16 में राज्यों को कुल कर हस्तांतरण 5.26 लाख करोड़ रुपये हुआ, जो 2014-15 में 3.48 लाख करोड़ रुपये था. इसका मतलब है कि नए प्रावधानों के बाद कर हस्तांतरण में 1.78 लाख करोड़ रुपये का इजाफा हुआ. राज्यों का हिस्सा एक फॉर्मूले से तय किया जाता है जो भौगोलिक आधार, वन क्षेत्र और राज्य की प्रति व्यक्ति आय के आधार पर निर्धारित होता है. इससे राज्यों को वित्तीय आत्मनिर्भरता की दिशा में प्रोत्साहित किया गया है.

जेडीयू और टीडीपी की मांग

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वहीं आपको बता दें कि बिहार और आंध्र प्रदेश के लिए विशेष राज्य का दर्जा पाने की मांग का मुख्य कारण यह है कि ये राज्य आर्थिक और सामाजिक विकास में पिछड़े हुए हैं. जेडीयू और टीडीपी का मानना है कि विशेष राज्य का दर्जा मिलने से इन्हें केंद्र की ओर से अधिक वित्तीय मदद मिलेगी, जिससे ये राज्य तेजी से विकास कर सकेंगे.

राजनीतिक दबाव और संभावनाएं

इसके अलावा जेडीयू और टीडीपी, दोनों ही मोदी सरकार के महत्वपूर्ण गठबंधन साझेदार हैं. उनके समर्थन से सरकार की स्थिरता बनी हुई है. ऐसे में मोदी सरकार को इन दलों की मांगों पर विचार करना पड़ सकता है. हालांकि, विशेष राज्य का दर्जा देने के बजाय सरकार अन्य तरीकों से इन राज्यों की वित्तीय मदद बढ़ा सकती है, जैसे विशेष पैकेज और योजनाएं शामिल है.

बहरहाल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल में जेडीयू और टीडीपी की ओर से विशेष राज्य का दर्जा पाने के लिए दबाव जरूर बना हुआ है, लेकिन मौजूदा सांवैधानिक प्रावधानों में इस मांग को पूरा करना मुश्किल साबित हो सकता है. सरकार को इन राज्यों की आर्थिक और सामाजिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए अन्य वित्तीय उपायों पर विचार करना होगा ताकि विकास की गति को बनाए रखा जा सके.

HIGHLIGHTS

  • नहीं मिला विशेष राज्य का दर्जा तो नाराज हो सकते हैं नायडू-नीतीश
  • मोदी सरकार के पास अब बस 1 ऑप्शन
  • अब इस पर जोरों से हो रही है चर्चा

Source : News Nation Bureau

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