दुनिया के 20 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों के समूह जी-20 का 13वां शिखर सम्मेलन में राष्ट्रपति नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi), चीन के प्रधानमंत्री शी जिनपिंग (Xi Jinping) और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (vladimir putin) के साथ मुलाक़ात की. तीनों देशों के बीच यह त्रिपक्षीय वार्ता करीब 12 साल बाद हुई है. बता दें कि इस बार जी-20 शिखर सम्मेलन का आयोजन 30 नवंबर और एक दिसंबर के बीच अर्जेंटीना में किया गया था. इस बारे में विशेष जानकारी देते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय ने ट्वीट किया, 'विकास में महत्वपूर्ण भागीदारों के साथ संबंध प्रगाढ़. राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, राष्ट्रपति जिनपिंग और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ब्यूनस आयर्स में आरआईसी (रूस, भारत, चीन) त्रिपक्षीय वार्ता में हिस्सा लिया.'
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच की यह बैठक इसलिए भी काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है क्योंकि पिछले कुछ दिनों में दोनों देश के बीच सीमा विवाद को लेकर काफी तनाव देखा जा रहा था. हालांकि हाल के दिनों में चीन के रुख़ में थोड़ी नरमी देखी गई है. चीन ने 23 नवम्बर को पाकिस्तान के उच्च सुरक्षा वाले शहर कराची में चीनी वाणिज्य दूतावास पर हुए आत्मघाती हमले की खबर दिखाते हुए पीओके (Pok) को पहली बार भारतीय नक्शे में दर्शाया. नक्शे में पूरे जम्मू-कश्मीर को भारतीय प्रदेश के रूप में दिखाया गया.
हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि चैनल ने यह कदम किसी विशेष नीति के तहत उठाया है, या गलती से. दुनियाभर में अलग-थलग पड़े पाकिस्तान के साथ चीन की बढ़ती नजदीकी के दौर में उसकी नीति में यह बदलाव बड़े संकेत दे रहा है.
कैबिनेट सचिवालय के पूर्व अधिकारी तिलक देवाशेर समेत कुछ अन्य पूर्व राजनयिकों का कहना है कि चीन का सरकारी चैनल गलती से ऐसा नहीं कर सकता. निश्चित तौर पर अपने अधिकारियों की सुरक्षा को लेकर चिंतित चीन ने पाकिस्तान को सख्त संदेश देने की कोशिश की है. पाकिस्तान की सुरक्षा व्यवस्था से चीन हताश है. सीपीईसी में पीओके के महत्व को देखते हुए यह पाकिस्तान के लिए संकेत है.
बता दें कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) का बड़ा हिस्सा पीओके से होकर गुजर रहा है. भारत ने इस परियोजना पर चीन और पाकिस्तान के समक्ष कई बार अपनी आपत्ति दर्ज कराई है. इस परियोजना से पहले भी चीन ने पीओके में व्यापक निवेश किया है, जिस पर भारत सख्त आपत्ति जता चुका है.
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मोदी सरकार के बाद भारत-चीन संबंध (India China Relation After PM Modi)
2014 में नरेंद्र मोदी जब भारत के प्रधानमंत्री बने तो पूरा देश उनमें भारत के लिए कई संभावनाएं देख रहा था. चीन और पाकिस्तान के साथ भारत के संबंध को लेकर भी देश के लोगों को काफी उम्मीद थी. पीएम मोदी ने शुरुआत में अपने सभी पड़ोसी देशों के साथ संबंध बेहतर करने की दिशा में काफी प्रयास भी किए. सितंबर 2014 को चीन के राष्ट्रपति पीएम मोदी के निमंत्रण पर अहमदाबाद पहुंचे. जिस तरह से पीएम मोदी ने उनकी आगवानी की उससे लगा कि दोनों देशों के बीच संबंध सुधरेगा.
मुलाक़ात के दौरान कैलाश मानसरोवर यात्रा के नए रूट और रेलवे में सहयोग समेत 12 समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए. इसके अलावा दोनों देशों ने क्षेत्रीय मुद्दों और चीन के औद्योगिक पार्क से संबंधित समझौते पर हस्ताक्षर किए गए. हालांकि उसी दौरान चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के करीब 1000 जवान पहाड़ी से जम्मू कश्मीर के चुमार इलाके में घुस आए थे. भारत ने चीनी राष्ट्रपति के सामने यह मुद्दा ज़रूर रखा लेकिन अपनी तरफ से वार्ता में कोई खलल नहीं पड़ने दिया.
