केंद्रीय इस्पात मंत्री बिरेंद्र सिंह ने गुरुवार को कहा कि भारतीय इस्पात उद्योग का लक्ष्य 2030 तक उत्पादन क्षमता को बढ़ाकर 30 करोड़ टन सालाना करना है. इस्पात मंत्री इंडियन स्टील एसोसिएशन और मैसे फ्रैंकफर्ट इंडिया द्वारा आयोजित एक संगोष्ठी में बोल रहे थे. उन्होंने कहा कि वर्ष 2018 इस्पात उद्योग के लिए नई शुरुआत का वर्ष है, क्योंकि इस्पात क्षेत्र के विकास और कच्चे स्टील उत्पादन की क्षमता पर जोर देने के कारण पिछले साल की तुलना में इस साल छह फीसदी ज्यादा उत्पादन दर्ज किया गया.
सिंह ने कहा, "भारत जापान को पीछे छोड़ दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा स्टील उत्पादक बन गया है. हमने 5.2 करोड़ टन कच्चे स्टील के उत्पादन के लक्ष्य को भी हासिल किया, जो पिछले साल की तुलना में छह फीसदी अधिक है. ऐसे में अब स्टील उद्योग को वैश्विक अवसरों और उपभोक्ताओं को आकर्षित करने वाले गुणवत्ता नवाचारों को शुरू करने की दिशा में अधिक सक्रिय बनना पड़ेगा. हमारे लिए यह एक महत्वपूर्ण चुनौती है, क्योंकि विश्व के शीर्ष इस्पात निर्माता भारत के इस्पात उद्योग को प्रभावित करने, उन्हें चुनौती देने और बदलने की दिशा में काम कर रहे हैं."
दुनिया में स्टील का सबसे बड़ा उत्पादक चीन है. उसके बाद भारत का नंबर आता है. तीसरे स्थान पर जापान है.
उन्होंने कहा, "भारतीय स्टील उद्योग का लक्ष्य 2030 तक अपनी उत्पादन क्षमता को 30 करोड़ टन पर लाना है."
बिरेंद्र सिंह ने इससे पहले 25-26 अक्टूबर तक चलने वाले दो दिवसीय 'आईएसए स्टील कॉन्क्लेव' का उद्घाटन किया. कॉन्क्लेव में सरकार और उद्योग-व्यापार जगत के 200 से ज्यादा प्रतिनिधि इस क्षेत्र की प्रमुख चुनौतियों पर विचार-विमर्श करने के लिए एकजुट हुए हैं. इंडियन स्टील एसोसिएशन और मैसे फ्रैंकफर्ट इंडिया (एमएफआई) की ओर से आयोजित यह पहला आईएसए इंटरनेशनल स्टील कॉन्क्लेव है.
कान्क्लेव में शामिल हुए जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड के चेयरमैन नवीन जिंदल ने इस मौके पर कहा, "वर्ष 2030 के लिए इस्पात उत्पादन का लक्ष्य हासिल करने के लिए श्रम और लौह अयस्क के माध्यम से भारत की लागत प्रतिस्पर्धात्मकता की ताकत को कमजोर नहीं होने देना चाहिए."
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वहीं, टाटा स्टील लिमिटेड के ग्लोबल सीईओ और प्रबंध निदेशक टी.वी. नरेंद्रन ने कहा, "सभी विकसित देशों के पास मजबूत उपकरण एवं निर्माण सेट-अप है, जिसे भारत में बनाने की भी आवश्यकता है. स्टील उद्योग को ऑटो सेक्टर से सीखने की भी जरूरत है जिसने पिछले 25 वर्षो में जबरदस्त पैमाने पर उत्पादकता हासिल की है. हमें उन क्षमताओं को बनाने या विकसित करने की जरूरत है, जो पर्यावरण अनुकूल और टिकाऊ हों. इन चुनौतियों को स्वीकार करने के लिए पर्याप्त समय की आवश्यकता है, जिसके दम पर हम समावेशी विकास कर सकते हैं."
Source : IANS