शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक में शामिल होने के लिए चीन के रक्षा मंत्री जनरल ली शांगफू (Li Shangfu) की दिल्ली यात्रा से पहले पूर्वी लद्दाख (Ladakh) में तीन साल से जारी सैन्य टकराव के समाधान के लिए भारत (India) और चीन (China) के बीच रविवार को शीर्ष स्तर की सैन्य वार्ता (Military Talks) का एक और दौर संपन्न हुआ. हालांकि कोर कमांडर-स्तरीय वार्ता के 18वें दौर के नतीजे पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है. फिर भी सूत्र बताते हैं कि चुशुल-मोल्दो (Chushul-Moldo) सीमा पर यह बैठक सुबह करीब 9.30 बजे शुरू हो कर रात समाप्त हुई. पिछले साल 20 दिसंबर को 17वें दौर की वार्ता के चार महीने के बाद यह बैठक हुई थी. उल्लेखनीय है कि 17वें दौर की वार्ता के बावजूद विवादास्द सीमा विवाद (Border Dispute) मसलों पर कोई एकराय कायम नहीं हो सकी है. सूत्रों ने कहा कि रविवार को 14 कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल राशिम बाली के नेतृत्व में भारतीय पक्ष ने रणनीतिक रूप से देपसांग (Depsang) बुल्गे क्षेत्र और और डेमचोक (Demchok) में चारडिंग निंगलुंग नाला ट्रैक जंक्शन से पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) सैनिकों की वापसी के लिए फिर दबाव डाला. चीन की ओर से दक्षिण झिंजियांग सैन्य जिला प्रमुख ने इस बातचीत में हिस्सा लिया था.
भारत अपनी पहले की शर्तों पर ही रहा कायम
भारतीय पक्ष से जुड़े एक सूत्र के मुताबिक, 'देखते हैं कि 27-28 अप्रैल को चीनी रक्षा मंत्री की भारत यात्रा से पहले विवादास्द सीमा मसलों पर कोई प्रगति होती है या नहीं. सैन्य वार्ता में यह स्पष्ट किया गया कि भारत हर हाल में दोनों पक्षों के पूर्वी लद्दाख में टैंक, आर्टिलरी और रॉकेट सिस्टम जैसे भारी हथियारों के साथ तैनात 50,000 से अधिक सैनिकों को पीछे हटाना, डी-एस्केलेशन और डी-इंडक्शन चाहता है.' बातचीत में जोर दिया गया कि अगर चीन समग्र द्विपक्षीय संबंधों में कोई सुधार चाहता है तो यह पहली शर्त है. अन्यथा 'युद्ध नहीं, शांति नहीं' की स्थिति जारी रहेगी और द्विपक्षीय संबंध अधर में लटके रहेंगे. हालांकि चीन ने अब तक अपनी सेना को वापस लेने और भारतीय गश्ती दल को उनके पारंपरिक गश्त बिंदुओं तक पहुंच से रोकने का कोई इरादा नहीं दिखाया है, जो वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) की भारत की सीमा के अंतर्गत आते हैं.
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यहां अटका है पेंच
सूत्र बताते हैं कि देपसांग में 16,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित पठार पर भारतीय सैनिक पारंपरिक गश्त बिंदू क्रमशः 10, 11, 12, 12ए और 13 तक पहुंचने में अभी भी सक्षम नहीं हैं, क्योंकि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने भारतीय सैनिकों की आवाजाही रोक रखी है. भारत इसे अपना क्षेत्र मानता है और यह भारत-चीन सीमा से लगभग 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इसके अलावा पैंगोंग त्सो-कैलाश रेंज, गालवान घाटी और गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स जैसे भारतीय क्षेत्रों में 3 किमी से लेकर 10 किमी तक के गैर गश्ती बफर जोन में भी भारतीय सैनिकों की आवाजाही बाधित है. कुल मिलाकर 65 पारंपरिक गश्त बिंदुओं में से 26 तक पर विवाद कायम है. ये सभी उत्तर में काराकोरम दर्रे से लेकर पूर्वी लद्दाख में दक्षिण में चुमार में स्थित हैं.
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भारतीय सेना किसी भी आकस्मिक स्थिति के लिए तैयार
यही नहीं, चीन ने अप्रैल-मई 2020 से 3,488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अपने सैन्य ठिकानों और बुनियादी ढांचे को लगातार मजबूत करने के अलावा पूर्वी क्षेत्र में भी आक्रामक रणनीति अपनाई है. इस वजह से ही 9 दिसंबर को सामरिक रूप से महत्वपूर्ण तवांग सेक्टर के यांग्त्से में भारत-चीन सैनिकों के बीच फिर से संघर्ष हुआ. इस महीने की शुरुआत में अपने रुख को और आक्रामक बनाते हुए चीन ने अरुणाचल प्रदेश में 11 स्थानों के नामों का चीनी भाषा में मानकीकरण भी किया, जिसे भारत सरकार ने खारिज कर दिया था. यहां यह भी नहीं भूलना चाहिए कि भारत-चीन सीमा विवाद की इस तनावपूर्ण स्थिति के बीच पिछले हफ्ते सेना को संबोधित करते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि सशस्त्र बलों को उत्तरी सीमाओं पर किसी भी आकस्मिक स्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए. हालांकि उन्होंने यह भी स्वीकार किया था राजनयिक और सैन्य बातचीत के माध्यम से विवादास्पद बिंदुओं पर पीएलए सैनिकों का डिसइंगेजमेंट और डी-एस्केलेशन ही परस्पर संबंधों के लिहाज से बेहतर रहेगा.
HIGHLIGHTS
- रविवार को भारत-चीन के बीच 18वें दौर की सैन्य कोर कमांडर स्तर की वार्ता हुई
- दोनों पक्षों के बीच अंतिम दौर की बातचीत के करीब चार महीने बाद हुई यह वार्ता
- भारतीय पक्ष का डेमचोक और देपसांग के विवादित स्थलों को हल करने पर जोर