Independence Day 2020: इस बार हम अपनी आजादी का 74वां साल मनाने वाले हैं. आज हम आजाद होकर सांस ले रहे हैं इसके लिए तमाम स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जान को कुर्बान किया है. अंग्रेजी हूकुमत को भारत से जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए थे. हमारे देश के वीर और महान नेताओं ने मिलकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक लंबी लड़ाई लड़ी थी. इस स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हम ऐसे ही 15 जरूरी अहम पड़ाव के बारे में बात करेंगे, जिसने देश को आजादी की सुबह दिखाई.
और पढ़ें: 74th Independence Day: ये थे भारत की आजादी के निर्णायक आंदोलन
1. चंपारण सत्याग्रह
चंपारण में नील के 70 कारख़ाने थे. लगभग पूरा ज़िला इन कारख़ानों को अपने हाथों में ले चुका था. इन खेतों को यूरोपीय मालिक अब हर तरह से स्थानीय सामंती वर्ग से छीन चुके थे. चंपारण में ज़मीन का लगान तो सभी को ही देना होता था लेकिन इसमें भी ऊंची और नीची जाति के लिए भेदभाव था. चंपारण में ज़मीन का लगान मालिक की जाति के हिसाब से तय होता था. ऊंची जाति वालों को छोटी जाति वालों की तुलना में कम लगान देना पड़ता था. इस समय समाज में कुरीतियां भी अपने चरम पर थी.
चंपारण पहुंच कर गांधी जी ने वहां किसानों की मार्मिक स्थिति का जायज़ा लिया और इसी दौरान ब्रजकिशोर वर्मा, राजेंद्र प्रसाद और मजरुल हक जैसे नेताओं ने गांधी जी से मुलाकात करना शुरु कर दिया. चंपारण में गांधी जी की मौजूदगी से गोरे घबरा गए थे. उन्होंने गांधी जी को गिरफ्तार कर लिया और उन पर मुकदमा चलाना शुरु कर दिया.
2. दांडी यात्रा
12 मार्च 1930, अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन अपने चरम पर था. पूर्ण स्वराज की मांग ज़ोर पकड़ती जा रही थी. इस बीच महात्मा गांधी ने अंग्रेजी सरकार के अति आवश्यक वस्तु नमक तक पर कर लगाने के कदम के खिलाफ आवाज़ बुलंद की और नमक कानून को ख़त्म करने का आह्नान किया. इससे पहले एक और अहम घटना हुई थी. पूर्ण स्वराज की मांग के साथ 1929 के अंत में दिसंबर में कांग्रेस ने वार्षिक अधिवेशन लाहौर में किया था जिसमें अध्यक्ष के तौर पर जवाहर लाल नेहरु को चुना गया.
इसके बाद कांग्रेस ने गांधी जी के नेतृत्व में 26 फरवरी 1930 में देश भर में राष्ट्रीय ध्वज फहराकर स्वतंत्रता दिवस मनाया. इसके बाद अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती देने के लिए गांधी जी की अगली योजना थी अंग्रेजों के नमक कानून को तोड़ना. इसके लिए 12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी ने ब्रिटिश भारत के सर्वाधिक घृणित कानूनों में से एक नमक के उत्पादन और विक्रय पर राज्य को एकाधिकार देने को तोड़ने के लिए दांडी यात्रा शुरू की.
3. गांधी-इरविन पैक्ट
इसके बाद 26 जनवरी, 1931 ई. को गाँधी जी और वायसराय लॉर्ड इरविन के बीच एक समझौता हुआ जिसे गाँधी-इरविन पैक्ट कहा गया. इसके मुताबिक यह तय हुआ कि जैसे ही सत्याग्रह बंद कर दिया जाएगा, सभी राजनैतिक कैदी छोड़ दिए जायेंगे और उसके बाद कांग्रेस गोलमेज सम्मलेन में हिस्सा लेगी. हालांकि द्वितीय गोलमेज सम्मलेन में भाग लेने के लिए कांग्रेस के एक मात्र प्रतिनिधि के रूप में गाँधीजी लंदन गए. लंदन सम्मेलन में उन्होंने भारत के लिए पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की, जिसे ब्रिटिश सरकार ने स्वीकार नहीं किया. गांधी जी को गहरा झटका लगा और उनका आंदोलन बदस्तूर तब तक जारी रहा जब तक भारत को आज़ादी नहीं मिल गई.
