चीन के साथ बढ़ती तनातनी के बीच भारत अब एक ऐसे प्राचीन ट्रेड रूट को अत्याधुनिक बनाने में जुट गया है जो सीधे चीन की सीमा तक भारतीय सेना को एक्सेस देगी. भारतीय सेना के लिए यह एक नया स्ट्रेटेजिक रूट होगा, जो PLA की पहुंच से दूर लेकिन भारतीय सेना के लिए रामसेतु जैसा होगा.
लद्दाख और चीन के जिनजियांग प्रांत स्थित काशगर के बीच यह 1937 तक ट्रेड रूट रहा है. इस नए रूट से काराकोरम पास, देपसांग और दौलत बेग ओल्डी को सीधे लद्दाख से एक नई कनेक्टिविटी मिल जाएगी. फिलहाल, यह रूट कच्चा है, लेकिन इस आल वेअथर कनेक्ट करने का काम BRO यानी बॉर्डर रोड आर्गेनाइजेशन ने शुरू कर दिया है.
फिलहाल, चीन से लगे लद्दाख के सब सेक्टर नार्थ पार्ट यानी देपसांग और काराकोरम पास तक पहुंचने के लिए सिर्फ और सिर्फ दौलत बेग ओल्डी का रास्ता है, जो 225 किलोमीटर लंबा है और कई जगह LAC से होकर गुजरता है. इस पर चीन की सीधी नजर रहती है. लद्दाख के श्योक विलेज से देपसांग के मुर्गों का 127 किमी स्ट्रेच बिल्कुल LAC के साथ-साथ है और इससे समझा जा सकता है कि किस तरह चीन इस रूट को आसानी से टारगेट कर सकता है.
जबकि यह वैकल्पिक नया रूट सियाचिन ग्लेसियर से शुरू होता है और सासेर ला होते हुए गैपसम तक जाता है जो देपसांग के मुर्गों इलाके के पास है. यहां से ये फिर दौलत बेग ओल्डी को कनेक्ट कर लेता है.
मौजूदा स्थिति में इस ट्रैक को तीन हिस्सों में समझा जा सकता है-
1. समोसा से ससेर ला
2. ससेर ला से ससेर ब्रांग्सा
3. ससेर ब्रांगसा से मुर्गों
मौजूदा स्थिति में समोसा से ससेर ला के बीच कच्ची सड़क है. ससेर ला से ससेर ब्रांगसा के बीच वाकिंग ट्रैक है और ससेर ब्रांगसा से बीच ट्रैक बनाया जा रहा है. वहीं, लेह और समोसा के बीच आल वेदर कनेक्टिविटी है. इस ट्रैक के जियोग्राफिक लोकेशन की बात करे तो 17800 फीट तक ऊंचा है और इस पर तापमान सर्दियों में -50 डिग्री और गर्मी में 12 डिग्री रहता है. इस रूट को दुरुस्त करने और सेना के उपयोग में जल्द से जल्द लाने की योजना है. CRRI की माने तो इस रूट में जरूरत के मुताबिक टनल भी बनाया जा सकता है.
Source : News Nation Bureau