घर में RO लगवाया है या लगवाएंगे, तो ये खबर आपके काम की है

आपके पानी में अधिक मात्रा में घुलित खनिजों (टीडीएस) की मात्रा का डर दिखाकर कंपनियां और डीलर्स धड़ल्ले से आरओ प्यूरीफायर बेच रहे हैं.

author-image
yogesh bhadauriya
New Update
घर में RO लगवाया है या लगवाएंगे, तो ये खबर आपके काम की है

प्रतीकात्मक तस्वीर( Photo Credit : News State)

Advertisment

पिछले 5 से 8 सालों में देशी-विदेशी कंपनियों द्वारा घरों में पीने के पानी में शुद्धिकरण के लिए आरओ वाटर प्यूरीफायर की जरूरत को आम बताकर जल शोधन के नाम पर खूब पैसा कमाया है. आपके पानी में अधिक मात्रा में घुलित खनिजों (टीडीएस) की मात्रा का डर दिखाकर कंपनियां और डीलर्स धड़ल्ले से आरओ प्यूरीफायर बेच रहे हैं. वहीं जल शोधन की तकनीकों पर केंद्रित शोध व विकास से जुड़े विशेषज्ञों ने कहना है कि आरओ का विकास ऐसे क्षेत्रों के लिए किया गया है, जहां पानी में घुलित खनिजों (टीडीएस) की अत्यधिक मात्रा पायी जाती है. इसलिए, सिर्फ टीडीएस को पानी की गुणवत्ता का मापदंड मानकर आरओ खरीदना सही नहीं है. जल शोधन से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि पानी की गुणवत्ता कई जैविक और अजैविक मापदंडों से मिलकर निर्धारित होती है. टीडीएस पानी की गुणवत्ता निर्धारित करने वाले 68 मापदंडों में से सिर्फ एक मापदंड है.

पानी की गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले जैविक तत्वों में कई प्रकार के बैक्टीरिया तथा वायरस हो सकते हैं. वहीं, अजैविक तत्वों में क्लोराइड, फ्लोराइड, आर्सेनिक, जिंक, शीशा, कैल्शियम, मैग्नीज, सल्फेट, नाइट्रेट जैसे खनिजों के साथ-साथ पानी का खारापन, पीएच मान, गंध, स्वाद और रंग जैसे गुण शामिल हैं." नागपुर स्थित राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) के वैज्ञानिक डॉ पवन लभसेत्वार ने इंडिया साइंस वायर को बताया, "जिन इलाकों में पानी ज्यादा खारा नहीं है, वहां रिवर्स ओस्मोसिस (आरओ) की जरूरत नहीं है. जिन जगहों पर पानी में टोटल डिजॉल्व्ड सॉलिड्स (टीडीएस) की मात्रा 500 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम है, वहां घरों में सप्लाई होने वाले नल का पानी सीधे पिया जा सकता है.

यह भी पढ़ें- अगर आप भी हर छोटी-मोटी बीमारियों में खाते हैं दवा तो हो जाइए सावधान

आरओ का उपयोग अनावश्यक रूप से करने पर सेहत के लिए जरूरी कई महत्वपूर्ण खनिज तत्व भी पानी से अलग हो जाते हैं. इसीलिए, जल शुद्धीकरण की सही तकनीक का चयन करने से पहले यह निर्धारित करना जरूरी है कि आपके इलाके में पानी की गुणवत्ता कैसी है. उसके बाद ही जल शुद्धीकरण की तकनीकों का चयन किया जाना चाहिए."

एनजीटी ने उठाई थी आबाज

कुछ समय पहले आरओ के उपयोग को लेकर दिशा निर्देश जारी करते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने सरकार से इस पर नीति बनाने के लिए कहा है. एनजीटी ने कहा है कि पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ऐसे स्थानों पर आरओ के उपयोग पर प्रतिबंध लगा सकता है, जहां पीने के पानी में टीडीएस की मात्रा 500 मिलीग्राम से कम है. इन दिशा निर्देशों में आरओ संयंत्रों में जल शुद्धिकरण के दौरान नष्ट होने वाले 60 प्रतिशत पानी के दोबारा उपयोग को सुनिश्चित करने पर भी जोर दिया गया है.

आरओ के उपयोग से करीब 70 प्रतिशत पानी बह जाता है और सिर्फ 30 प्रतिशत पीने के लिए मिलता है. एनजीटी ने यह भी कहा है कि 60 फीसदी से ज्यादा पानी देने वाले आरओ सिस्टम को ही मंजूरी दी जानी चाहिए. इसके अलावा, प्रस्तावित नीति में आरओ से 75 फीसदी पानी मिलने और रिजेक्ट पानी का उपयोग बर्तनों की धुलाई, फ्लशिंग, बागवानी, गाड़ियों और फर्श की धुलाई आदि में करने का प्रावधान होना चाहिए.

"आरओ के उपयोग से होने वाली पानी की बर्बादी एक प्रमुख समस्या है. पेयजल के बढ़ते संकट को देखते हुए आरओ वाटर प्यूरीफायर्स की रिकवरी क्षमता की ओर ध्यान देने की जरूरत है. ऐसे वाटर प्यूरीफायर्स के निर्माण को प्रोत्साहित करने की जरूरत है, जो पानी की अधिक रिकवरी कर सकें. जल शुद्धिकरण के लिए सिर्फ आरओ पर निर्भर नहीं रहा जा सकता. दूषित पानी को साफ करने के लिए ग्रेविटी फिल्टरेशन, यूवी इरेडिएशन और ओजोनेशन जैसी कई अन्य तकनीकें भी उपलब्ध हैं. 

वर्ष 2030 तक, हमारी पानी की जरूरतें दोगुनी होने की संभावना है. वैश्विक ताजे पानी के 4% संसाधनों और 18% आबादी के साथ, भारत को पीने का पानी प्राप्त करने के लिए नए उपायों को अपनाने की आवश्यकता है."

Source : News State

RO Water
Advertisment
Advertisment
Advertisment