'सोने की चिड़िया' कहे जाने भारत को स्वतंत्र हुए 71 साल होने जा रहे है। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर देशभर में लहराते भारत की आन शान बान 'तिरंगे' की बड़ी ही दिलचस्प कहानी है। प्रत्येक स्वतंत्र राष्ट्र का अपना ध्वज होता है जो कि एक स्वतंत्र देश होने के संकेत है। पिंगली वैकैयानन्द ने भारतीय राष्ट्रीय ध्वज की अभिकल्पना की थी। अंग्रेज़ों की गुलामी की काली स्याह रात के बाद जब स्वतंत्रता का सूरज निकला, स्वतंत्रता दिवस से कुछ दिन पहले 22 जुलाई को भारतीय संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया था। 15 अगस्त और 26 जनवरी के बीच भारत के राष्ट्रिय ध्वज को अपनाया गया और इसके बाद भारतीय गणतंत्र ने इसे अपनाया।
भारत के वीरों के बलिदान और त्याग की लालिमा भारत के तिरंगे में बसी है, सबसे पहले महात्मा गांधी ने अप्रैल, 1921 में देश के लिए राष्ट्रीय ध्वज की जरूरत की बात की थी। केसरिया और हरे रंग वाला राष्ट्रीय ध्वज तैयार करने का कामपिंगली वैंकेयानन्द को दिया था। कामपिंगाली मछलीपट्टनम के रहने वाले थे। महात्मा गांधी ने लाला हंसराज के कहे मुताबिक इस झंडे के बीच में चरखा जोड़ने का सुझाव दिया था। यह सुझाव स्वदेशी झंडे का प्रमाण था। भारत के राष्ट्रपिता 1921 के कांग्रेस सेशन में इस ध्वज को प्रस्तुत करना चाहते थे, लेकिन झंडा समय पर तैयार न हो सका।
2 धर्मों का प्रतिनिधित्व करने वाले झंडे में सफ़ेद रंग जोड़ा गया। बाकी धर्मों के लिए सफेद रंग जोड़ा गया। बाद में 1929 में 3 रंग के इस झंडे की व्याख्या गांधी जी ने इस तरह की- केसरिया रंग लोगों के बलिदान के लिए, सफेद रंग पवित्रता के लिए और हरा रंग उम्मीद के लिए।
Source : News Nation Bureau