4. जलियांवाला बाग हत्याकांड
अमृतसर का जलियांवाला बाग हत्याकांड के बारे में पढ़कर ही रुह सिहर जाती है. भारत की आज़ादी किन कीमतों पर मिली यह हर साल हर पीढ़ी को जानना चाहिए और उसे समझना चाहिए. गुलाम भारत में ज्यादतियां तो बहुत सही लेकिन इतने बड़े पैमाने पर नरसंहार अमृतसर के जलियांवाला बाग में पहली बार हुआ था. इस कांड ने ब्रिटिश राज की बदसूरती को भारतीयों के सामने उजागर करके रख दिया था. 13 अप्रैल 1919 को पंजाब के अमृतसर में अंग्रेजी राज के जनरल डायर ने मासूम, निहत्थे भारतीयों के साथ खून की होली खेली.
जलियावाला बाग कांड ने दुनिया का ध्यान भारत की ओर खींचा और जनरल डायर को 'बूचर ऑफ इंडिया' भारत का कसाई कहा गया. इस घटना से आक्रोशित देशवासियों का स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सेदारी की जज़्बे को दोगुना कर दिया था. इस घटना की जांच के लिए बाद में हंटर कमीशन बनाया गया और जलियांवाला की घटना ने देश रवींद्रनाथ टैगोर को भी झकझोर कर रख दिया. जिसके बाद उन्होंने ब्रिटिश सरकार से प्राप्त नाइटहुड की उपाधी भी लौटा दी थी.
5. खिलाफत आंदोलन
खिलाफत आंदोलन (मार्च 1919-जनवरी 1921) मार्च 1919 में बंबई में एक खिलाफत समिति का गठन किया गया था. मोहम्मद अली और शौकत अली बंधुओ के साथ-साथ अनेक मुस्लिम नेताओं ने इस मुद्दे पर संयुक्त जनकार्यवाही की संभावना तलाशने के लिए महात्मा गांधी के साथ चर्चा शुरू कर दी. सितम्बर 1920 में कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में महात्मा गांधी ने भी दूसरे नेताओं को इस बात पर मना लिया कि खिलाफत आंदोलन के समर्थन और स्वराज के लिए एक असहयोग आंदोलन शुरू किया जाना चाहिये. यह आंदोलन जनवरी 1921 को समाप्त हुआ.
6. 1857 का संग्राम
1857 का संग्राम ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक बड़ी और अहम घटना थी. इस क्रांति की शुरुआत 10 मई, 1857 ई. को मेरठ से हुई, जो धीरे-धीरे कानपुर, बरेली, झांसी, दिल्ली, अवध आदि स्थानों पर फैल गई. क्रांति की शुरुआत तो एक सैन्य विद्रोह के रूप में हुई, लेकिन समय के साथ उसका स्वरूप बदल कर ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध एक जनव्यापी विद्रोह के रूप में हो गया, जिसे भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम कहा गया. अंग्रेजों के खिलाफ जो संगठित पहला विद्रोह भड़का वह 1857 में था. शुरू में तो यह सिपाहियों के विद्रोह के रूप में भड़का लेकिन बाद में यह जनव्यापी क्रांति बन गया.
7. अगस्त क्रांति
अंग्रेजी सत्ता को भारत की जमीन से उखाड़ फेंकने के लिए गांधी जी के नेतृत्व में जो अंतिम लड़ाई लड़ी गई थी उसे 'अगस्त क्रांति' के नाम से जाना गया है. इस लड़ाई में गांधी जी ने 'करो या मरो' का नारा देकर अंग्रेजों को देश से भगाने के लिए पूरे भारत के युवाओं का आह्वान किया था. यही वजह है कि इसे 'भारत छोड़ो आंदोलन' या क्विट इंडिया मूवमेंट भी कहते हैं. इस आंदोलन की शुरुआत 9 अगस्त 1942 को हुई थी, इसलिए इसे अगस्त क्रांति भी कहते हैं.
8. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 1885 में सुरेन्द्र नाथ बैनर्जी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की. इसका मुख्य लक्ष्य मध्यमवर्गीय शिक्षित नागरिकों के विचारों को आगे लाना था. प्रारंभिक दौर में इसे ब्रिटिश सरकार के सेफ्टी वॉल्व के रूप में देखा गया. 1906 में कलकत्ता में कांग्रेस के अधिवेशन में स्वराज प्राप्ति की घोषणा की गई. उसी के साथ स्वदेशी आंदोलन शुरु हो गया.