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साल 2017 में 18 जून को डोकलाम पर सीमा विवाद को लेकर एक बार पिर से दोनों देशों के बीच तनाव शुरू हुआ और यह तक़रीबन 73 दिनों तक चला. बता दें कि भारत-भूटान और चीन को मिलाने वाला बिंदु को भारत में डोकलाम, भूटान में डोक ला और चीन में डोकलांक कहा जाता है. डोकलाम एक पठार है जिसे भूटान और चीन अपना-अपना क्षेत्र बताते हैं. डोकलाम भूटान के हा घाटी, भारत के पूर्व सिक्किम जिला, और चीन के यदोंग काउंटी के बीच में है.
क्या है डोकलाम विवाद (What is Doklam controversy)
डोकलाम का कुछ हिस्सा सिक्किम में भारतीय सीमा से सटी हुई है, जहां चीन सड़क बनाना चाहता है. इसी वजह से भारतीय सेना ने सड़क बनाए जाने का विरोध किया. भारत की चिंता यह है कि अगर यह सड़क बनी तो हमारे देश के उत्तर पूर्वी राज्यों को देश से जोड़ने वाली 20 किलोमीटर चौड़ी कड़ी यानी मुर्गी की गरदन जैसे इस इलाके पर चीन की पहुंच बढ़ जाएगी. ये वही इलाका है जो भारत को सेवन सिस्टर्स नाम से जानी जाने वाली उत्तर पूर्वी राज्यों से जोड़ता है और सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है.
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वहीं चीन ने अपनी संप्रभुता की बात दोहराते हुए कहा कि उन्होंने सड़क अपने इलाके में बनाई है. इसके साथ ही उन्होंने भारत भारतीय सेना पर "अतिक्रमण" का आरोप लगाया.
चीन का कहना है भारत 1962 में हुई हार को याद रखे. चीन ने भारत को चेतावनी दी है कि चीन पहले भी अधिक शक्तिशाली था और अब भी है. जिसके बाद भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि चीन समझे की अब वक़्त बदल गया है. यह 2017 है.
इस विवाद का असर यह हुआ कि चीन ने भारत से कैलाश के लिए जाने वाले हिंदू तीर्थयात्रियों को मानसरोवर यात्रा पर जाने से रोक दिया. हालांकि बाद में चीन ने हिमाचल प्रदेश के रास्ते 56 हिंदू तीर्थयात्रियों को मनसरोवर यात्रा के लिए आगे जाने की अनुमति दे दी.
डोकलाम पर भारत-चीन के बीच लगभग दो महीने तक काफी तनातनी होने के बाद आख़िरकार विवाद ख़त्म हुआ.
डोकलाम के बाद भी नहीं थमी चीनी घुसपैठ (China infiltration in India)
हालांकि इसके बाद भी चीनी सेना द्वारा घुसपैठ की घटना में कमी नहीं आई. चीन ने अरुणाचल प्रदेश के उत्तरी पैंगोंग झील के पास गाड़ियों के जरिये 28 फ़रवरी, 7 मार्च और 12 मार्च 2018 को घुसपैठ की. रिपोर्ट में कहा गया है कि पैंगोंग झील के पास 3 जगहों पर चीनी सेना ने घुसपैठ की जिसमें वे लगभग 6 किलोमीटर तक अंदर घुस आए थे. आईटीबीपी जवानों के विरोध के बाद चीनी सैनिक वापस लौट गए.
10 मार्च 2018 को चमोली से लगे भारत-चीन सीमा क्षेत्र बाड़ाहोती में चीनी सेना के तीन हेलीकॉप्टर भारत की सीमा पर करीब चार किलोमीटर अंदर घुस आए. हेलीकॉप्टर करीब पांच मिनट तक आसमान में मंडराने के बाद चले गए. हालांकि मामले की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हो पाई.
