आज़ादी के 70 साल: जानें 9 अगस्त 1925 के काकोरी कांड से जुड़ी दस बड़ी बातें

काकोरी कांड के बाद अंग्रेज़ी सरकार ने हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के लगभग 40 सदस्यों के ख़िलाफ़ सरकारी ख़जाना लूटने और हुकूमत के ख़िलाफ़ सशस्त्र युद्ध छेड़ने के तहत मुक़दमा चलाया।

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saketanand gyan
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आज़ादी के 70 साल: जानें 9 अगस्त 1925 के काकोरी कांड से जुड़ी दस बड़ी बातें

काकोरी स्टेशन जहां सन 1925 में सरकारी खजाने को क्रांतिकारियों ने लूट लिया था (फाइल फोटो)

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आज़ादी की लड़ाई के पन्नों को जब भी पलटा जाता है, तो गांधी, नेहरू और अन्य महान नेताओं के उलट एक गरम छवि वाले क्रांतिकारियों का बड़ा समूह नज़र आता है। भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल और चन्द्रशेखर आज़ाद उन्हीं क्रांतिकारी वीरों के खेमों में थे, जो समय- समय पर अंग्रेज़ी हुकूमत के सर पर संकट ले आया करते थे।

हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के संस्थापक सदस्यों में बिस्मिल और आज़ाद थे, जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई को तेज़ करने में अहम भूमिका निभाई थी। गांधी के विचारों से अलग इस संगठन ने अपना गरम दल तैयार कर लिया था। राम प्रसाद बिस्मिल ने कहा भी था कि,
हम अमन चाहते हैं ज़ुल्म के ख़िलाफ़
फ़ैसला अगर जंग से होगा, तो जंग ही सही।
कुछ ऐसे ही थे हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के सभी क्रांतिकारी योद्धा।

काकोरी कांड से जुड़ी 10 महत्वपूर्ण बातें

1. अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ लड़ाई में अंडरग्राउंड तरीके से काम कर रही हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के दो नेताओं शचीन्द्रनाथ और योगेश चन्द्र को पार्टी के संविधान और प्रकाशित इश्तहार के साथ देश के दो अलग- अलग जगहों पर गिरफ़्तार कर लिया गया था, इसके बाद संगठन की ज़िम्मेदारी रामप्रसाद बिस्मिल के कंधों पर आ गई थी।

2. संगठन के कामों और अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ लड़ाई तेज़ करने के लिए बिस्मिल को काफ़ी पैसों की ज़रूरत पड़ गई थी। दो जगहों पर ज़मीनदारों और धनासेठों को लूटने के बाद भी संगठन को कुछ ख़ास हासिल नहीं हो पाया था।

3. हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन ने सरकारी ख़जाने को लूटने का फ़ैसला किया। इसके लिए 8 अगस्त 1925 को शाहजहांपुर में रामप्रसाद बिस्मिल के घर कुछ क्रांतिकारियों की बैठक हुई, जिसमें फ़ैसला लिया गया कि लखनऊ में रेलवे के मुख्य ख़जाने में धन जमा कराने के लिए जो ट्रेन चलती है, उसे लूट लिया जाए।

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4. फिर क्या था, 9 अगस्त 1925 की शाम प्लान के मुताबिक बिस्मिल के नेतृत्व में 10 क्रांतिकारी सदस्य 8 डाउन सहारनपुर- लखनऊ पैसेंजर ट्रेन में सवार हो गए। इसी बीच काकोरी रेलवे स्टेशन से जैसे ही यह ट्रेन छूटी, योजना के अनुसार राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी ने चेन खींचकर ट्रेन को रोक दिया। फिर बिस्मिल और चन्द्रशेखर आज़ाद की अगुवाई में सभी क्रांतिकारियों ने पूरी ट्रेन पर धावा बोलते हुए सरकारी ख़जाने को लूट लिया।

5. पूरे ट्रेन में अफरातफरी मच गई और एक मुसाफ़िर की मौत गोली लगने से हो गई थी। हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के सदस्यों ने इस डकैती में क़रीब पौने पांच हज़ार की रकम लूटे लिए थे, जिससे पूरा अंग्रेज़ी हुकूमत हिल गया था।

6. पूरी घटना के बाद अंग्रेज़ी सरकार ने हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के लगभग 40 सदस्यों के ख़िलाफ़ सरकारी ख़जाना लूटने और हुकूमत के ख़िलाफ़ सशस्त्र युद्ध छेड़ने के तहत मुक़दमा चलाया।

7. जिसमें रामप्रसाद बिस्मिल, अश्फ़ाक़ उल्ला खां, ठाकुर रौशन सिंह और राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी को फ़ांसी की सज़ा सुनाई गई। फिर साथ ही 16 क्रांतिकारियों को जेल की सज़ा भी हुई। लेकिन काकोरी डकैती कांड में शामिल 10 में से 5 सदस्य फ़रार हो गए थे, जिसमें चंद्रशेखर आज़ाद भी शामिल थे।

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8. काकोरी की घटना के बाद मदन मोहन मालवीय और कईयों ने चारों क्रांतिकारियों के फ़ांसी की सज़ा को माफ़ करवाने की पूरी कोशिश की, लेकिन कोई निष्कर्ष नहीं निकल पाया।

9. काकोरी षड्यंत्र के बाद लखनऊ जेल में बंद रामप्रसाद बिस्मिल ने अपने साथियों के कहने पर 'मेरा रंग दे बसंती चोला' गीत लिख दिया। लेकिन सज़ामाफ़ी की कई सारी अपीलों के बावजूद अंग्रेज़ी हुकूमत ने अपना फ़ैसला बरकरार रखा।

10. अंततः 19 दिसंबर 1927 को चारों वीर क्रांतिकारियों को फ़ांसी पर लटका दिया गया। इसके अलावा गिरफ़्तार सभी सदस्य जेल की सज़ा काट रहे थे, लेकिन चंद्रशेखर आज़ाद अपने दृढ निश्चय से अंग्रेज़ों के गिरफ़्त में नहीं आ सके थे।

बॉलीवुड के कई फ़िल्मों में काकोरी कांड और उससे संबंधित घटनाओं का चित्रण हुआ है। 2002 में आई फ़िल्म 'द लेजेन्ड ऑफ़ भगत सिंह' और 2006 में आई 'रंग दे बसन्ती' में आप स्वतंत्रता संग्राम के इन घटनाओं को देखकर बख़ूबी समझ सकते हैं। समय समय पर अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ़ लड़ाई तेज़ करते हुए इन क्रांतिकारियों ने फ़ांसी की परवाह भी नहीं की थी। क्योंकि ये सभी ज़ुल्म के ख़िलाफ़ जंग को ही एकमात्र हथियार मानते थे।

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Source : News Nation Bureau

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