अगर आप बनारस घूमने जा रहे हैं तो बनारस के घाटों और सारनाथ जैसी जगहों को मिस ना करें. इसके अलावा आप काशी विश्वनाथ मंदिर भी जरूर जाएं. साल 1916 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के उद्घाटन के समय महात्मा गांधी आए थे और काशी की संकरी गलियों और गंदगी देखकर उनका मन खिन्न हो गया था. तब उन्होंने बहुत निराश मन से इसके बारे में वर्णन किया. आपको बता दें कि बापू ने आज से लगभग 105 वर्ष पहले टिप्पणी की थी लेकिन आज पीएम मोदी के मार्गदर्शन में काशी की ख्याति वैश्विक पटल पर स्थापित हो रही है. पर्यटन विकास के साथ ही वहां रोजगार की संभावनाएं भी बढ़ रही हैं. आइए आपको करवाते हैं काशी के कुछ प्रसिद्ध घाटों के दर्शन जिनकी ख्याति इस समय पूरी दुनिया में गूंज रही है.
अस्सी घाट
अस्सी घाट, असीघाट अथवा केवल अस्सी, प्राचीन नगरी काशी का एक घाट है. यह गंगा के बायें तट पर उत्तर से दक्षिण फैली घाटों की श्रृंखला में सबसे दक्षिण की ओर अंतिम घाट है. इसके पास कई मंदिर ओर अखाड़े हैं. असीघाट के दक्षिण में जगन्नाथ मंदिर है जहाँ प्रतिवर्ष मेला लगता है. इसका नामकरण असी नामक प्राचीन नदी (अब अस्सी नाला) के गंगा के साथ संगम के स्थल होने के कारण हुआ है. पौराणिक कथा है की युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद दुर्गा माता ने दुर्गाकुंड के तट पर विश्राम किया था ओर यहीं अपनी असि (तलवार) छोड़ दी थी जिस के गिरने से असी नदी उत्पन्न हुई असी और गंगा का संगम विशेष रूप से पवित्र माना जाता है |यहाँ प्राचिन काशी खंडोक्त संगमेश्वर महादेव का मंदिर है .अस्सी घाट काशी के पांच तीर्थों में से यह एक है.
अस्सी घाट सुबह-ए-बनारस और संध्या आरती
इसके पास ही नानकपंथियों का एक अखाड़ा है ओर समीप ही शिवजी का एक मंदिर है | असी संगम घाट का जिर्णोध्धार कर आधुनिक सजावट एवं पर्यटन के अनुरूप बना दिया गया है. यहाँ पर्यटक सायं काल गंगा आरती का आनंद लेते है. नवीन रास्ता नगवा से होकर सीधे लंका को जोड़ती है. सायं काल यहाँ से सम्पूर्ण काशी के घाटों का अवलोकन किया जा सकता है. विदेशी पर्यटक यहाँ विषेश रूप से इस स्थान को काफी पसन्द करते है,कारण यहाँ का वातावरण काशी के सांसकृत विरासत के साथ सस्ते होटल विद्यमान हैं.वर्तमान में मेरे सहपाठी प्रमोद जी मिश्र का सुबह ए बनारस कार्यक्रम से असी घाट में अद्वितिय सुन्दर वातावरण का निर्माण हुआ है. सायं संध्या आरती ऐवं सुबह योगाभ्यास के माध्यम से ऐक मनमोहक वातावरण का निर्माण होता है,साथ आप गंगा आरती का भी आनंद ले सकते हैं.
मणिकर्णिका घाट
मणिकर्णिका घाट वाराणसी में गंगानदी के तट पर स्थित एक प्रसिद्ध घाट है. एक मान्यता के अनुसार माता पार्वती जी का कर्ण फूल यहाँ एक कुंड में गिर गया था, जिसे ढूढने का काम भगवान शंकर जी द्वारा किया गया, जिस कारण इस स्थान का नाम मणिकर्णिका पड़ गया. एक दूसरी मान्यता के अनुसार भगवान शंकर जी द्वारा माता पार्वती जी के पार्थीव शरीर का अग्नि संस्कार किया गया, जिस कारण इसे महाश्मसान भी कहते हैं. आज भी अहर्निश यहाँ दाह संसकार होते हैं. नजदीक में काशी की आद्या शक्ति पीठ विशालाक्षी जी का मंदिर विराजमान है. एक मान्यता के अनुसार स्वयं यहाँ आने वाले मृत शरीर के कानों में तारक मंत्र का उपदेश देते हैं ,ऐवं मोक्ष प्रदान करते हैं .
हरिश्चंद्र घाट
हरिश्चंद्र घाट पर ही राजा हरिश्चंद्र, पत्नी तारामती और उनके पुत्र रोहताश्व का बहुत पुरातन मंदिर है. इसके साथ ही इस घाट पर एक बहुत पुराना शिव मंदिर भी है. इस मंदिर के बारे में बताया जाता है कि बाबा कालू राम और बाबा किनाराम ने अघोर सिद्धी प्राप्ति के लिऐ इसी मंदिर पर निशा आराधना की थी. आइए जानते हैं कि किस तरह राजा हरिशचंद्र के नाम से इस घाट का नाम पड़ा. सत्य की चर्चा जब-जब की जाएगी, तब-तब राजा हरिशचंद्र का नाम जरूर लिया जाएगा. सूर्यवंशी सत्यव्रत के पुत्र राजा हरिशचंद्र सत्य का प्रतीक माने जाते हैं. सत्य के लिए इन्होंने कई कष्ट सहन करने पड़े. सत्य बोलने वाले और वचनपालन के लिए प्रसिद्ध राजा हरिशचंद्र की प्रसिद्धि चारों तरफ फैली हुई थी. इनकी पत्नी का नाम तारा था और पुत्र का नाम रोहित. राजा हरिशचंद्र की प्रसिद्धि को देखते हुए ऋषि विश्वामित्र उनकी परिक्षा लेना चाहते थे. इस परीक्षा में राजा हरिश्चंद्र को अपना सब कुछ गवांना पड़ा था और इस घाट पर डोम की नौकरी भी करनी पड़ी थी जिसके दौरान इन्होंने अपने पुत्र के अंतिम संस्कार के लिए आई पत्नी से भी कर के रूप में उसका आंचल लिया था.
HIGHLIGHTS
- पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र की कायाकल्प
- 2014 से वाराणसी में बढ़ा पर्यटन, विकास
- 2014 के बाद वाराणसी में बढ़े रोजगार के अवसर