15 अगस्त को देश को आजादी मिली, लेकिन बंटबारे के साथ! ऐसा नहीं कि बंटवारे का एलान रातों रात हो गया हो। इसकी नींव काफी पहले डाली जा चुकी थी। साल 1935 के भारत सरकार अधिनियम के वजूद में आते ही मुस्लिम लीग और कांग्रेस के बीच दूरियां बढ़नी शुरू हो चुकी थीं। इसके करीब 10 साल बाद 1945 में डॉ. तेज बहादुर सप्रू ने सभी राजनीतिक दलों को साथ मिलाकर संविधान का खाका बनाने की पहल की।
उधर दूसरे विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन की नई सरकार ने कैबिनेट मिशन को भारत भेजा, लेकिन जिन्ना की नाराजगी बरकरार रही। दरअसल जिन्ना मुस्लिम बहुल इलाकों के लिए अलग संविधान सभा चाहते थे। रियासतों को लेकर भी उनकी अलग राय थी।
इस सबके चलते ही कैबिनेट मिशन में तीन तस्वीर सामने आई — हिन्दुस्तान, पाकिस्तान और प्रिंसीस्तान! दो संविधान सभा को लेकर भी बात आगे बढ़ी। बलूचिस्तान, सिंध, पंजाब, NWFR, बंगाल और असम के लिए मुस्लिम संविधान सभा जबकि बाकी बचे हिस्से के लिए हिन्दू संविधान सभा बनाने का मसौदा भी तैयार हुआ, लेकिन इसे लेकर बाकी राजनीतिक धड़ों ने जमकर विरोध दर्ज किया, जिसके चलते कैबिनेट मिशन और जिन्ना के इरादे सफल नहीं हो सके।
अंग्रेजों ने ही कर दी थी शुरूआत!
वैसे 1935 से भी काफी पहले साल 1916 से ही अंग्रेजों ने अल्पसंख्यकों के राजनीतिक हकों की बात शुरू करते हुए 'सेपरेट इलैक्टोरेट' का अधिकार दिया था। जो शुरूआत तब हुई थी उसकी झलक करीब 30 साल बाद साल 1946 में एक संविधान सभा बनाने को लेकर जिन्ना की नाराजगी के तौर पर दिखी।
जिन्ना ने देश में डायरेक्ट एक्शन की धमकी दी। बात सिर्फ धमकी तक ही नहीं रूकी। 16 अगस्त 1946 से मुल्क में हिंसा शुरू हुई। बंगाल, बिहार और महाराष्ट्र में अपेक्षाकृत काफी ज्यादा। इस बीच मुस्लिम लीग अंतरिम सरकार का तो हिस्सा बनी लेकिन संविधान सभा को लेकर जिन्ना का विरोध जारी रहा।
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विरोध और उससे पैदा हुई हिंसा के बीच ही ना सिर्फ अंग्रेजों ने अपने तय समय से पहले आजादी का एलान किया बल्कि दो हिस्सों में बंटवारा कर हमेशा के लिए दंश भी दे दिया।
Source : Anurag Dixit