उसके बाद अगस्त के महीने में चीनी सेना ने तीन बार घुसपैठ की. सूत्रों ने जानकारी दी है कि अगस्त माह के दौरान चीन की सेना पीपल्स लिबरेशन आर्मी ने सेंट्रल सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control - LAC) को तीन बार पार किया, जिसमें उत्तराखंड के बाराहोती में वे 3.5 किलोमीटर तक भीतर आ गए थे. ITBP सूत्रों के हवाले से ख़बर मिली है कि चीनी सेना ने 6 अगस्त, 14 अगस्त और 15 अगस्त को राहोती के रिमखिम पोस्ट के नज़दीक घुसपैठ की. बताया जा रहा है कि चीनी सेना 400 मीटर से लेकर 3.5 किलोमीटर तक अंदर घुस गए.
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चीन ने सीमा के पास बना रखी है पक्की सड़क और हेलीपैड
वहीं चीन अरुणाचल प्रदेश के किबितू इलाके से सटी सीमा पर टाटू कैंप और न्यू टाटू कैंप बनाया है. यहां पर चीनी सेना ने कंक्रीट की मजबूत की बिल्डिंग, फायरिंग रेंज और हेलीपैड साफ नजर आते हैं. यहां तक चीन ने पक्की सड़क भी बनाई हुई है. इधर भारत के अंदर चीन की तुलना में बुनियादी ढांचा अभी इतना मज़बूत नहीं हुआ है. ना तो सड़क पक्की है और ना ही पुख्ता संचार तंत्र.
चीन की हरक़तों को देखते हुए ही भारत ने सरहदी इलाकों में बुनियादी ढांचा पक्का करने में तेज़ी लाई है. क़रीब साढ़े तीन हज़ार करोड़ रुपए की लागत से चीन से लगी सीमाओं पर सड़क निर्माण का काम तेज़ी से चल रहा है. ऐसे 73 प्रोजेक्ट्स में से 18 पूरे हो चुके हैं. बाकी प्रोजेक्ट 2020 तक पूरे किए जाने का लक्ष्य है.
इसके अलावा दक्षिण चीन सागर में नेविगेशन की स्वतंत्रता को लेकर भी दोनों देशों के बीच मतभेद रहे हैं.
सीमा विवाद को लेकर 1962 में हो चुका है भारत-चीन युद्ध (1962 India-China War)
भारत और चीन के बीच हमेशा से ही सीमा विवाद को लेकर तनाव की स्थिति बनी रही है. 1962 में चीन और भारत के बीच एक युद्ध हुआ था. यह युद्ध विवादित हिमाल सीमा को आधार मानकर लड़ा गया था लेकिन जानकार मानते हैं कि इस युद्ध के लिए तत्कालीन अन्य मुद्दे भी शामिल थे. दरअसल भारत ने चीन में 1959 के तिब्बती विद्रोह के बाद दलाई लामा को शरण दी थी जिसके बाद से भारत चीन सीमा पर हिंसक घटनाओं की श्रृंखला शुरू हो गयी. भारत ने फॉरवर्ड नीति के तहत मैकमोहन रेखा से लगी सीमा पर अपनी सैनिक चौकियां रखी जो 1959 में चीनी प्रीमियर झोउ एनलाई के द्वारा घोषित वास्तविक नियंत्रण रेखा के पूर्वी भाग के उत्तर में थी.
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चीनी सेना ने 20 अक्टूबर 1962 को लद्दाख में और मैकमोहन रेखा के पार एक साथ हमले शुरू किये. चीनी सेना दोनों मोर्चे में भारतीय बलों पर हावी रही और पश्चिमी क्षेत्र में चुशूल में रेजांग-ला एवं पूर्व में तवांग पर अवैध कब्ज़ा कर लिया. चीन ने 20 नवम्बर 1962 को युद्ध विराम की घोषणा कर दी और साथ ही विवादित दो क्षेत्रों में से एक से अपनी वापसी की घोषणा भी की, हलाकिं अक्साई चिन से भारतीय पोस्ट और गश्ती दल हटा दिए गए थे, जो संघर्ष के अंत के बाद प्रत्यक्ष रूप से चीनी नियंत्रण में चला गया.
सबसे बड़ा मुद्दा: क्या यूपी में क़ानून-व्यवस्था लगातार कमजोर हो रही है ?
Source : Deepak Singh Svaroci