ये भी पढ़ें: 74th Independence Day: जानें भारत की आजादी के 15 महानायक के नाम
9. बंगाल विभाजन
सन् 1905 में पश्चिम बंगाल का विभाजन हुआ. देश की राजधानी कलकत्ता से बदलकर दिल्ली कर दी गई. बंगाल विभाजन के खिलाफ उपजे आंदोलन को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने 1909 में कई सुधारों को लागू किया. इन्हें मार्ले-मिंटो सुधारों के तौर पर जाना जाता है. इसका लक्ष्य विकास करने की जगह हिंदू और मुस्लिमों में मतभेद पैदा करना था.
10. सविनय अवज्ञा
सविनय अवज्ञा आंदोलन ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा चलाए प्रमुख जन आंदोलन में से एक था सविनय अवज्ञा आंदोलन. 1929 तक भारत को ब्रिटेन के इरादे पर शक होने लगा था कि अंग्रेज औपनिवेशिक स्वराज्य प्रदान करने की अपनी घोषणा पर अमल करेगा कि नहीं. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने लाहौर अधिवेशन 1929 में घोषणा कर दी थी कि उसका लक्ष्य भारत के लिए पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त करना है. महात्मा गांधी ने अपनी इस मांग पर जोर देने के लिए 6 अप्रैल, 1930 ई. को सविनय अविज्ञा आंदोलन छेड़ा. इसका मकसद सरकार के साथ पूर्ण असहयोग कर ब्रिटिश सरकार को झुकाना था.
11. आज़ाद हिंद फौज
इसके बाद सुभाष चंद्र बोस ने आज़ाद हिंद के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार 'आज़ाद हिन्द सरकार' बनाई जिसे जर्मनी, जापान, फिलिपींस, कोरिया, चीन, इटली, आयरलैंड समेत नौ देशों ने मान्यता भी दी. इसके बाद सुभाष चंद्र बोस ने आज़ाद हिंद फ़ौज को और शक्तिशाली बनाने पर ध्यान केंद्रित किया. पहले इस फौज में उन भारतीय सैनिकों को लिया गया था, जो जापान की ओर बंदी बना लिए गए थे. बाद में इसमें बर्मा और मलाया में स्थित भारतीय स्वयंसेवक भी भर्ती किए गए.
12. अंग्रेजों भारत छोड़ा
स्वतंत्रता आंदोलन में कासगंज क्षेत्र भी आंदोलन का केंद्र रहा. यहां के क्रांतिकारियों ने शासकों के कई बार छक्के छुड़ाए. अंग्रेजों भारत छोड़ा आंदोलन के दौरान 14 अगस्त 1942 को ब्रिटिश शासन के विरोध में कासगंज शहर और इसके आसपास के कस्बों में जबरदस्त प्रदर्शन हुआ था. इसमें हजारों की संख्या में युवा, महिलाएं, बच्चे सब इस क्रांति में शामिल हुए.
13. तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा
तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा . यह अनमोल वचन रंगून के जुबली हॉल में सुभाषचंद्र बोस द्वारा दिया ऐतिहासिक भाषण था, जिसे आज भी भारत के लोग गर्व से गुनगुनाते हैं. बोस के इस नारे ने देश की आजादी में अहम भूमिका निभाई थी.
14. स्वदेशी अपनाओं
साल 1906 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में स्वदेशी के प्रयोग का आह्वान किया गया था. महात्मा गांधी ने विदेशी कपड़ों के बहिष्कार, अंग्रेजी पढ़ाई छोड़ने और चरखा चलाकर कपड़े बनाने का अह्वान किया था। उनका यह सत्याग्रह आंदोलन पूरे देश में रंग ला रहा था।
15. चौरीचौरा कांड
गोरखपुर के चौरीचौरा का नाम अंग्रेज सरकार की पुलिस चौकी को जला दिए जाने के कारण स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में दर्ज है. इस कांड में कुल 53 लोगों ने जान गंवाई थी. इसमें पुलिस की गोली से दम तोड़ने वाले सत्यग्रही भी शहीद माने जाते हैं.