भारत (India) और चीन (China) की सेनाओं ने शनिवार को सकारात्मक रुख के साथ उच्चस्तरीय सैन्य बातचीत की और पूर्वी लद्दाख में करीब एक महीने से सीमा पर जारी गतिरोध को शांतिपूर्ण संवाद के माध्यम से समाप्त करने का संकेत दिया. घटनाक्रम से जुड़े लोगों ने यह जानकारी दी. भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व लेह स्थित 14वीं कोर के जनरल ऑफिसर कमांडिंग लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह ने किया, जबकि चीनी पक्ष का नेतृत्व तिब्बत सैन्य जिले के कमांडर कर रहे थे.
सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर बताया कि सकारात्मक माहौल में बातचीत हुई. रुख (दोनों पक्षों का) सकारात्मक था. सूत्रों ने बताया कि चुशूल सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा के चीनी पक्ष की तरफ माल्डो में सीमा कर्मी बैठक स्थल पर सुबह करीब साढ़े आठ बजे वार्ता प्रस्तावित थी, लेकिन ऊंचाई वाले क्षेत्र में खराब मौसम की वजह से यह करीब तीन घंटे तक टल गई.
उन्होंने कहा कि बातचीत शुरू होने से पहले चीनी सेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने गर्मजोशी से भारतीय प्रतिनिधिमंडल का स्वागत किया. सेना और विदेश मंत्रालय ने इस बहु-प्रतीक्षित बैठक के बारे में कोई जानकारी नहीं दी है. बातचीत के बारे में कोई खास विवरण दिए बिना, भारतीय सेना के एक प्रवक्ता ने कहा कि भारत और चीन के अधिकारी भारत-चीन सीमावर्ती इलाकों में बने वर्तमान हालात के मद्देनजर स्थापित सैन्य एवं राजनयिक माध्यमों के जरिए एक-दूसरे के लगातार संपर्क में बने हुए हैं.
सूत्रों ने कहा कि दोनों सेनाओं में स्थानीय कमांडरों के स्तर पर 12 दौर की बातचीत तथा मेजर जनरल रैंक के अधिकारियों के बीच तीन दौर की बातचीत के बाद कोई ठोस नतीजा नहीं निकलने पर शनिवार को लेफ्टिनेंट जनरल स्तर पर बातचीत हुई. उच्च स्तरीय सैन्य वार्ता से एक दिन पहले दोनों देशों के बीच राजनयिक स्तर पर बातचीत हुई और इस दौरान दोनों पक्षों में अपने मतभेदों का हल शांतिपूर्ण बातचीत के जरिये एक-दूसरे की संवेदनाओं और चिंताओं का ध्यान रखते हुए निकालने पर सहमति बनी थी.
समझा जाता है कि भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने पूर्वी लद्दाख में गलवान घाटी, पैंगोंग सो और गोगरा में यथा स्थिति की पुन:बहाली के लिए दबाव बनाया. इससे पहले सूत्रों ने कहा था कि भारतीय पक्ष क्षेत्र में चीनी सैनिकों द्वारा बड़े सैन्य निर्माणों पर अपनी आपत्ति जताएगा. पिछले महीने की शुरुआत में गतिरोध पैदा होने के बाद भारतीय सैन्य नेतृत्व ने फैसला किया था कि भारतीय जवान पैंगोंग सो, गलवान घाटी, डेमचोक और दौलत बेग ओल्डी के सभी विवादित क्षेत्रों में चीनी सैनिकों के आक्रामक रवैये के खिलाफ दृढ़ रुख अपनाएंगे.
माना जा रहा है कि चीनी सेना ने पैंगोंग सो और गलवान घाटी में करीब 2,500 सैनिकों की तैनाती की है और इसके अलावा वह धीरे-धीरे वहां अपने अस्थायी ढांचों और हथियारों को भी बढ़ा रहा है. सूत्रों ने कहा कि उपग्रह से ली गई तस्वीरों में नजर आ रहा है कि चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा के अपनी तरफ के क्षेत्र में सैन्य आधारभूत ढांचे में महत्वपूर्ण रूप से इजाफा किया है जिसमें पैंगोंग सो इलाके से करीब 180 किलोमीटर दूर एक सैन्य हवाईअड्डे का उन्नयन भी शामिल है.
उन्होंने कहा कि चीनी सेना एलएसी के निकट अपने पीछे के सैन्य अड्डों पर रणनीतिक रूप से जरूरी चीजों का धीरे-धीरे भंडारण कर रही है, जिनमें तोप, युद्धक वाहनों और भारी सैन्य उपकरणों आदि को वहां पहुंचाना शामिल है. उन्होंने कहा कि चीन ने उत्तरी सिक्किम और उत्तराखंड में वास्तविक नियंत्रण रेखा से लगे कुछ क्षेत्रों में भी अपनी उपस्थिति बढ़ायी है, जिसके बाद भारत भी अतिरिक्त सैनिकों को भेजकर अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है.
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मौजूदा गतिरोध के शुरू होने की वजह पैंगोंग सो झील के आसपास फिंगर क्षेत्र में भारत द्वारा एक महत्वपूर्ण सड़क निर्माण का चीन द्वारा तीखा विरोध है. इसके अलावा गलवान घाटी में दरबुक-शायोक-दौलत बेग ओल्डी मार्ग को जोड़ने वाली एक और सड़क के निर्माण पर चीन के विरोध को लेकर भी गतिरोध है. पैंगोंग सो में फिंगर क्षेत्र में सड़क को भारतीय जवानों के गश्त करने के लिहाज से अहम माना जाता है.
भारत ने पहले ही तय कर लिया है कि चीनी विरोध की वजह से वह पूर्वी लद्दाख में अपनी किसी सीमावर्ती आधारभूत परियोजना को नहीं रोकेगा. दोनों देशों के सैनिक गत पांच और छह मई को पूर्वी लद्दाख के पैंगोंग सो क्षेत्र में लोहे की छड़ और लाठी-डंडे लेकर आपस में भिड़ गए थे. उनके बीच पथराव भी हुआ था. इस घटना में दोनों पक्षों के सैनिक घायल हुए थे. पांच मई की शाम को चीन और भारत के 250 सैनिकों के बीच हुई यह हिंसा अगले दिन भी जारी रही. इसके बाद दोनों पक्ष ‘‘अलग’’ हुए। इसी तरह की एक घटना में नौ मई को सिक्किम सेक्टर में नाकू ला दर्रे के पास लगभग 150 भारतीय और चीनी सैनिक आपस में भिड़ गए थे.